कृष्ण चंदर की लेखनी का जादू ही है जो आज भी उनकी कहानियां व उपन्यास आज भी उतनी ही शिद्दत से पढे जाते है। उनकी की कलम से निकले मोहब्बत के अहसास आज भी उतने ही ताजे है, जितने उन्होने लिखते वक्त जिये होगें उन्होंने प्यार भरे अफसानों को जिस तरह से दिलों में उतरकर चांद की ठंडक से रूह में बसाया उतनी ही शिद्दत से जिंदगी की दुश्वारियों को पेश किया, उनकी रचनाओं मेंं जहां जिंदगी की उबड़-खबड़ राह है तो वहीं मुहब्बत के रेशमी अहसास है। उन्होंने अपनी रचनाओं में इस तरह पेश किया कि पढ़ने वाला उसी में खोकर रह गया। इनकी रचनाओं में हर एक पाठक अपने आपको शामिल पाता है, चाहे वो फि र मोहब्बत के किस्सें हो या फिर जिंदगी की दुश्वारियां हो। उनके उपन्यास मिट्टी के सनम में एक नौजवान की बचपन की यादें हैं, जिसका बचपन कश्मीर की हसीन वादियों में बीता। इसे पढ़कर बचपन की यादें ताज़ा हो जाती हैं। इसी तरह उनकी कहानी पूरे चांद की रात तो दिलो-दिमाग़ में ऐसे रच-बस जाती है कि उसे कभी भुलाया ही नहीं जा सकता है
भारतीय साहित्य के प्रमुख स्तंभ यानी उर्दू के मशहूर अफ़साना निग़ार कृष्ण चंदर का जन्म 23 नवंबर, 1914 को पाकिस्तान के गुजरांवाला जिले के वज़ीराबाद में हुआ। उनका बचपन जम्मू कश्मीर के पुंछ इलाक़े में बीता। उन्होंने तक़रीबन 20 उपन्यास लिखे और उनकी कहानियों के 30 संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनके प्रमुख उपन्यासों में एक गधे की आत्मकथा, एक वायलिन समुंदर के किनारे, एक गधा नेफ़ा में, तूफ़ान की कलियां, कॉर्निवाल, एक गधे की वापसी, ग़द्दार, सपनों का क़ैदी, सफ़ेद फूल, प्यास, यादों के चिनार, मिट्टी के सनम, रेत का महल, काग़ज़ की नाव, चांदी का घाव दिल, दौलत और दुनिया, प्यासी धरती प्यासे लोग, पराजय, जामुन का पेड़ और कहानियों में पूरे चांद की रात और पेशावर एक्सप्रेस शामिल है
उनका उपन्यास एक गधे की आत्मकथा बहुत मशहुर हुआ। इसमें उन्होंने हिंदुस्तान की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को व्यंगात्मक शैली में चित्रित किया है। प्रख्यात साहित्यकार बेकल उत्साही ने कृष्ण चंदर का जिक्र करते हुए एक बार कहा था, यह क़लमकार वाक़ई अल्फ़ाज़ का जादूगर था, जिसके शब्दों का जाल पढ़ने वाले को अपनी तरफ़ बरबस खींच लेता था। इसी तरह उनके समकालीन उर्दू उपन्यासकार राजेंद्र सिंह बेदी ने भी एक बार उनसे कहा था कि सिर्फ़ शब्दों से ही खेलेगा या फिर कुछ लिखेगा भी। बेकल उत्साही ने एक लेखक के तौर पर कृष्ण चंदर की सोच के बारे में कहा कि उन्होंने मज़हब और जात-पात की भावनाओं से ऊपर उठकर हमेशा इंसानियत को सर्वोपरि माना और इसी को अपना धर्म मानकर उसे ताउम्र निभाया। कृष्ण चंदर हिंदुस्तान और पाकिस्तान के अलावा रूस में ख़ासे लोकप्रिय थे। उन्होंने जीवन के संघर्ष और जनमानस की हर छोटी-बड़ी परेशानी का अपनी रचनाओं में मार्मिक वर्णन किया। उन्होंने बंगाल के अकाल पर अन्नदाता नाम से कहानी लिखी। इस पर चेतन आनंद ने 1946 में धरती के लाल नाम से एक फिल्म बनाई। उन्हें 1969 में पद्मभूषण से नवाज़ा गया। 8 मार्च, 1977 को मुंबई में उनका निधन हो गया
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