Wednesday 8 October 2014

     एक और आनंद
आपने बिहार के आनंद कुमार का नाम तो सुना होगा ।सुपर 30 वाले आनंद कुमार बिहार के गौरव  ।आईये आपको एक और आनंद कुमार से मिलवाते है।
   9 फरबरी 2009 को सारण के आदर्श राजकीय मध्य विधालय में जब एक शिक्षक संजय पाठक का आगमन हुआ तो शायद वंहा से गुजरने वाली आवो हवाएँ भी नहीं सोची होंगी की एक नूतन प्यारी सी बदलाव की बयार चलने वाली है ।रोज सूर्योदय वाली किरने भी नहीं अनुमान लगाया होगा की उसकी कुछ तेज चोरी होने वाली है। आपको बता दे की सारण बिहार राज्य में है। सारण का इतिहास तो गौरवमय रहा है। यह राजेन्द्र बाबु की धरा रही है। पर विगत कुछ दशकों से यह अपराध तथा कुछ नामचीन बाहुबलियों के संघर्ष की भुक्तभोगी रहा है और यह बिख्यात से कुख्यात की ओर अग्रसर हुआ है।
   तो बात करते है उस ठंढी बयार की जब संजय पाठक विधालय में नियुक्त हुए तो वंहा उन्होंने कुछ लड़कियों को खेलते हुए देखा । चुकीं पाठक जी को खेलों में रूचि थी  तो उन्हें ऐसा लगा की एक प्रयास किया जाये इन लड़कियों को आगे बढाया जाये ।लेकिन स्कूल में प्रयाप्त सुविधा नहीं थी। जैसे तैसे करके प्रधानाध्यापक के सहयोग से उन्होंने जरुरी सामान एकत्र की और इन प्रतिभाशाली लड़कियों के साथ खेल के इस सफ़र का आगाज कर दिया ।
      संजय पाठक का हौसला जून 2009 में उस समय बुलंद हुआ जब पंचायत युवा क्रीडा में पहली बार यंहा की लड़कियों ने हिस्सा लिया तथा पुतुल और तारा खातून ने उस आभाव ग्रस्त स्तिथि में भी अपनी प्रतिभा का परचम लहराया। पुतुल कुमारी 100 मीटर तथा 200 मीटर में और तारा खातून 800मीटर तथा 1500 मीटर में विजेता बनी। पुतुल तथा तारा ने जिला स्तरीय और राज्य स्तरीय अंतर्जीला प्रतियोगिता में भाग लिया। इनका नाम स्थानीय अखबारों में आने लगा ।इस से उत्साहित होकर आस पास की  अन्य बहुत सारी लड़कियों ने भी खेल में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। अगस्त 2009 में ही करीब 40 से 50 लड़कियां संजय पाठक के पास आई और अलग अलग खेलों के लिये अभ्यास शुरू कर दिया।
     कहते है ना की जन्हा चाह वंहा राह कुछ ऐसा ही हुआ ।संजय पाठक की प्रेरणा लड़कियों के उत्साह तथा कुछ स्थानीय लोगो के सहयोग से एक सपोर्ट क्लब की स्थापना की गयी। इसका नाम रानी लक्ष्मीबाई सपोर्ट क्लब रखा गया। कुछ शुरुआती सफलता से प्रेरित हो कर श्री पाठक ने 19 नवम्बर 2009 को रानी लक्ष्मीबाई फुटबॉल क्लब की स्थापना की गयी। यह क्लब सारण की धरा का पहला महिला फुटबाल क्लब था ।और साथ साथ पहली महिला टीम भी। 2010 में यह बिहार फूटबाल संघ से पंजीकृत हो गया। और फिर शुरू हो गया अभावों पर प्रयासों की जीत का सिलसिला। साथ ही फुटबॉल के सफ़र का एक उन्मुक्त उडान।
    उड़ना और उड़ते रहना यही तो पंक्षी की पहचान होती है। और सच में फूटबाल के ये सभी निर्धन पंक्षी अब आकाश में उड़ने को तैयार थे। इस क्लब की कई लड़कियों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन राष्ट्रीय और अंतररास्ट्रीय स्तर पर दर्शाया ।इस प्रयोग से उत्साहित हो कर संजय पाठक ने अन्य खेलों जैसे हैंडबॉल बॉल बैडमिंटन तथा थ्रो बॉल की भी टीम बनाये। इन सभी में भी यंहा की लड़कियों ने रास्ट्रीय तथा अंतररास्ट्रीय पटल पर अपने गुरु राज्य तथा देश का नाम गौरवान्वित किया। आईये हम इस आधुनिक भागीरथ तथा उनके भागीरथ प्रयास के कुछ परिणामों पर नज़र डालते है।
अर्चना कुमारी--अर्चना इस अभियान की ही परिणाम है। वह फूटबाल खेलती है। अर्चना स्कूल स्तरीय वर्ल्ड कप फुटबॉल खेलने फ्रांस जा चुकी है ।बिहार का प्रतिनिधित्व करते हुए अर्चना कई रास्ट्रीय प्रतियोगितायों में भाग ले चुकी है। अर्चना के पिता की इक छोटी सी दुकान है और इसी दुकान से उसके परिवार का गुजर बशर चलता है।
तारा खातून---- तारा फुटबॉल तो खेलती ही है साथ साथ हैण्ड बॉल में भी बिहार का प्रतिनिधित्व  कर चुकी है। अर्चना की तरह तारा भी स्कूल स्तरीय वर्ल्ड कप फुटबॉल खेलने फ्रांस जा चुकी है। तारा के पिता की पंचर की दुकान है और यही परिवार के भरण पोषण का साधन है।
विक्की कुमारी------विक्की भी फुटबॉल और हैंडबॉल दोनों खेलती है। विक्की राज्य स्तर पर फुटबॉल खेलती है और हैंडबॉल में बिहार का प्रतिनिधित्व करती है। विक्की नेशनल टीम में भी चयनित हुई है तथा नेशनल टीम के साथ मलेशिया खेलने जा चुकी है। विक्की के पिता किसान है।
धर्मशीला-----बहुमुखी प्रतिभा की धनी खिलाड़ी ।धर्मशीला फुटबॉल हैंडबॉल तथा थ्रो बॉल खेलती है। वह इंडिया की थ्रो बॉल टीम में शामिल हो चुकी है और मलेशिया में 5 टेस्ट भारतीय टीम की ओर से खेल चुकी है। इसके अलावे हैंडबॉल के sub juniour national तथा ईस्ट जोन इंटर स्टेट खेल चुकी है। फुटबॉल में वह गॉल्कॆपर है। फुटबॉल में भी स्टेट का प्रतिनिधित्व कर चुकी है। धर्मशीला के पिता मोची का काम करते है।
पुतुल कुमारी----कैरीअर की शुरुआत एथलेटिक्स से। बाद में फुटबॉल खेलना शुरू किया ।इनका चयन बिहार टीम के लिये हुआ ।कई रास्ट्रीय प्रतियोगिता में शामिल ।फिर रास्ट्रीय टीम में भी शामिल हुई और प्रशिक्षण के लिये गांधीनगर गयी लेकिन पासपोर्ट नहीं बनने के कारण खेलने के लिये जॉर्डन नहीं जा सकी।
शकुंतला कुमारी----- ये भी फुटबॉल हैंडबॉल तथा एथलेटिक्स की चैंपियन है। ये बिहार हैंडबॉल टीम की ओर से हिमाचल तमिलनाडु हरियाणा आदि राज्यों में खेलने जा चुकी है। इनका चयन नेशनल टीम के लिये भी हो चूका है। जनवरी 2015 में भारतीय टीम के साथ खेलने जायेंगी। शकुंतला के पिता सब्जी बेचते है और इसी पर पूरा परिवार निर्भर है।
श्वेता कुमारी----अब तक 13 नेशनल  बॉल बैडमिंटन प्रतियोगिता में भाग ले चुकी है। आन्ध्र प्रदेश में इन्हे बेस्ट upcomming खिलाडी का भी ख़िताब मिल चूका है। श्वेता के पिता किसान है।
अमृता कुमारी---अमृता बिहार टीम के साथ कई रास्ट्रीय प्रतोयोगिताओं में भाग लिया है।2013 में उसका चयन इंडियन टीम के लिये हुआ था। एशियन कॉन्फ़ेडरेशन कप खेलने के लिये भी अमृता का चयन हुआ था और वह इंडियन टीम के साथ कोलोंबो में मैच खेल चुकी है। इसमे भारतीय टीम विजेता रहा था। इसमे अमृता को बेस्ट डिफेन्सपप्लेयर का पुरस्कार मिला था।
अंतिम कुमारी---बेहतरीन athlit वर्ष 2013 में रांची में आयोजित ईस्ट जोन एथलेटिक्स में अन्तिमा ने स्वर्ण पदक जीता था। बंगलुरु में कांस्य पदक 200 मीटर रांची में स्वर्ण पदक 2014 में हरिद्वार में 100 मीटर में स्वर्ण पदक। अन्तिमा के पिता तेल बेचते है।
रिंकू कुमारी---रिंकू कुमारी थ्रो बॉल खिलाडी है।
     ये कुछ नगीने थे। इनके अलावे भी बहुत सारी प्रतिभाएं कतार में है। पर संजय जी और इस क्लब का ये स्वर्णिम सफ़र बहुत ही मुश्किलों से भरा रहा है सबसे बड़ी परेशानी समाज की मानसिकता थी। बिहार का सामाजिक आर्थिक तथा राजनीतिक ताना बाना ऐसा बूना है की यंहा लड़कियों को खुले मैदान में अभ्यास करना भी मुश्किल होता था ।यंहा इस माहोल में लड़कियों को पढाया ही इसलिए जाता है की कम से कम उनकी शादी अच्छी जगह हो जाये। इस संकीर्ण मानसिकता में खेल को कार्रिअर बनाना मतलब बिल्ली की गले में घंटी बांधना के बराबर है। जब लड़कियां शॉट में practic करती थी तो कुछ रुध्हीवादी प्रकृति के लोग व्यंग और छिताकंसी करते थे। लड़कियों तथा संजय के चरित्र पर भी उंगली उठाई जाती थी। लोगो का यंही सवाल होता था खेलने से क्या फायदा होगा? शादी ब्याह में दिक्कत होगी। एक और परेसानी जतिबाद की थी ।इनमे अधिकांश लड़कियां निम्न जाति की है। सामंती प्रबृति के लोग इन्हे आगे बढ़ते देख रुंज होते थे और रोज नयी नयी बाधाएं खड़ी करते थे। इन सबके अलाबे संसाधनों की भी बहुत भारी कमी थी। इन प्रतिभाशाली खिलाडियों के अन्दर एक टीश है ना ही इन्हे कुशल प्रशिक्षक खेल सामग्री पोषक आहार और ना ही खेल का मैदान उपलब्ध है। लेकिन अपनी आत्मविश्वास कठिन मेहनत और आँखों में एक सपना लिये संजय पाठक तथा ये लड़कियां संघर्ष कर रहे है। मैच में विरोधी प्रतिदुन्धी के साथ साथ अभावों को भी चारो खाने चित्त कर रही है।
     हम संजय को आधुनिक भागीरथ कहें या दूसरा आनंद कुमार ।पर हम इनके भागीरथ प्रयास को  नज़रन्दाज नहीं कर सकते। हम उनके जज्बे को सलाम करते है। हमें उम्मीद है बिहार और भारतीय खेल प्रशासन एक ना एक दिन इन्हेएइंगित जरूर करेगा। और इन सबके लिये मै बस इतना ही कहूँगा।
            मानव तन है मन ब्याकुल है।
           दृढ विस्वास दिशा निश्चित है।
         लक्ष्य कठिन है लेकिन फिर भी।
        जीवन का संकल्प अडिग है।
       रुकना नहीं चलते रहना है
       मंजील दूर पर दुर्लभ नहीं है। ल

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