Sunday 29 September 2013

कानून के हाथ लंबे हैं



भारतीय संविधान और उसकी न्याय व्यवस्था अत्यधिक श्रेष्ठ और सक्षम है। यह इतनी सक्षम है कि इसकी तारिफ भारतीय जन के साथ-साथ प्रशासनिक दफ्तरों में पड़ी फाइले भी फड़फड़ाकर करती है। यह वाक्य तो आपने सुना ही होगा मुजरिम चाहे जो भी हो कानून की नज़र से नहीं बच सकता। मैं कहूंगा जी आपको इतना भी नहीं पता कि कानून तो अंधा होता है। जनाब, गौर फरमाइए कि यह इतना दयाल है कि लंबे हाथों से पकड़ तो लेता है। मगर दया भाव से छोड़ भी देता है। बिल्कुल मां की तरह। हाल ही में वसंत विहार सामूहिक दुष्कर्म में नाबालिग को अधिकतम 3 साल की कैद का प्रावधान किया। ठीक उसी तरह कि बच्चा गलत समय गलत जगह पर पहुंच गया अत: उसे माफ करना ही सर्वोचित है। बाकि चार आरोपियों के लिए अभी भी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खुले हैं कि सुबह का भुला अगर शाम को घर आ जाये तो उसे भुला नहीं कहते। उसे तो देर आये दुरुस्त आये माना जाता है। 

राष्ट्रपति भी सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामय:” की राह पर चल रहे हैं व क्षमा याचिका स्वीकार कर सकते हैं। हाल ही में एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रतिवर्ष 784 महिलाएं- पति द्वारा प्रताड़ित, 84- पड़ोसियों द्वारा प्रताड़ित, 22- दुष्कर्म व छेड़छाड़ की शिकार होती हैं। किंतु मनुष्य तो गलतियों का पुतला है; गलतियों से ही सीखता है। जनाब मैं भी इसकी तारिफों के कसीदे कसते नहीं थकता कुछ कहना तो बनता ही है।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर
मुजरिम को सजा नहीं, न्याय भागे अतिदूर

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