गंगा जिसे भागीरथ ने बड़ी मुस्किलो से धरती पे लाया मनुष्य का उद्हर करने के लिए पर इन्सान ने आज गंगा का इतना अपमान किया की गंगा खुद अपनी इस्थ्ती देख के दांग है मरने के बाद भी मानुष को गंगा के किनारे जलना फिर अस्थियों को गंगां में विसर्जन करना ,पाप को हटाने के लिए भी गंगा का सहारा पर इन्सान इतना पापी हो गया है की गगां भी उसका बोझ नही उठा पा रही है अगर यही हॉल रहा तो गंगा शायद हमारे अगली पीडी के लिए गंगा नाले के सामान हो गी. हर- हर गंगे
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