Sunday 3 January 2010

प्रयाग में गंगा का अपमान






















गंगा जिसे भागीरथ ने बड़ी मुस्किलो से धरती पे लाया मनुष्य का उद्हर करने के लिए पर इन्सान ने आज गंगा का इतना अपमान किया की गंगा खुद अपनी इस्थ्ती देख के दांग है मरने के बाद भी मानुष को गंगा के किनारे जलना फिर अस्थियों को गंगां में विसर्जन करना ,पाप को हटाने के लिए भी गंगा का सहारा पर इन्सान इतना पापी हो गया है की गगां भी उसका बोझ नही उठा पा रही है अगर यही हॉल रहा तो गंगा शायद हमारे अगली पीडी के लिए गंगा नाले के सामान हो गी. हर- हर गंगे

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