आतंकवाद संभवत उतना ही पुराना है जितना पुराना स्वय मनुष्य। लेकिन ११ सितम्बर को न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर तथा पेंटागन पर हुए आतंकवादी हमले विश्व की सर्वाधिक भयानक और घिनोनी आतंकवादी घटना के रूप में याद किये जायेंगे। जिसमे पलक झपकते ही हजारों लोग मौत की गोद में सो गए। ये लोग किसी एक देश या धर्म से सम्बंधित नहीं थे, बल्कि विश्व के विभिन्न धर्मों से जुड़े हुए ऐसे मासूम नागरिक थे जो लगभग बीस देशों से आये थे।
यह घटना एक और सबक भी सिखाती है की सापों को पालने वाला एक न एक दिन स्वयं उसका शिकार बन जाता है। अफगानिस्तान में सोवियत संघ के प्रभाव को कम करने और अपना वर्चस्व स्थापित करने क लिए अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसी सी. आइ .ऐ ने सउदी arबी के आतंकवादी बिन लादेन को प्रशिक्षण दिया तथा धन और हथियार मुहैया कराकर उसे अफगानिस्तान में रूसियों के सामने खड़ा कर दिया। आज वाही बिन लादेन अमेरिका को चाहिए -जिन्दा या मुर्दा , क्योंकि वर्ल्ड ट्रेड टावर पर किये गए हमले के लिए अमेरिका उसे ही जिम्मेदार मानता है।
यदि हम आतंकवाद के इतिहास पर नज़र डालें तो युग में , आतंकवाद की पहचान इसराइल और फिलिस्तीनियों के झगड़े के रूप में कर सकते हैं ,उसके बाद श्री लंका में होने वाली जातीय हिंसा इसका दूसरा रूप दिखाती है। आतंकवाद के मूल में हमेशा से ही आर्थिक विषमता तथा राजनेतिक दमन रहा है लेकिन शअस्तर क्रन्तिकारी आन्दोलन और आतंकवाद के बीच हमे एक विभाजन रेखा खीचनी होगी। ब्रिटिश हुकूमत भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के आन्दोलन में आतंकवाद की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आ सकता। दो दशक पहले ,जब पंजाब में आतंकवाद ने सर उठाया था तो उसके मूल में आर्थिक विषमता और बेरोजगारी थी। पडोसी शत्रु देश पाकिस्तान ने इसमें साम्प्रदायिकता का जहर मिलकर इसे एक नया रूप देने की कोशिश की लेकिन वह कामयाब नहीं हुआ और १०-१२ वर्षों तक अपना घिनोना चेहरा दिखाकर इस आतंकवाद ने दम तोड़ दिया।
आधुनिक भारत के इतिहास में १९६७ का विशेष महत्व रखता है जब बंगाल के एक छोटे से गाँव "नक्सलबाड़ी " से एक किसान आन्दोलन शुरू हुआ जिसने बाद में लगभग पुरे देश में फेलकर एक आन्दोलन से आतंकवादी हिंसा का रूप ग्रहण किया। उस समय नक्सलवादी आन्दोलन एक केंद्रीय नेत्रत्व के अंतर्गत शुरू हुआ था लेकिन बाद में उसके अनगिनत टुकड़े हो गए , ये सभी गुट अपनी रोज्मरा की जरूरतों को पूरा करने के लिए लूटमार ,फिरोती जैसी आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो गए तथा इनका राजनेतिक उदेदेश्य लुप्त हो गया। आज कश्मीर के बाद नक्सलवादी हिंसा आतंकवाद का दूसरा सबसे घिनोना चेहरा है।
छठे दशक तक आतंकवाद देसी और परंपरागत तरीकों पर निर्भर था जिसमे व्यक्तिगत हिंसा ही प्रमुख होती थी लेकिन उसके बाद यह हाईटेक हो गया। पूरी दुनिया में जो परिवर्तन हुए उससे उन्हें अत्याधुनिक हथियार और धन आसानी से मुहैया होने लगा। आज स्थति यह है की भारत सहित दुनिया भर के अधिकांश आतंकवादी संगठनों के पास आणविक हथियारों को छोड़कर सभी प्रकार के अत्याधुनिक हथियार मोजूद हैं। यहाँ तक की जैविक और रासायनिक हथियार भी। इन हथियारों को खरीदने के लिए उनके पास धन की कोई कमी नहीं है, कई देशों में आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने के लिए शिविर लगाये जाते हैं। पाकिस्तान ,अफ्गानितन सहित खाड़ी के कई देश आतंकवादियों के अभ्यारण बने हुए हैं। जहाँ से पुरे विश्व में आतंकवाद का निर्यात किया जाता है ।
आज दुनिया के अधिकांश अपराधी ,तस्कर और नशीली दवाओं के व्यापारी आतंकवाद के फलने -फूलने के लिए अनुकूल वातावरण बना रहे हैं। आतंकवादियों के पास इतनी तरह के आधुनिक हथियार मौजूद हैं जो दुनिया के अधिकांश विकास शील तथा गरीब देशों की पुलिस और सेना के पास भी नहीं है। कमजोर देशों में तख्ता पलट करना तथा निर्दोष लोगों की हत्या करना इनके लिए आम बात है। अब वेह दिन दूर नहीं जब इनके पास आणविक हथियार भी उपलब्ध होंगे तथा ये विश्व शांति के लिए भयानक चुनोती बन जायेंगे। अभी परिस्थितियों का बेकाबू होना शुरू हुआ है ,अमेरिका और दुसरे विकसित देश अपने स्वार्थों को छोड़कर आतंकवाद फेलाने वाले देशों को सहायता देना बंद करें , तथा पुरे विश्व में आर्थिक और जातीय समानता के लिए काम करें , तभी आतंकवाद को फैलने से रोका जा सकता है ,अन्यथा आतंकवाद का यह दैत्य पुरे विश्व को निगल जायेगा ।
पुरे , विश्व में शांति का प्रसार करके आर्थिक तथा तकनिकी प्रगति का लाभ सभी तक पहुंचाकर ही इस समस्या का स्थायी हल खोजा जा सकता है। जब तक दुनिया में जाती और नस्ल के आधार पर भेदभाव होता रहेगा , आर्थिक विषमता बनी रहेगी , धार्मिक कट्टरता लोगों को गुमराह करती रहेगी तब तक आतंकवाद पनपता रहेगा।
यदि एक वाक्य में कहना हो तो वसुधेव कुटुम्बकम की भावना ही आतंकवाद जैसी भयावह समस्याओं का स्थायी विकल्प हो सकती है।
nice effort
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