Friday, 9 September 2011

दिल्लीवासियों का जज्बा



धमाके के बाद मुसीबत के समय राजधानीवासियों की दिलेरी व मदद के लिए आतुरता निश्चित ही काबिलेतारीफ कही जा सकती है। हाईकोर्ट के गेट पर धमाके की खबर सुनते ही जो जहां था मदद के लिए घटनास्थल व अस्पताल की तरफ रुख करने लगा। राममनोहर लोहिया अस्पताल का नजारा देखने लायक था। एक तरफ अस्पताल में जहां घायलों के आने का सिलसिला जारी था, वहीं दूसरी ओर अस्पताल से सटे ब्लड बैंक में रक्तदाताओं का हुजूम ऐसा उमड़ा कि कतार खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। दिनभर का काम छोड़कर लोग अपनी बारी के इंतजार में घंटों बिना किसी शिकायत के लगे रहे। शाम चार बजते-बजते तो यह नौबत आ गई कि रक्तदान करने के लिए लाइन में लगे लोगों को कहना पड़ा कि अब ब्लड बैंक में खून रखने की जगह नहीं है। इसके बावजूद कई लोग रक्तदान के लिए प्रयास करते रहे। इसी तरह वकीलों का साहसी व मानवीय चेहरा देखने को मिला। वे घटनास्थल पर भीड़ व अफरातफरी के माहौल में पीड़ितों को सहारा देने में जुटे रहे। उन्हें वाहनों में चढ़ाने से लेकर अस्पताल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी निभाते रहे। यही नहीं दोपहर बाद उन्होंने अदालत में अपना काम फिर से शुरू करके ये संदेश दिया कि दहशतगर्दो के मंसूबों को हम कामयाब नहीं होने देंगे।
आपदा की इस घड़ी में राम मनोहर लोहिया के डॉक्टरों ने भी साबित कर दिया कि डॉक्टर बनते समय जो उन्होंने शपथ ली थी उसका बखूबी पालन भी करते हैं। विस्फोट की सूचना मिलते ही भारी संख्या में डॉक्टर अस्पताल पहुंच गए। स्थिति यह थी कि मरीज से कहीं ज्यादा डॉक्टर दिख रहे थे। उस समय लग रहा था कि राजधानी में सुरक्षा की कमी का भले ही फायदा उठाकर आतंकी अपने मंसूबे में कामयाब हो जाएं पर दिल्लीवासियों के जज्बे व साहस को मात नहीं दे सकते। हर बार दिल्लीवासियों ने बढ़ चढ़कर इस तरह की आपदा का सामना किया है। भ्रष्टाचार व अपराध के खिलाफ आवाज उठाना हो या अपनों की मदद करनी हो दिल्लीवासी हमेशा आगे रहे हैं। सरकार व प्रशासन का फर्ज बनता है कि राष्ट्रीय राजधानी होने के नाते दिल्ली पर विशेष ध्यान दें। सुरक्षा व्यवस्था के प्रति गंभीरता की जरूरत है, ताकि लोगों को फिर से इसका खामियाजा न भुगतना पड़े। हर बार की तरह सांप जाने के बाद लकीर पीटने वाली स्थिति न बने।

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