Friday, 24 October 2014

गोवर्धन  पूजा

प्रकृति हमारे जीवन का  आधार है । हमारे जीवन व्यवस्था को तथा  संसार को खुशहाल और समृद्ध बनाने में  मनुष्यों के साथ साथ पशु पंक्षियों तथा पेड़  पौधे का  अनमोल योगदान होता है। हमारे हिन्दू धर्म का दर्शन रहा है की हम प्रक्रृति के महत्व तथा उसके महत्ता को आस्था तथा श्रधा के रूप में दर्शाते है। हम अपनी आस्था तथा उनकी महत्ता को उजागर करने के लिए पेड़ पौधे तथा जानवरो को भी भगवन का दर्जा दे देते है और उन्हें पूजते है। इस परम्परा के बहुत ही अद्भुत उदहारण हम अपने धार्मिक मान्यताओ में देखते है। हम इन मान्यताओं को खास पर्व तक का रूप दे देते है जैसे नाग पंचमी गोवर्धन पूजा  या नीम के  या पीपल के पेड़ को धार्मिक महत्व  देना । कहने के लिए तो यह बस एक धारणा  मात्र  है। शायद इस भौतिकवादी  तथा वैज्ञानिक  काल  में हमें ये आतार्तिक लगे लेकिन इन उत्सवों का धार्मिक के  साथ साथ सामाजिक तथा वैज्ञानिक महत्व भी है।                                        इनका महत्व तथा ये खास उत्सव मनुष्य तथा प्रकृति बीच समन्वय तथा सहकारिता की  वकालत करता है। ये धार्मिक पर्व प्रकृति तथा मनुष्य के बीच संतुलन तथा संतुलन व्यवस्थित न होने पर इनके गंभीर परिणामो की चेतावनी की कहानी तथा भविष्यवाणी करते है। ऐसी प्रकृति तथा मनुष्य के अटूट रिश्ते की कहानी दीवाली के कल हो कर मनाई जाने वाली प्रसिद्ध गोवर्धन पूजा भी  कहती है। आइये आज गोवर्धन पूजा के महत्व इतिहास तथा आज के परिवेश में यह कितना महत्वपूर्ण है इसकी चर्चा करते है।                             गोवर्धन का दो मतलब निकलता है । एक तो गोवर्धन पर्वत जिसका पौराणिक आर्थिक तथा सामाजिक महत्व है। दूसरा अर्थ गो +वर्धन गो अर्थात गाय  वर्धन का मतलब पोषण । दोनों ही अर्थ भगवन कृष्णा से सम्बंधित है। गोवर्धन पूजा को लेकर बहुत सी पौराणिक कथाएं जुडी है। कहा जाता है द्वापर में भगवन कृष्णा अवतरित हुए थे।  इस कल भगवन इंद्र की पूजा होती थीं । इंद्र वर्षा के देवता माने जाते है। कहते है की इंद्र को अहंकार आ गया थ। इंद्र अपने क्रोध का भय दिखा कर खुद मान  मर्यादित करवाता थ। कृष्णा को यह पसंद नहीं थ। उनका मत था  इंद्र अप्रतक्ष्य देव है तथा  वर्षा करवाना इनका कार्य ही है। ये कोई  महत्ता नहीं है। भगवन का तर्क था की इनसे ज्यादा महत्वपूर्ण गो माता तह गोवर्धन पर्वत है। गोवर्धन गौ को भोजन की  व्यवस्था करता है तथा गाय माता  अमृत स्वरुप दूध दे कर हमें पोषित करती है । श्री कृष्णा ने इंद्र की पूजा बंद करवा दी  इससे क्रुद्ध हो कर इंद्र गोकुल में प्रलयकारी वर्षा प्रारम्भ कर दिए । लगातार वर्षा से प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो गयी जान मानस पीड़ित होने लगे । इंद्र लगातार सात दिनों तक अपने कार्य का दुरूपयोग करता रहा । तब श्री कृष्णा अपने उंगली से गोवर्धन पर्वत उठा लिए । इस पर्वत के निचे गोकुलवासी  पशुओं के साथ आकर रक्षित हुए ।अपने  प्रयास में असफल हो   कर  इंद्र लज्जित हुआ तथा यह मान  लिया की यह कोई इंसान नहीं साक्षात भगवन है। कहते है की जब इंद्र मुश्लाधार वर्षा करवा रहा था उस समय भगवन का सुदर्शन गोवर्धन के ऊपर वर्षा को नियंत्रित कर रहा था तथा शेष नाग मेड़ो तक   पानी पहुँचाने का काम कर रहे थे । और उसी दिन से गोवर्धन पूजा की  परंपरा विकसित हुई ।                                                                                                                                                                     गोवर्धन पूजा मुख्यतः पंजाब हरयाणा उत्तर प्रदेश तथा बिहार में  मनाया जाता है। महाराष्ट्र में यह बलि प्रतिपदा के नाम  से मनाया जाता है और इस दिन पति अपनी पत्नियों को उपहार देते है। हरयाणा तथा गुजरात  यह नव वर्ष के रूप में भी मनाया जाता है क्योंकि विक्रम संवत इसी  दिन से शुरू हुआ था ।
              इस  पूजा का उदेश्य यही है की  हमें पर्वत तथा पशुओं के योगदान को स्मृति में रखना ही होगा । इसी कारण इस दिन गाय  बैल को नहा  कर रंग  लगाया जाता है तथा  गले की रस्सी को बदला है । गाय और बैल को इस दिन चावल तथा गुड  खिलाया जाता है।
               हम गोवर्धन पूजा का महत्व सिर्फ धार्मिक रूप में नहीं देख सकते इसके और  सामाजिक तथा प्राकृतिक आयाम भी है। हम इस दिन गायों की पूजा करते है ।शास्त्रो में  गाय को उतना ही पवित्र माना  गया है जितना की नदियों में गंगा को । गाय को  माता लक्ष्मी का स्वरुप भी कहा गया है  देवी लक्ष्मी जिस प्रकार  सुख समृधि  देती है उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रुपी धन  प्रदान करती है। गाय सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय तथा आदरणीय है। हम   इन्हे माँ का दर्जा  देते है ।
                     हमारे देश में गो हत्या पर प्रतिबन्ध है पर हमारे देश  के कई हिस्से में चोरी छिपे गो हत्या की जाती है । आइये हमारे हिन्दू धर्म  इस अद्भुत दर्शन जिसमे हम पर्यावरण  की तथा प्रकृति की सहज रिश्ते की बात करते है को एक संकल्प पर्व के रूप में मनाएं । हम एक संकल्प ले की हम अपने स्तर पर  गो रक्षा की भरपूर कोशिश करेंगे तथा प्रकृति  मनुष्य के सम्बन्ध को और अधिक सहज बनाने का  प्रयास करेंगे
             
         

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