लेकिन, क्या शर्मिंदा
होने से या सिर झुका लेने से हम सब पाक- साफ़ हो सकते हैं? नहीं! हमें अपनी आखें और
कान खुले रखने होंगे। तिनके के गिरने की आवाज़ तक को सुनने के लिए चौकन्ना होना होगा।
जिस कालोनी, गाँव और शहर से सड़के गुजर रहीं हैं और जहाँ से भेडिये गुज़र रहे हैं
,जहां दर्द भरी चीखें दब कर रह गई है , हमें उन सड़कों, घरों, होटलों पर पैनी नज़र
रखनी होगी। ऐसी किसी भी घटना पर पलटवार कर जवाब देना होगा !
सियसी गलियारों में
खडे़ होकर मात्र सम्वेदनाऐं प्रकट करने से काम नहीं चलेगा। हमें लोक नेता के रुप में
अपने भितर झाँकना चाहिए। एक लोक नेता की सुरक्शा से अधिक जरुरी है एक महिला , एक बच्चे
और एक परिवार की सुरक्शा । लोक नेताओं को बदलना होगा और उन्हें यथार्थ में जन सेवक
बनना होगा!
पुलिस बैरिकेड लगाती
है, साधारण व्यक्ति जो स्कूटर पर जा रहा है, बडी मुस्तैदी के साथ जाँच के नाम पर परेशान
करती है। परन्तु तेज़ गति से चलने वाले, काले शीशों वाले, लाल बत्तियों वाले वाहनों
को सैल्यूट मारती है क्यों कि शायद से उनके लिये फायदेमन्द होती है ।
हम सरकार, पुलिस या
किसी संस्था के भरोसे अपनी सुरक्शा नहीं छोड़ सकते। हमें अपनी सुरक्शा के लिये स्वयं
भी चौकन्ना रहने की जरुरत है। हमें हर घडी - हर पल चौकन्ना रहना होगा और सम्भल कर चलना
होगा वरना सड़कों पर दरिंदे घुमते रहेंगे, घटनाऐं होती रहेंगी, महिलाऐं और बच्चे शिकार
होते रहेंगे, फिर भी दिल्ली खामोश रहेगी।
परंतु अब दिल्ली को
अपनी खामोशी तोड़नी ही होगी।
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