Thursday 13 December 2012

भारत में भ्रष्टाचार


    
                   

आज के आधुनिक युग में व्यक्ति का जीवन अपने स्वार्थ तक सीमित होकर रह गया है। प्रत्येक कार्य के पीछे स्वार्थ प्रमुख हो गया है। समाज में अनैतिकता, अराजकता और स्वार्थ से युक्त भावनाओं का बोलबाला हो गया है। परिणामस्वरुप भारतीय संस्कृति और उसका पवित्र तथा नैतिक स्वरुप धुँधा हो गया है। इसका एक कारण समाज में फैल रहा भ्रष्टाचार भी है। भ्रष्टाचार के इस विकराल रुप को धारण करने का सबसे बड़ा कारण है, आज के अर्थप्रधान युग में प्रत्येक व्यक्ति धन प्राप्त करने में लगा हुआ है। कमरतोड़ महंगाई भी इसमें इजाफ़ा करने का काम कर रही है। मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ़ जाने के कारण वह उन्हें पूरा करने के लिए मनचाहे तरीकों को अपना रहा है।
भारत के अंदर तो भ्रष्टाचार का फैलाव दिन-भर-दिन बढ़ रहा है। किसी भी क्षेत्र में चले जाएं भ्रष्टाचार का फैलाव दिखाई देता है। भारत के सरकारी व गैर-सरकारी विभाग इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण हैं। आप यहाँ से अपना कोई भी काम करवाना चाहते हैं, बिना रिश्वत खिलाए काम करवाना संभव नहीं है। मंत्री से लेकर संतरी तक को अपनी फाइल बढ़वाने के लिए पैसे का उपहार चढाना ही पड़ेगा। स्कूल व कॉलेज भी इस भ्रष्टाचार से अछूते नहीं है। बस इनके तरीके दूसरे हैं। गरीब परिवारों के बच्चों के लिए तो शिक्षा सरकारी स्कूलों व छोटे कॉलेजों तक सीमित होकर रह गई है। नामी स्कूलों में दाखिला कराना हो, तो डोनेशन के नाम पर मोटी रकम मांगी जाती है। बैंक जोकि हर देश की अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ हैं, वे भी भ्रष्टाचार के इस रोग से पीड़ित हैं। आप किसी प्रकार के लोन के लिए आवेदन करें पर बिना किसी परेशानी के फाइल निकल जाए, यह तो संभव नहीं हो सकता। देश की आंतरिक सुरक्षा का भार हमारे पुलिस विभाग पर होता है। परन्तु आए दिन यह समाचार आते-रहते हैं कि आमुक पुलिस अफ़सर ने रिश्वत लेकर एक गुनाहगार को छोड़ दिया। भारत को इस तरह का भ्रष्टाचार खोखला बना रहा है।
हमारे समाज में फन फैला रहे, इस विकराल नाग को मारना होगा। सबसे पहले आवश्यक है प्रत्येक व्यक्ति के मनोबल को ऊँचा उठाया जाए। प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए अपने को इस भ्रष्टाचार से बाहर निकालना होगा। यही नहीं शिक्षा में कुछ ऐसा अनिवार्य अंश जोड़ना होगा, जिससे हमारी नई पीढ़ी प्राचीन संस्कृति तथा नैतिक प्रतिमानों को संस्कार स्वरुप लेकर विकसित हो। न्यायिक व्यवस्था को कठोर करना होगा तथा सामान्य जन को आवश्यक सुविधाएँ भी सुलभ करानी होगी। इसी आधार पर आगे बढ़ना होगा, तभी इस स्थिति में कुछ सुधार की अपेक्षा की जा सकती है।

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