Tuesday 17 February 2015

आम से खास हुई आपकी सरकार

रामलीला मैदान मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए अरविंद केजरीवाल ने सार्वजनिक तौर पर मंच से अपने वादों व आशाओं और आशंकाएं के विषयों को प्रमुखता से जगह दी और उन्हें बिना किसी लाग लपेट के जाहिर भी कर दिया। इसमें कोई संदेह की भी बात नही ं है की जिन वादों की गाड़ी पर सवार होकर 67 सीट की रफ्तार से सत्ता में आई है, उस प्रचंडता और वादों को पूरा करने और इन वादों को पूरा करने में आने वाली अड़चनों को दूर करने की रणनीति में आम आदमी पार्टी के अन्र्तमन में डर और घबराहट होना स्वाभिवक है, और जैसे-जैसे समय निकलेगा यह घबराहट दबाव का रूप लेने लगेगा जो घटेगा नहीं बढे़गा ही। इन नये गढे विचारों और राजनीति की नई पारी में निसंदेह पार्टी विचारो से ज्यादा सरकार इनके कार्यन्वन पर ध्यान देना चाहती है। राजकाज के इसी जोश में शायद आम आदमी पार्टी द्वारा दिल्ली विधानसभा में मीडिया को प्रतिबन्धित किया है। आप के इस ऐलान से ऐसा लगता है कि आप यह कहना चाहती है कि मीडिया उन्हें किसी बात के लिए मजबूर नहीं कर सकता। लेकिन आप को यह नहीं भूलना चाहिए कि मीडिया सरकार और जनता के बीच सेतू का काम करता है,और यह वहीं सेतू है जिसने आप को आप बनाया । न्यूज चैनलों और अखबारों ने शुरू से ही आम आदमी पार्टी को एक आंदोलनकारी और जनहित मेें सोचने वाली पार्टी के रूप में जनता के सामने पेश किया। आप को जिस तरह हाथों-हाथ लिया, उसे जितनी कवरेज दी , उससे आप को एक विश्वसनीयता मिली। यह मीडिया ही था जिसने आम आदमी पार्टी को दिल्ली मेें सफल राजनीतिक पार्टी की तरह प्रचारित और प्रतिष्ठित किया। दिल्ली की राजनीति और चुनावों मेें ‘मीडिया हाइप’ का मजा ले चुके आम आदमी के आम से खास नेताओं को अब ‘मीडिया पर रोक ’ की बात किस मुंह से कर रहे हैं? बहुमत की सरकार चलाने का जो अति विश्वास ह्यआपह्ण सरकार में दिख रहा है, उतना शायद ही कभी किसी सरकार में दिखा हो। मीठा-मीठा गप और कड़वा-कड़वा थू, यह कैसे चलेगा? यह सही है कि मीड़िया कभी-कभी अति कर देता है और हर सवाल का जवाब तुरंत चाहता है । मगर इस का जवाब मीडिया पर रोक लगा कर नहीं दिया जा सकता है। यह कुछ ऐसा ही है कि राजनीति गंदी हो तो हम जाएंगे ही नहीं। अरविंद केजरीवाल राजनीति की गंदगी साफ करने आए हैं, उनसे अनुरोध है कि एक नई तरह की गंदगी न फैलाएं । मीडिया विधान सभा में नहीं घुसेगा। कैबिनेट मीटिंग कवर नहीं करेगा और न ही उसे मंत्री से सवाल पूछने का कोई हक है। अरविंद केजरीवाल का शपथ वाले दिन यह कहना की हम राजनीति घमंड से दूर रहेगे बेमानी लगने लगा है। आज खुद को आम आदमी की पार्टी कहलवाने में गर्व करने वाली पार्टी को भी खास लगने व दिखने वाले राजनीति अजगर अपने लपेटे मेें लेने लगा है, ऐसा लग रहा है । देश की अन्य दलों से अलग सोच रखने का शोर मचाने वाली आप निसंदेह कई पुरानी परिपाटी को तोड़ने में कामयब रही है । इस नये करने के आवेश में आम आदमी पार्टी अपने सोशल मीडिया पेज पर कैबिनेट का विडियो अपलोड करके यह दिखाना चाहती है कि वह सरकार को लोगों तक प्रिन्ट व इलैक्ट्रोनिक मीडिया के समान्तर सोशल मीडिया के माध्यम से पहुंचा सकती है। आम आदमी का यह कदम घातक सिद्ध हो सकता है। सोशल मीडिया ने अभी इतनी पकड़ नही बनाई है कि वो आम जन तक समानांतर मीडिया के साथ-साथ पहुंच बना लेगी इस मे अभी वक्त लगेगा। आम आदमी के संयोजक और मौजूदा मुख्यमंत्री को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह अपनी पार्टी सहित जनता से विधान सभा चुनाव में हर चुनावी मंच से अपनी भाग जाने की प्रवृति के लिए माफी मांग चुके है। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर जनता सौ साल पुरानी पार्टी को तव्जे नही देती है और मोदी जैसे विश्व प्रसिद्ध नेता को दरकिनार कर सकती है तो आप की आप तो अभी पैदा हुई पार्टी है। इतना ही नहीं पार्टी ने फरमान जारी कर अपने सभी विधायकों को मीडिया से दूरी बनाने का निर्देश दिया है। पार्टी का कहना है कि दिल्ली सरकार या विधायक से जुड़ी किसी भी प्रकार की जानकारी केवल वरिष्ठ व संबंधित विषय के जानकार ही देंगे। किसी भी विधायक को पार्टी की नीति व कार्य से संबंध सूचना मीडिया को देने से मनाही है। पार्टी नेताओं का कहना है कि पिछले बार चुनाव जीतने के बाद अधिकतर विधायकों के मीडिया में गलत बयान देने के कारण विवादों में आ गए थे। ऐसे में अभी से सभी विधायकों को दूर रहने का निर्देश जारी किया गया है। यहां तक की अरविन्द केजरीवाल भी सीधे तौर पर मीडिया से बात नहीं करेंगे। मीडिया जगत में लंबा समय गुजार चुके मनीष सिसोदिया को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है। वहीं सरकार से जुड़ी सभी बातें वही मीडिया के सामने रखेंगे। वहीं पार्टी से जुड़े मामले को आशुतोष व नागेन्द्र शर्मा मीडिया के सामने रखेंगे। मगर हर काम में पारदर्शिता बरतने वाली और अन्य पार्टियों को इस पारदर्शिता पर चुनौती आम आदमी पार्टी ने खुद मीडिया को प्रतिबन्धित कर इस पारदर्शिता पर परदा डालने की कोशिश कर रही है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके आम से खास बनने की राह पर बढ रहे सिपाहसलारों को यह ध्यान रखना चाहिए कि माना मीडिया न सरकार बना सकती है न गिरा सकती है। लेकिन सवालों की तपिश और जवाबों की जलालत में सरकारें खुद ही गिरती-उठती हैं।

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