1973 में बनी गरम हवा एक बार फिर सिनेमाघरों में लगी है। भारत व पाकिस्तान विभाजन की पृष्ठभूमि पर बनी इस्मत चुगताई की एक अप्रकाशित कहानी पर आधारित फिल्म है। इस फिल्म में बलराज साहनी के शानदार अभियान को आज तक सरहाया जाता है। देश विभाजन के बाद एक मुस्लिम परिवार का भारत मेें रहने का फैसला,उनके द्वारा सांप्रदायिक माहौल में पैदा हुई तल्खी को झेलना,का न केवल मार्मिक चित्रण है बल्कि उस गरम और बेहद शुष्क काल खण्ड़ का सजीव चित्रण भी जहां पर इंसन चाहकर भी इंसानियत नहीं निभा पा रहा था।
यह फिल्म अपने विभाजन की पृष्ठभूमि के अलावा अपने संवादों के लिए भी जानी जाती है। जो उस समय के माहौल के हरेक दृश्य को संवादों के जरिये से पर्दे पर उतारा गया है। इसमें बलराज साहनी और तांगेवाले की बातचीत शामिल है, जिसमें तांगेवाला कहता है, बड़ी गर्म हवा है मियां,जो उखड़ा नहीं सूख जावेगा मियां। इन संवादों के अलावा आगरा को फिल्म का घटनास्थल बनाया गया है। वहां की हरेक जगहा जैसे ताजमहल,फतेहपुर सीकरी, सलीम चिश्ती की दरगाह और आगरा की गलियों का बहुत बारीकी और सजीवता के साथ चित्रण घटनाक्रम को आगे बढ़ाने में मदद ही नही करता उसकी ऐतिहासिकता भी बताता है।
इन बातों के अलावा फिल्म के निर्माण और प्रसारण से भी कई रोचक तथ्य जुड़े हैं,कहा जाता है कि फिल्म निर्माता निर्देशक एमएस सथ्यू कई कलाकारों को उनका महेनताना नही दे पाये थे। शुरू में इस फिल्म को रिलीज करने के लिए जरूरी सर्टीफिकेट तक नहीं मिल पाया था। एक साल लम्बे संघर्ष के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पहले खुद यह फिल्म देखी तब इस फिल्म को रिलीज करने का अधिकार मिला,मगर फि र भी यह फिल्म यूपी में रिलीज न हो सकी।
अब 41 साल बाद इस फिल्म को फिर से रिस्टोर कर के दिल्ली सहित आठ मेट्रोज में रिलीज किया गया है। इस फिल्म की चौंकाने वाली बात यह की तब मात्र 10 लाख में बनी इस फिल्म के रिस्टोरेशन पर एक करोड़ रूपये खर्च हुए है और रिस्टोर करने में डेढ़ साल लगा।
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