Tuesday 21 July 2015

योग रोग का निदान भी निधान भी

स्वास्थ्य योग मोक्ष का द्वार योग एक व्यवस्थित विज्ञान योग एक अध्यात्मिक प्रकिया है जिस के द्वारा शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाया (योग) जाता है। यह शब्द, प्रक्रिया और धारणा हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में ध्यान प्रक्रिया से सम्बंधित है। यह भारत से बौद्ध धर्म के साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्रीलंका समेत अन्य देशों में भी फैल गया । मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान के निदेशक डॉ. ईश्वर वी. बासवरेड्डी ने योग के विभिन्न आयामों पर चर्चा कि गजेंद्र वीएस.चौहान के साथ उनकी बातचीत: सवाल: योग की यात्रा प्राचीन भारतीय विज्ञान के रूप में लगभग पांच हजार वर्ष से भी पहले आरंभ हुई। लेकिन इसे देश में ही पुन: स्थापित होने में इतना अधिक समय लगा, वहीं पश्चिमी देशों ने इसकी उपयोगिता को स्वीकार किया और इसे आत्मसात किया इसकी क्या वजह है। बासवरेड्डी :- मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि योग को भारत में स्थापित होने में अधिक समय लगा है । यहां के लोग अनेक प्रकार से योग करते हैं । वहीं विदेशों में लोग योग को शारीरिक समस्या व मानसिक तनाव जैसे रोगों के निदान के रूप में देखते हैं । सिर्फ आसन, प्राणायाम व व्यायाम तो एक क्रिया भर है । वहीं भारत के कई क्षेत्रों में आज भी लोग प्राचीन जीवन पद्धति से जी रहे हैं । अगर हम उत्तराखण्ड, महाराष्ट्र या कर्नाटक के किसी भी गांव के पारंपरिक कौटुम्बिक परिवार में जायें, तो देखते हैं कि यहां के लोग सुबह से लेकर रात तक जिस जीवन पद्धति को जीते हैं, वह भक्ति योग है। जहां तक देश में योग को लेकर चर्चा या विरोध का विषय है तो, स्वस्थ चर्चा में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए, क्योंकि तर्क-वितर्क, अच्छे मंथन की निशानी है। विदेशों में जो भी योग का विद्वान माना जाता है, वह केवल योग का एक प्रकार भर ही जानता है। वहीं भारत में योग के विद्वान ज्यादा हैं, जो अपने आप में योग का संस्थान कहे जाते हैं । तो यहां योग पर चर्चा और विरोध होना भी स्वाभाविक है । दर्शन भी तो ऐसे ही शुरू हुआ, इसलिए हमें हर्ष होना चाहिए की योग को लेकर देश में चर्चा है, विरोध नहीं । सवाल : योग कई शाखाओं में विभाजित है । इनमें से पतंजलि और कुण्डलिनि योग की चर्चा अधिक होती है। योग का लक्ष्य और उद्देश्य क्या है । बासवरेड्डी:- योग का लक्ष्य एवं उद्देश्य एक ही है । जीव का अपने सच्चिदानंद स्वरुप को प्राप्त कर आनंदमयी होना । जब हम जन्म लेते हैं तभी से हम दुखों से पीड़ित हो जाते हैं। हम सुख के पीछे-पीछे भागते हैं, लेकिन दुख हमारे पीछे-पीछे दौड़ता है। यही सत्य है। इसलिए सांख्य योग ने तीन तथ्यों का उल्लेख किया है। भौतिक, यौगिक और अध्यात्म आदि। हम केवल भौतिक ताप पर ही विचार करते हैं, वहीं योग इन तीनों तथ्यों पर विचार करता है । यह तीनों ताप निर्गुण हो कर अपने मूल सच्चिदानंद स्वरूप में समावेशित हो जाता है । जब मनुष्य इसे प्रकृति से जोड़ लेता है, तो उसे इन तथ्यों को भोगना पड़ता है। यह दर्शन है, इसलिए योग का लक्ष्य होता है, तथ्यों से मुक्त हो कर अपने मूल सच्चिदानंद स्वरूप में रहना ही योग है । हर योग का अपना स्वरूप व लक्ष्य है। वेदांत में उपनिषद, धर्मसूत्र और अन्त में भगवद्गीता आती है। वेदांत में ध्यान पर जोर दिया जाता है। वहीं किसी अन्य में भक्ति पर जोर दिया जाता है। पतंजलि योग में मानव मन को केन्द्रित कर साधनाओं का निरूपण किया गया। पतंजलि का दर्शन सांख्य था । उसी के आधार पर साधना का निरुपण किया गया । यही कारण है कि आज 2200 वर्ष बीत जाने के बावजूद पतंजलि के सूत्रों पर काफी चर्चा हुई । सवाल : योग में मुद्राओं और ध्यान का विशिष्ट स्थान है, इसका अनुकरण कैसे किया जाना जाहिए। इसके आहार-विहार, यम-नियम क्या हैं ? बासवरेड्डी- योग का सार ही ध्यान है । योग में जो कुछ भी हम करते हैं, वह ध्यान ही है। हठ योग क्रिया में सोवन क्रिया से आरंभ करते हैं। पतंजलि में यम-नियम से आरंभ किया जाता है। उसके बाद शरीर, प्राण और इन्द्रियां आती हैं। मुद्राएं एक विशिष्ट तकनीक होती है, जिसमें आसन और प्राणायाम से प्राण को एक चक्र में जोड़कर उसका निरुपण किया जाता है। इससे मन केन्द्रित होता है। योगियों ने माना है कि ‘चले वाते, चले चित्तम’ जब तक आपका प्राण शरीर चलेगा, मन चलेगा। प्राण यानी वायु को एकीकृत करो, स्थिर करो और नियंत्रित करो इसी सिद्धांत पर योगियों ने पहले आसन, प्राणायाम, बंध, मुद्राएं, धारण, ध्यान और समाधी की दिव्य तकनीक बनाई। ऐसे ही पतंजलि ने सबसे पहले मन को नियंत्रित करने के लिए यम-नियम रखा। बाद में आसन को स्थान दिया। आसन से शरीर की मुद्रा नियंत्रित होती है। आज की जीवनशैली में हम मुद्राओं (पोस्चर) पर ध्यान ही नहीं देते हैं। यही गलत मुद्रा हमारे प्राण को असंतुलित करता है। इसी कारण से लोग बीमार हो रहै हैं। योग एक चक्र है, जिसमें आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारण, ध्यान समाधि समावेशित होते हैं, समाधि उच्चतम श्रेणी है, लेकिन यह ध्यान तक भी जाए, तो मन शांत व निर्मल होता है । ध्यान और योग एक-दूसरे के पूरक हैं, आजकल योग पर जोर है ध्यान पर नहीं । उदारहण के तौर पर देखें तो अगर सिर काट दिया, तो शरीर क्या करेगा, बेकार है, मृतप्राय है। इसलिए योग के साथ ध्यान आवश्यक है । गीता में भी स्वस्थ्य जीवनशैली के लिए चार सूत्र हैं, आहार-विहार, आचार-विचार इसी से जीवन शैली का निर्माण होता है, प्रभाव पड़ता है। आहार-भोजन बनाना, खिलाना और परोसने के दौरान किस प्रकार की भावनाएं थी उसका प्रभाव हमारे आहार पर पड़ता है। विहार - विश्रांति, योग साधना में हमें विश्रांति मिलती है। आचार-विचार- यम-नियम का अर्थ है, क्या करना और क्या नहीं करना है आदि। जो करना है, वह है शौच। योग करने के समय शुद्ध होना चाहिए, संतोष होना चाहिए। योग तप जैसे करना चाहिए। इसलिए हमारे लिए आचार ही यम-नियम हैं । मनोविज्ञान कहता है, हमें दिनभर में 100 विचार आते हैं, जिनमें से 96 विचार व्यर्थ होते हैं, 2 से 3 विचार नकारात्मक विचार होते हैं । अगर कोई व्यक्तिगत तौर पर शुद्ध विचार धारण करने वाला व्यक्ति है, तो एक ही विचार सकारात्मक और शुद्ध आता है। सवाल : योग वैज्ञानिक एवं दार्शनिक शोध है कैसे? बासवरेड्डी - योग दार्शनिक है यहीं पर मैं कुछ लोगों से अलग सोचता हूं । हमारा अध्यात्म और विज्ञान अलग नहीं है । विज्ञान क्या है ? एक प्रायौगिक ज्ञान, सोचने, समझने व अनुभव करने के बाद प्राप्त हुआ है। यही बात योग पर भी लागू होती है। प्रायौगिक ज्ञान से हम पहले किसी विषय वस्तु को सिद्ध करते हैं, उसके बाद आता है तर्क। प्रायौगिक सिद्ध को हम तर्क-वितर्क की कसौटी पर देखते हैं। उसके बाद आती है बुद्धि, जिससे हम उस प्रायौगिक वस्तु के विषय का विश्लेषण करते हैं। योग भी वैसे ही है, जो वैज्ञानिक नहीं है, वह योग नहीं है। योग में जो कुछ भी समावेशित है, वो दर्शन में है और विज्ञान में भी है। हम इसे वर्गीकृत नहीं कर सकते । योग में भी यही विधान है, जो आसन करें उसे वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध करें । योग एक व्यवस्थित विज्ञान है, जिससे चेतन तत्व को देखा जा सकता है। चेतना क्या है, ईश्वर है, और योग उस ईश्वर के लिए ध्यान लगाने का एक साधन है। सवाल : योग आज विश्व स्तर पर वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रूप में स्वीकार्य एवं लोकप्रिय हो रहा है। इस वैचारिक परिवर्तन को आप कैसे देखते हैं। बासवरेड्डी- रोग के विषय में सबसे पहले मेरी दृष्टि रोग से बचाव पर होनी चाहिए । बचाव दो प्रकार के होते हैं, प्राथमिक और द्वितीय । प्राथमिक बचाव का अर्थ है, आप निरोगी हैं और योग से निरोग ही रहेंगे। योग का मतलब केवल आस ही नहीं है, इसमें कुछ आहार-विहार, यम-नियम योग प्राणायाम और ध्यान हर रोज करनी चाहिए। नियमित तौर पर आचार-विचार को सुधारना ही योग है। अगर इसका पालन नहीं करेंगे तो रोग से पीड़ित हो सकते हैं । दूसरा बचाव है प्रयोग के साथ-साथ दवाई भी लेते रहें, इससे रोग का निदान हो जायेगा। रोग का निधान-यानी किसी रोग का योग से मुक्त होना । लेकिन योग में अभी इस पर शोध होना शेष है कि किसी रोग का पूर्ण निधान योग से होता है । अभी योग से डायबिटीज के रोगियों को ठीक तो किया गया है, लेकिन वे लोग योग के साथ-साथ दवा भी लेते रहे हैं। इसलिए यह कह पाना मुश्किल है कि रोग का निदान योग से हुआ या दवाई से । डायबिटीज में कपाल भांति, जल कूंजल, धनुरासन, त्रीकोणासन आदि से निदान हो सकता है। आसन को फलीभूत करने के लिए मन-प्राण और बुद्धि एक रेखा में होनी चाहिए । वृत्ति, स्थिति और विश्रांति की प्रक्रिया का अनुकरण करनी चाहिए। सवाल : आज की भागदौड़ भरी जीवन शैली में योग को कैसे अपनाया जाए । बासवरेड्डी - देखिये दो चीज हमारे हाथ में है, सोना और उठना । मैंने वर्ष 2006 में कॉल सेन्टर में काम करने वाले 100 लोगों पर शोध किया। वह अपने कार्यक्षेत्र में कैसे कार्य करते हैं, क्या खाते हैं, कब सोते हैं, कब उठते हैं आदि। मैंने पाया की उनका दैनिक चक्र ही बदल गया है । मैंने खुद पर भी यह अनुभव किया है कि अगर हम रात को जल्द सोते हैं, और सुबह जल्द उठते हैं तो उसकी ऊर्जा अलग होती है। वहीं रात को जब हम देर से सोते हैं , तो सुबह देर से उठते हैं, उसकी ऊर्जा अलग होती है। जीवन में कार्य क्षेत्र के अनुसार हमें ताल-मेल बैठाना पड़ता है। सुबह के समय 20-25 मिनट सुनिश्चित कर योग कर सकते हैं। सवाल : क्या हमने योग के माध्यम से वास्तव में प्रकृति की ओर देखना प्रारंभ कर दिया है। बासवरेड्डी - योग को जब जीवन शैली के रूप में देखते हैं तो जीवन में चार तत्व आवश्यक रूप से समावेशित हैं, जिसकी वजह से हमारा जीवन प्रभावित होता है- वह है, आहार, निद्रा, भय और मैथुन। इसके अलावा जीवन का सार तत्व कुछ है क्या? आहार यानी जिह्वा पर नियंत्रण, इस नियंत्रण का संचालक है मन। सभी दुखों का कारण भय ही है, जब हमारी आकांक्षा, महत्वाकांक्षा में बदलती है तो भय बढने लगता है। तृप्ति और संतुष्टि के बिना भय से मुक्ति संभव नहीं है, जीवन में जो सबसे बड़ा भय है, वह है मृत्यु। जब योग क्रिया में ध्यान लगाते हैं तब मन एकीकृत होकर शांत हो जाता है, शुद्ध विचारों का आगमन आरंभ हो जाता है, तब भय धीरे-धीरे स्वत: ही पीछे हटता जाता है। मैथुन यानी इन्द्रीय नियंत्रण, योग के माध्यम से जब हम इन सबको नियंत्रित कर लेते हैं , तो जीवन शैली स्वत: परिवर्तित हो कर योगमय हो जाती है। सवाल : मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान में आपके कार्यकाल की उपलब्धि क्या रही है। योग के विकास के लिए और क्या होना चाहिए। बासवरेड्डी - एक राष्ट्रीय संस्थान होने के नाते मुझे खुशी है कि हम केवल यहां पर शैक्षिक पाठ्यक्रम ही नहीं चलाते, बल्कि दूसरे योग संस्थानों को एक आधार भी उपलब्ध करवाते हैं, यह संस्थान अन्य योग संस्थाओं का केन्द्रीय स्थान है। यहां अय्यंगर, श्री श्री रविशंकर, स्वामी रामदेव स्वयं आते हैं और इनके इनके विद्यार्थी भी यहां आकर लाभान्वित होते हैं। हम डिग्री व डिप्लोमा आदि पाठ्यक्रम चलाते हैं। हालांकि हमारे पास उच्च प्रशिक्षण प्राप्त कर्मचारियों की कमी है, जिसके लिए सरकार से बातचीत चल रही है । रोग निदान के लिए हम अस्पतालों मे योग थैरेपी केन्द्र चला रहे हैं, बड़े अस्पतालों में एडवांस योग थैरेपी व रिसर्च केंद्र संचालित है। सेना के लिए सियाचीन जैसे क्षेत्रों में भी योग का प्रबंध किया है। मधुमेह जैसे रोगों के लिए योग की संरचना तैयार की है। विम्हान्स (विद्यासागर इंस्टीट्यूट ऑफ मेन्टल हेल्थ न्यूरो एंड अलायड साइंस) मेंटल हेल्थ के लिए योग का प्रबंध किया। संस्थान में मौलिक पाठ्यक्रम सबके लिए समान है। पैरा मिलिट्री के लिए पाठ्यक्रम चलाया । सवाल : योग को जिस तरह से विश्वस्तर पर मान्यता मिली है, इसके भविष्य के बारे में बताएं। बासवरेड्डी - सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) एवं अन्य कार्यक्षेत्रों की तरह योग भी स्वास्थ्य से संबंधित एक कार्यक्षेत्र है। आने वाले समय में इसकी मांग बढेगी। कृषि क्षेत्र में उपयोग होने वाला रसायनिक उर्वरक, बढ़ता प्रदूषण इससे मुक्ति या निदान व निधान के लिए हमें योग की शरण में आना ही होगा। आज हेल्थ सेक्टर महंगा हो गया है। इसलिए योग एक अच्छा व सस्ता साधन है। प्रीवेंशन इज द बेस्ट मेथड (रोकथाम इलाज से बेहतर है)। हमसे बातचीत करने के आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

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