आज जब मैं एस. जी. टी .बी खालसा कॉलेज से वेब जर्नलिज्म की कक्षा लेकेर मेट्रो द्वारा अपने घर जा रही थी तब मैने कश्मीरी गेट पर मेट्रो में बहुत ज़्यादा भीड़ का सामना किया। स्त्री और पुरुष दोनों ही सामान मात्रा में नज़र आ रहे थे। ऐसे मे महिलाओं का कोच पूरी तरह से भर गया था और मजबूरी में मुझे समान वर्ग वाले कोच मे आना पड़ा। तभी मैंने देखा कि एक महिला और पुरुष आपस मैं लड़ पड़े , इसीलिए क्योंकि महिला को ऐसा अनुभव हुआ कि उसके साथ बैठा व्यक्ति उसे छेड़ रहा है। आपसी बहस मे मेरे कानों मे एक वाक्य पड़ा , उस पुरुष का कहना था कि " इतनी दिक्कत है तो महिलाओं के कोच मे जाओ। " अब भला मेट्रो के आठ कोच मे से सिर्फ एक कोच महिलाओं के लिये आरक्षित है तो कितनी महिलाएं उसमे आ पाएंगी ? और आज के दौर मे जहाँ पुरुषों के समान ही स्रियाँ भी काम करने के लिये जाती है और सरकारी परिवाहनों का इस्तेमाल करती है , सिर्फ एक महिला कोच आरक्षित करने से ऐसी समस्या का हल नही सकता। स्त्री और पुरुष आज के युग मे दोनों ही सामान है और दोनों को ही समान हक़ मिलना चाहिये । मेरी राय मे मेट्रो का जो एक कोच महिलाओं के लिये आरक्षित है उससे बढ़ा कर कम से काम ३ कर देना चाहिय तभी कुछ हद्द तक इस समस्या का निवारण हो पाएगा और महिलाओं को ऐसे अभद्र टिप्पणियों का सामना नही करना पड़ेगा । एक अनदेखी समस्या
No comments:
Post a Comment