Thursday 29 October 2009

काश अगर हम अनपढ़ रहते(orignal)

काश अगर हम अनपढ़ रहते
जगता ना कोई स्वार्थ ह्रदय में
होता ना कुर्सी का लालच
होते ना फ़िर पाप भी हमसे
काश अगर हम अनपढ़ रहते

होता सहज हमारा जीवन
छल में ध्यान ना मन
कुदरत की गोदी में पलते
काश अगर हम अनपढ़ रहते


पढ़ लिखकर ज्ञानी बन बैठे
रहते अहम में ऐंठे ऐंठे
भावः ना होते अभिमानी से
काश अगर हम अनपढ़ रहते


दीनों का शोषण ना करते
अपने दोष कहीं ना मढ़ते
क्योंकि हम ईशवर से डरते
काश अगर हम अनपढ़ रहते


शिक्षा का कोई दोष नहीं है ।
हमको स्वयं ही होश नहीं है ।
उल्टी गिनती कभी ना करते
काश अगर हम अनपढ़ रहते ।

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