Thursday 20 October 2011

लीबियाई तानाशाह कर्नल गद्दाफी की मौत


त्रिपोली। लीबिया के तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी अंतत: विरोधी फौजों के हाथ गुरुवार को मौत के घाट उतार दिए गए। मौत से पहले उन्हें गृहनगर सिर्ते के निकट पकड़ लिया गया था। लीबिया में करीब 40 सालों तक तानाशाही चलाने वाले गद्दाफी के आखिरी शब्द थे-'मुझे मत मारो।' लीबिया के टेलीविजन चैनलों ने गद्दाफी के शव के फोटो सार्वजनिक कर दिए हैं।


गद्दाफी के खिलाफ लीबिया में संघर्षरत और अब सत्ता संभालने वाली नेशनल ट्रांजिशनल काउंसिल [एनटीसी] के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गद्दाफी के दोनों पैरों में गोली लगी थी। इसी के परिणामस्वरूप उनकी मौत हुई। गद्दाफी को उनके गृहनगर सिर्ते के निकट जख्मी हालत में पकड़ लिया गया था। पहले एनटीसी के फील्ड कमांडर जमाल अबु शालाह ने अल-जजीरा को बताया था कि अपदस्थ तानाशाह गद्दाफी को कब्जे में कर लिया गया है। लेकिन अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है कि वह जिंदा है या दम तोड़ चुके हैं। एनटीसी के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी अब्देल माजिद का भी कहना था-'गद्दाफी को पकड़ लिया गया है। उनके दोनों पैर जख्मी हैं। एंबुलेंस से ले जाया गया है।'
माजिद ने बताया कि जिस समय गद्दाफी को पकड़ा गया, उनके सैन्य बल के कमांडर अबु बकर जब्र को मारा जा चुका था। हफ्तेभर भीषण युद्ध झेल रहे सिरते में गुरुवार को गद्दाफी के पकड़े जाने के एनटीसी के दावे के कुछ देर बाद ही उनकी मौत की खबर फैल गई। एनटीसी अधिकारियों ने बताया है कि लड़ाकों द्वारा घिर जाने के बाद गद्दाफी के आखिरी शब्द थे-'मुझे मत मारो।' गद्दाफी के चेहरे पर मौत का खौफ साफ नजर आ रहा था। नाटो और अमेरिकी विदेश विभाग ने गद्दाफी के मारे जाने की पुष्टि नहीं की है। मगर बेनगाजी शहर खुशी मनाते लोग सड़कों पर निकल आए और फायरिंग की।
विद्रोह के आठ महीने
जाहिर हो कि उत्तर अफ्रीकी देश लीबिया में गद्दाफी के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत इसी साल 15 फरवरी को हुई थी। पहले तो लोगों ने सत्ता परिवर्तन को लेकर शांतिपूर्ण तरीके से विरोध शुरू किया। मगर विरोध को गद्दाफी ने सैन्य ताकत से कुचलना शुरू किया तो हालात बेकाबू हो गए और गृह युद्ध छिड़ गया। गद्दाफी विरोधी ताकतों ने बेनगाजी में नेशनल ट्रांजिशनल काउंसिल के नाम से सरकार कायम करने की घोषणा कर दी। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने हस्तक्षेप शुरू किया। गद्दाफी और उनके 10 निकट सहयोगियों की संपत्ति जब्त करने का प्रस्ताव पारित किया। सुरक्षा परिषद ने विरोधियों के खिलाफ सरकार की दमनात्मक कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के लिए संदर्भित कर दिया। 27 जून को गद्दाफी की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी कर दिया गया। इसके बाद इंटरपोल ने भी 8 सितंबर को एक वारंट जारी किया। 19 जून को अमेरिका ने ओडिशी डान के नाम से लीबिया में कार्रवाई शुरू की और 31 मार्च को नाटो ने कार्रवाई की बागडोर खुद संभाल ली। इसके साथ ही गद्दाफी विरोधियों ने बढ़त लेनी शुरू की और 20 अक्टूबर को अंतत: गद्दाफी का खात्मा कर दिया गया।

सौजन्य- दैनिक जागरण 

No comments:

Post a Comment