Saturday, 17 September 2016
स्वच्छ भारत अभियान बनाम हमारा चुनावी आचरण पिछले दिनों सम्पन्न हुआ दिल्ली विश्ववविद्याल छात्रसंघ (डूसू) चुनाव हमारे मन मष्तिष्क पर कुछ यक्ष प्रश्न छोड़ गया कि क्या शिक्षा के इन मंदिरों में हम देश का बौद्धिक वर्ग तैयार कर रहे हैं क्या वो स्वयंभू विकसित भविष्य उसके अनुसार आचरण भी कर रहा है या नहीं ????? दिल्ली हमारे देश की राजधानी है । जैसे यह विश्व के सर्वश्रेष्ठ नगरों में कहीं कोई स्थान नहीं बना पायी इसीप्रकार दिल्ली विश्वविद्यालय देश के चुनिन्दा सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में है किन्तु यह भी विश्व के सर्वश्रेष्ट विश्वविद्यालयों के आगे कहीं नहीं ठहराता ।क्यों ? क्यों कि किसी स्थान या संस्थान को सर्वोत्तम वहां की व्यवस्था तथा मानवीय आचरण ही बनाता है । मैं यह प्रश्न इसलिए उठा रहा हूँ क्यों कि पिछले दिनों सम्पन्न हुआ दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव यही दर्शा गया कि देश का सर्वोत्तम शिक्षित बौद्धिक युवा जिस शिक्षा,संस्कार तथा देश के उत्थान में भूमिका निभाने को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय आता है उसका आचरण व व्यवस्था का प्रवंधन ही शहर व संस्थान का भविष्य तथा विश्व में स्थान तय करता है । मैंने देखा कि विश्वविद्यालय के छात्र जो अधिकाशतः दिल्ली मेट्रो का उपयोग आवागमन के सुलभ साधन के रूप में करते हैं । जब वे मेट्रो में दिखाई देते हैं तव उनका आचरण ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र न होकर प्रतिष्ठित आक्सफोर्ड, स्टेनफोर्ड, कैम्ब्रिज इत्यादि विश्वविद्यालयों के छात्र हों और वे मानव संस्कारों के विकसित स्वरूप हों किन्तु मेट्रो स्टेशन से बाहर आते ही उनका चुनावी वातावरण में शामिल होते ही उनके आचरण में स्वछंदता, उन्माद, लापरवाह व असभ्य कार्य संस्कृति प्रदर्शन करते दिखते हैं उनका यह आचरण देश की प्रतिष्ठा और उसको सर्वश्रेष्ट बनाने के स्तर को और दूर ले जाने वाले प्रतीत होते हैं । चुनाव प्रचार के दौरान हर तरह का कूडा करकट, अनियोजित तरीके से खाने पीने का सामान, पोस्टर ,कार्ड्स तथा अन्य चुनावी सामग्री स्टेशन परिसर व उसके बाहर चारों तरफ फैलाया गया उनके इस कृत्य ने देश को विश्व के सामने शर्मसार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि यही इस विश्ववविद्यालय के छात्रों का आचरण है । क्या यही छात्र विश्व में भारत की स्वच्छता व सभ्यता के दूत बनेगें ? यह तो भला हो कुछ कर्तव्यनिष्ठ,सभ्य, सुशील तथा संवेदनशील छात्रों का जिन्होंने एक स्वंयसेवक के रूप में बिखरे हुए कचरे को सैकड़ों बैगों में सलीके भरकर निस्तारित कर दिया ऐसे स्वंयसेवक छात्रों के बीच जब कुछ विदेशी अतिथि छात्र भी सम्मिलित हो जायें तव यह स्थिति भारत की प्रतिष्ठा को और भी शर्मसार करने वाली हो जाती है किन्तु ऐसे छात्र स्वंयसेवकों पर भारत को गर्व है उन्हें हमारा कोटि-कोटि अभिनन्दन । मैं इस विषय को इसलिए उठा रहा हूँ कि जब देश का प्रधानमंत्री के साथ-साथ वहां का मुख्य मंत्री भी हमें स्वच्छता अभियान के माध्यम से हमें जागरुकता के साथ-साथ कर्तव्यों का बोध कराते हैं ।इस अभियान को एक आंदोलन में परिवर्तित करते हैं तब फिर हम सभी का यह दायित्व बनता है कि जिस प्रकार हम अपने घरों में स्वच्छ वातावरण पंसंद करते हैं उसी प्रकार हम देश में भी स्वच्छता लाने मे अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करें तथा यह निवेदन व आशा करता हूँ कि छात्र संघ चाहे सत्ताधारी दलों के हों या विपक्षी दलों के कठोर से कठोर दिशानिर्देश जारी कर उनका अनुपालन सुनिश्चित करें ताकि दिल्ली विश्वविद्धयालय भी उन प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में सम्मिलित हो सके और जिस आचरण का हम दिल्ली मेट्रो में सहयोग करते हैं वहीं सम्पूर्ण राष्ट्र में करें जिससे कि देश को और अधिक शर्मसार स्वच्छ भारत अभियान बनाम हमारा चुनावी आचरण पिछले दिनों सम्पन्न हुआ दिल्ली विश्ववविद्याल छात्रसंघ (डूसू) चुनाव हमारे मन मष्तिष्क पर कुछ यक्ष प्रश्न छोड़ गया कि क्या शिक्षा के इन मंदिरों में हम देश का बौद्धिक वर्ग तैयार कर रहे हैं क्या वो स्वयंभू विकसित भविष्य उसके अनुसार आचरण भी कर रहा है या नहीं ????? दिल्ली हमारे देश की राजधानी है । जैसे यह विश्व के सर्वश्रेष्ठ नगरों में कहीं कोई स्थान नहीं बना पायी इसीप्रकार दिल्ली विश्वविद्यालय देश के चुनिन्दा सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में है किन्तु यह भी विश्व के सर्वश्रेष्ट विश्वविद्यालयों के आगे कहीं नहीं ठहराता ।क्यों ? क्यों कि किसी स्थान या संस्थान को सर्वोत्तम वहां की व्यवस्था तथा मानवीय आचरण ही बनाता है । मैं यह प्रश्न इसलिए उठा रहा हूँ क्यों कि पिछले दिनों सम्पन्न हुआ दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव यही दर्शा गया कि देश का सर्वोत्तम शिक्षित बौद्धिक युवा जिस शिक्षा,संस्कार तथा देश के उत्थान में भूमिका निभाने को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय आता है उसका आचरण व व्यवस्था का प्रवंधन ही शहर व संस्थान का भविष्य तथा विश्व में स्थान तय करता है । मैंने देखा कि विश्वविद्यालय के छात्र जो अधिकाशतः दिल्ली मेट्रो का उपयोग आवागमन के सुलभ साधन के रूप में करते हैं । जब वे मेट्रो में दिखाई देते हैं तव उनका आचरण ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र न होकर प्रतिष्ठित आक्सफोर्ड, स्टेनफोर्ड, कैम्ब्रिज इत्यादि विश्वविद्यालयों के छात्र हों और वे मानव संस्कारों के विकसित स्वरूप हों किन्तु मेट्रो स्टेशन से बाहर आते ही उनका चुनावी वातावरण में शामिल होते ही उनके आचरण में स्वछंदता, उन्माद, लापरवाह व असभ्य कार्य संस्कृति प्रदर्शन करते दिखते हैं उनका यह आचरण देश की प्रतिष्ठा और उसको सर्वश्रेष्ट बनाने के स्तर को और दूर ले जाने वाले प्रतीत होते हैं । चुनाव प्रचार के दौरान हर तरह का कूडा करकट, अनियोजित तरीके से खाने पीने का सामान, पोस्टर ,कार्ड्स तथा अन्य चुनावी सामग्री स्टेशन परिसर व उसके बाहर चारों तरफ फैलाया गया उनके इस कृत्य ने देश को विश्व के सामने शर्मसार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि यही इस विश्ववविद्यालय के छात्रों का आचरण है । क्या यही छात्र विश्व में भारत की स्वच्छता व सभ्यता के दूत बनेगें ? यह तो भला हो कुछ कर्तव्यनिष्ठ,सभ्य, सुशील तथा संवेदनशील छात्रों का जिन्होंने एक स्वंयसेवक के रूप में बिखरे हुए कचरे को सैकड़ों बैगों में सलीके भरकर निस्तारित कर दिया ऐसे स्वंयसेवक छात्रों के बीच जब कुछ विदेशी अतिथि छात्र भी सम्मिलित हो जायें तव यह स्थिति भारत की प्रतिष्ठा को और भी शर्मसार करने वाली हो जाती है किन्तु ऐसे छात्र स्वंयसेवकों पर भारत को गर्व है उन्हें हमारा कोटि-कोटि अभिनन्दन । मैं इस विषय को इसलिए उठा रहा हूँ कि जब देश का प्रधानमंत्री के साथ-साथ वहां का मुख्य मंत्री भी हमें स्वच्छता अभियान के माध्यम से हमें जागरुकता के साथ-साथ कर्तव्यों का बोध कराते हैं ।इस अभियान को एक आंदोलन में परिवर्तित करते हैं तब फिर हम सभी का यह दायित्व बनता है कि जिस प्रकार हम अपने घरों में स्वच्छ वातावरण पंसंद करते हैं उसी प्रकार हम देश में भी स्वच्छता लाने मे अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करें तथा यह निवेदन व आशा करता हूँ कि छात्र संघ चाहे सत्ताधारी दलों के हों या विपक्षी दलों के कठोर से कठोर दिशानिर्देश जारी कर उनका अनुपालन सुनिश्चित करें ताकि दिल्ली विश्वविद्धयालय भी उन प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में सम्मिलित हो सके और जिस आचरण का हम दिल्ली मेट्रो में सहयोग करते हैं वहीं सम्पूर्ण राष्ट्र में करें जिससे कि देश को और अधिक शर्मसार होने से बचाया जा सके । होने से बचाया जा सके ।
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