Monday, 16 November 2015

Radio Broadcasting

On the 16th of December we had Mrs. Mala Taterway, program executive of All India Radio who spoke to us on the Radio.

Radio reaches to all parts of the country. The first program on AIR is for the farmers which is for about 3 to 5 minutes.

The language used for broadcasting is very simple as it is easy to remember.

Radio is one of the means to promote any sport. When we listen about any sport on the radio we get to know about that particular sport.

There are different programs held at different time of the day and this is distinguished by a signature tune. The signature tune helps in identifying a program and differentiates it from the other.

Nowadays the main focus of broadcasting is infotainment. Infotainment is information plus knowledge.

Radio helps people to get infotainment at any place and at any time of the day. The AIR is headquartered in New Delhi.

Tuesday, 10 November 2015

आलोक पर्व की शुभकामनाएँ

                                                            आलोक पर्व  की शुभकामनाएँ 

Saturday, 7 November 2015

* The big day of our internship at IMF. We attended the seminar of 50th Anniversary Of India`s         First Ascent Of Mount Everest- 1965 in which people shared their views and their real life               experience of climbing up mountains and all the difficulties they faced while doing it. We also got     the special goodies from IMF which was the most amazing thing to us. 
*


                         















                       

                                                                                                                                                                           








Monday, 26 October 2015

Rearranging the museum at Indian Mountaineering Foundation with my fellow students......



Friday, 23 October 2015

Indian Mountaineering Foundation is the organization who support adventure sports like mountaineering,skiing,rock climbing,trekking at high altitude and the most important which they do is Environmental Protection work in the Himalyan range .No one is fearless each and every person had a fear of something like darkness,more heights e.t.c. and IMF is the best platform and place who can make a person fearless .IMF is making panel of rock climbing and outdoor instructor for how to climb a rock in a professional manner.
They teach us How to climb? and along with it what is climbing ?
they told us there are 2 types of climbing.
1. SPORTS CLIMBING
2. NATURAL CLIMBING

1. Sports climbing is based on artificial walls in which we make our own route.
2. Natural climbing is based on real rocks or hills in this climbing we have to use gadgets and we can't able to make our own route we have to walk on nature's direction.
They also teach about the equipments which they use in sports climbing like decender , rope,screw grinder, sitting harness,chest harness e.t.c.
http://www.indianmountaineeringfoundation.com

Sunday, 4 October 2015

had a great day at IMF (Indian mountaineering foundation) with our web journalism & sports economic's nd with dr smita mishra mam. and there's a video which's help you to know how to do sports rock climbing here is some instructions (a short clip )about sports rock  climbing 

Friday, 2 October 2015

Online Registration for Media Woekshop

Dear Students,
Please do online registration for Gwalior workshop as earliest.
As shown in photo follow the steps..
1)go to www.spandanfeatures.com
2) click Media Karyashala मीडिया कार्यशाला link
3)fill Registration form

Friday, 18 September 2015

SGTB Khalsa College at Doordarashan

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College Principal Dr Jaswainder Singh,Tenzing Norgay Awardee Lt. Col. Ranveer Singh Jamwal VSM bar, Defence Journalist Mayank Singh,Journalist Sangeeta Sharma expressed their views on Adventure Sports.






Wednesday, 16 September 2015

Thursday, 13 August 2015

भारत में जन्मे पिचाई गूगल के नए प्रमुख...बीबीसी हिदी से साभार



भारत में जन्मे सुंदर पिचाई को सर्च इंजन गूगल का मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) बनाया गया है.
सोमवार को गूगल ने अपनी रिस्ट्रक्चरिंग योजना पेश की जिसके तहत अब गूगल की सभी लोकप्रिय गतिवधियां नई कंपनी अल्फाबेट के तहत संचालित होंगी और गूगल के संस्थापक लैरी पेज इसके चीफ़ एग्जीक्यूटिव होंगे.
वहीं अब तक गूगल में वाइस प्रेसीडेंट की ज़िम्मेदारी संभाल रहे पिचाई को रिस्ट्रक्चरिंग के तहत गूगल का सीईओ बनाया गया है.
चेन्नई में जन्मे पिचाई के पिता एक इलेक्ट्रिक इंजीनियर रहे हैं और उन्हें बचपन से ही गैजेट्स का शौक है.
वैसे वो अपनी स्कूल क्रिकेट टीम के कप्तान भी रह चुके हैं.

प्रभावी मैनेजर

पिचाई को बेहद मृदुभाषी होने के साथ साथ एक प्रभावी मैनेजर भी माना जाता है.
गूगल के ब्राउज़र क्रोम और इससे जुड़े कई अन्य प्रॉडक्ट्स को तैयार करने में उनकी अहम भूमिका रही है.
माना जाता है कि अब दुनिया के एक तिहाई पीसी इसी ऑपरेटिंग सिस्टम को इस्तेमाल करते हैं.
क्रोम से पहले पिचाई ने टूलबारगूगल गीयर्स और गूगल पैक जैसी गूगल के प्रॉडक्ट्स पर काम किया.
पिचाई को 2013 में गूगल के मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम एंड्रॉइड की जिम्मेदारी सौंपी गई थीजो अब मोबाइल दुनिया के सबसे लोकप्रिय ऑपरेटिंग सिस्टम्स में से एक है.
कई लोग उन्हें लैरी पेज के संभावित उत्तराधिकारी के तौर पर भी देखते हैंहालांकि अभी तक पेज ने रिटायर होने का कोई संकेत नहीं दिया है.
आईआईटी से पढ़ने वाले पिचाई ने 2004 में गूगल ज्वाइन किया था.
रिपोर्टों के मुताबिक 2010 में ट्विटर ने उन्हें अपनी तरफ खींचने की कोशिश की थी लेकिन गूगल ने उन्हें 'तगड़ाबोनस देकर रोक लिया.
ऐसी भी ख़बरें आईं कि माइक्रोसॉफ्ट के सर्वोच्च पद के लिए जिन चंद नामों पर विचार किया गया उनमें पिचाई भी शामिल थे. बाद मेंभारत में ही जन्मे सत्या नडेला को इस पद पर नियुक्त किया गया.
ग़ज़ब की याददाश्त
बताते हैं कि पिचाई में संख्याओं को याद रखने की ग़ज़ब की क्षमता है. उनके घर में 1984 में पहली बार डायल करने वाला फोन लगा.
और किसी भी नंबर को वो एक बार डायल करते और वो उनके दिमाग में दर्ज हो जाता.
पिचाई ने स्कूल में सिल्वर मेडल पाया और आईआईटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने स्टेनफोर्ड स्कॉलरशिप जीती.
ये बात अलग है कि सैन फ्रांसिस्को जाने के लिए विमान के टिकट की कीमत उनके पिता के एक साल के वेतन से ज़्यादा थी.
पिचाई दो बच्चों के पिता हैं और उन्होंने अपने बचपन की दोस्त अंजलि को ही अपना जीवन साथी बनाया.


-द्वारा - 
विजय कुमार मल्होत्रा
पूर्व निदेशक (राजभाषा),
रेल मंत्रालय,भारत सरकार

Tuesday, 21 July 2015

योग रोग का निदान भी निधान भी

स्वास्थ्य योग मोक्ष का द्वार योग एक व्यवस्थित विज्ञान योग एक अध्यात्मिक प्रकिया है जिस के द्वारा शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाया (योग) जाता है। यह शब्द, प्रक्रिया और धारणा हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में ध्यान प्रक्रिया से सम्बंधित है। यह भारत से बौद्ध धर्म के साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्रीलंका समेत अन्य देशों में भी फैल गया । मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान के निदेशक डॉ. ईश्वर वी. बासवरेड्डी ने योग के विभिन्न आयामों पर चर्चा कि गजेंद्र वीएस.चौहान के साथ उनकी बातचीत: सवाल: योग की यात्रा प्राचीन भारतीय विज्ञान के रूप में लगभग पांच हजार वर्ष से भी पहले आरंभ हुई। लेकिन इसे देश में ही पुन: स्थापित होने में इतना अधिक समय लगा, वहीं पश्चिमी देशों ने इसकी उपयोगिता को स्वीकार किया और इसे आत्मसात किया इसकी क्या वजह है। बासवरेड्डी :- मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि योग को भारत में स्थापित होने में अधिक समय लगा है । यहां के लोग अनेक प्रकार से योग करते हैं । वहीं विदेशों में लोग योग को शारीरिक समस्या व मानसिक तनाव जैसे रोगों के निदान के रूप में देखते हैं । सिर्फ आसन, प्राणायाम व व्यायाम तो एक क्रिया भर है । वहीं भारत के कई क्षेत्रों में आज भी लोग प्राचीन जीवन पद्धति से जी रहे हैं । अगर हम उत्तराखण्ड, महाराष्ट्र या कर्नाटक के किसी भी गांव के पारंपरिक कौटुम्बिक परिवार में जायें, तो देखते हैं कि यहां के लोग सुबह से लेकर रात तक जिस जीवन पद्धति को जीते हैं, वह भक्ति योग है। जहां तक देश में योग को लेकर चर्चा या विरोध का विषय है तो, स्वस्थ चर्चा में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए, क्योंकि तर्क-वितर्क, अच्छे मंथन की निशानी है। विदेशों में जो भी योग का विद्वान माना जाता है, वह केवल योग का एक प्रकार भर ही जानता है। वहीं भारत में योग के विद्वान ज्यादा हैं, जो अपने आप में योग का संस्थान कहे जाते हैं । तो यहां योग पर चर्चा और विरोध होना भी स्वाभाविक है । दर्शन भी तो ऐसे ही शुरू हुआ, इसलिए हमें हर्ष होना चाहिए की योग को लेकर देश में चर्चा है, विरोध नहीं । सवाल : योग कई शाखाओं में विभाजित है । इनमें से पतंजलि और कुण्डलिनि योग की चर्चा अधिक होती है। योग का लक्ष्य और उद्देश्य क्या है । बासवरेड्डी:- योग का लक्ष्य एवं उद्देश्य एक ही है । जीव का अपने सच्चिदानंद स्वरुप को प्राप्त कर आनंदमयी होना । जब हम जन्म लेते हैं तभी से हम दुखों से पीड़ित हो जाते हैं। हम सुख के पीछे-पीछे भागते हैं, लेकिन दुख हमारे पीछे-पीछे दौड़ता है। यही सत्य है। इसलिए सांख्य योग ने तीन तथ्यों का उल्लेख किया है। भौतिक, यौगिक और अध्यात्म आदि। हम केवल भौतिक ताप पर ही विचार करते हैं, वहीं योग इन तीनों तथ्यों पर विचार करता है । यह तीनों ताप निर्गुण हो कर अपने मूल सच्चिदानंद स्वरूप में समावेशित हो जाता है । जब मनुष्य इसे प्रकृति से जोड़ लेता है, तो उसे इन तथ्यों को भोगना पड़ता है। यह दर्शन है, इसलिए योग का लक्ष्य होता है, तथ्यों से मुक्त हो कर अपने मूल सच्चिदानंद स्वरूप में रहना ही योग है । हर योग का अपना स्वरूप व लक्ष्य है। वेदांत में उपनिषद, धर्मसूत्र और अन्त में भगवद्गीता आती है। वेदांत में ध्यान पर जोर दिया जाता है। वहीं किसी अन्य में भक्ति पर जोर दिया जाता है। पतंजलि योग में मानव मन को केन्द्रित कर साधनाओं का निरूपण किया गया। पतंजलि का दर्शन सांख्य था । उसी के आधार पर साधना का निरुपण किया गया । यही कारण है कि आज 2200 वर्ष बीत जाने के बावजूद पतंजलि के सूत्रों पर काफी चर्चा हुई । सवाल : योग में मुद्राओं और ध्यान का विशिष्ट स्थान है, इसका अनुकरण कैसे किया जाना जाहिए। इसके आहार-विहार, यम-नियम क्या हैं ? बासवरेड्डी- योग का सार ही ध्यान है । योग में जो कुछ भी हम करते हैं, वह ध्यान ही है। हठ योग क्रिया में सोवन क्रिया से आरंभ करते हैं। पतंजलि में यम-नियम से आरंभ किया जाता है। उसके बाद शरीर, प्राण और इन्द्रियां आती हैं। मुद्राएं एक विशिष्ट तकनीक होती है, जिसमें आसन और प्राणायाम से प्राण को एक चक्र में जोड़कर उसका निरुपण किया जाता है। इससे मन केन्द्रित होता है। योगियों ने माना है कि ‘चले वाते, चले चित्तम’ जब तक आपका प्राण शरीर चलेगा, मन चलेगा। प्राण यानी वायु को एकीकृत करो, स्थिर करो और नियंत्रित करो इसी सिद्धांत पर योगियों ने पहले आसन, प्राणायाम, बंध, मुद्राएं, धारण, ध्यान और समाधी की दिव्य तकनीक बनाई। ऐसे ही पतंजलि ने सबसे पहले मन को नियंत्रित करने के लिए यम-नियम रखा। बाद में आसन को स्थान दिया। आसन से शरीर की मुद्रा नियंत्रित होती है। आज की जीवनशैली में हम मुद्राओं (पोस्चर) पर ध्यान ही नहीं देते हैं। यही गलत मुद्रा हमारे प्राण को असंतुलित करता है। इसी कारण से लोग बीमार हो रहै हैं। योग एक चक्र है, जिसमें आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारण, ध्यान समाधि समावेशित होते हैं, समाधि उच्चतम श्रेणी है, लेकिन यह ध्यान तक भी जाए, तो मन शांत व निर्मल होता है । ध्यान और योग एक-दूसरे के पूरक हैं, आजकल योग पर जोर है ध्यान पर नहीं । उदारहण के तौर पर देखें तो अगर सिर काट दिया, तो शरीर क्या करेगा, बेकार है, मृतप्राय है। इसलिए योग के साथ ध्यान आवश्यक है । गीता में भी स्वस्थ्य जीवनशैली के लिए चार सूत्र हैं, आहार-विहार, आचार-विचार इसी से जीवन शैली का निर्माण होता है, प्रभाव पड़ता है। आहार-भोजन बनाना, खिलाना और परोसने के दौरान किस प्रकार की भावनाएं थी उसका प्रभाव हमारे आहार पर पड़ता है। विहार - विश्रांति, योग साधना में हमें विश्रांति मिलती है। आचार-विचार- यम-नियम का अर्थ है, क्या करना और क्या नहीं करना है आदि। जो करना है, वह है शौच। योग करने के समय शुद्ध होना चाहिए, संतोष होना चाहिए। योग तप जैसे करना चाहिए। इसलिए हमारे लिए आचार ही यम-नियम हैं । मनोविज्ञान कहता है, हमें दिनभर में 100 विचार आते हैं, जिनमें से 96 विचार व्यर्थ होते हैं, 2 से 3 विचार नकारात्मक विचार होते हैं । अगर कोई व्यक्तिगत तौर पर शुद्ध विचार धारण करने वाला व्यक्ति है, तो एक ही विचार सकारात्मक और शुद्ध आता है। सवाल : योग वैज्ञानिक एवं दार्शनिक शोध है कैसे? बासवरेड्डी - योग दार्शनिक है यहीं पर मैं कुछ लोगों से अलग सोचता हूं । हमारा अध्यात्म और विज्ञान अलग नहीं है । विज्ञान क्या है ? एक प्रायौगिक ज्ञान, सोचने, समझने व अनुभव करने के बाद प्राप्त हुआ है। यही बात योग पर भी लागू होती है। प्रायौगिक ज्ञान से हम पहले किसी विषय वस्तु को सिद्ध करते हैं, उसके बाद आता है तर्क। प्रायौगिक सिद्ध को हम तर्क-वितर्क की कसौटी पर देखते हैं। उसके बाद आती है बुद्धि, जिससे हम उस प्रायौगिक वस्तु के विषय का विश्लेषण करते हैं। योग भी वैसे ही है, जो वैज्ञानिक नहीं है, वह योग नहीं है। योग में जो कुछ भी समावेशित है, वो दर्शन में है और विज्ञान में भी है। हम इसे वर्गीकृत नहीं कर सकते । योग में भी यही विधान है, जो आसन करें उसे वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध करें । योग एक व्यवस्थित विज्ञान है, जिससे चेतन तत्व को देखा जा सकता है। चेतना क्या है, ईश्वर है, और योग उस ईश्वर के लिए ध्यान लगाने का एक साधन है। सवाल : योग आज विश्व स्तर पर वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रूप में स्वीकार्य एवं लोकप्रिय हो रहा है। इस वैचारिक परिवर्तन को आप कैसे देखते हैं। बासवरेड्डी- रोग के विषय में सबसे पहले मेरी दृष्टि रोग से बचाव पर होनी चाहिए । बचाव दो प्रकार के होते हैं, प्राथमिक और द्वितीय । प्राथमिक बचाव का अर्थ है, आप निरोगी हैं और योग से निरोग ही रहेंगे। योग का मतलब केवल आस ही नहीं है, इसमें कुछ आहार-विहार, यम-नियम योग प्राणायाम और ध्यान हर रोज करनी चाहिए। नियमित तौर पर आचार-विचार को सुधारना ही योग है। अगर इसका पालन नहीं करेंगे तो रोग से पीड़ित हो सकते हैं । दूसरा बचाव है प्रयोग के साथ-साथ दवाई भी लेते रहें, इससे रोग का निदान हो जायेगा। रोग का निधान-यानी किसी रोग का योग से मुक्त होना । लेकिन योग में अभी इस पर शोध होना शेष है कि किसी रोग का पूर्ण निधान योग से होता है । अभी योग से डायबिटीज के रोगियों को ठीक तो किया गया है, लेकिन वे लोग योग के साथ-साथ दवा भी लेते रहे हैं। इसलिए यह कह पाना मुश्किल है कि रोग का निदान योग से हुआ या दवाई से । डायबिटीज में कपाल भांति, जल कूंजल, धनुरासन, त्रीकोणासन आदि से निदान हो सकता है। आसन को फलीभूत करने के लिए मन-प्राण और बुद्धि एक रेखा में होनी चाहिए । वृत्ति, स्थिति और विश्रांति की प्रक्रिया का अनुकरण करनी चाहिए। सवाल : आज की भागदौड़ भरी जीवन शैली में योग को कैसे अपनाया जाए । बासवरेड्डी - देखिये दो चीज हमारे हाथ में है, सोना और उठना । मैंने वर्ष 2006 में कॉल सेन्टर में काम करने वाले 100 लोगों पर शोध किया। वह अपने कार्यक्षेत्र में कैसे कार्य करते हैं, क्या खाते हैं, कब सोते हैं, कब उठते हैं आदि। मैंने पाया की उनका दैनिक चक्र ही बदल गया है । मैंने खुद पर भी यह अनुभव किया है कि अगर हम रात को जल्द सोते हैं, और सुबह जल्द उठते हैं तो उसकी ऊर्जा अलग होती है। वहीं रात को जब हम देर से सोते हैं , तो सुबह देर से उठते हैं, उसकी ऊर्जा अलग होती है। जीवन में कार्य क्षेत्र के अनुसार हमें ताल-मेल बैठाना पड़ता है। सुबह के समय 20-25 मिनट सुनिश्चित कर योग कर सकते हैं। सवाल : क्या हमने योग के माध्यम से वास्तव में प्रकृति की ओर देखना प्रारंभ कर दिया है। बासवरेड्डी - योग को जब जीवन शैली के रूप में देखते हैं तो जीवन में चार तत्व आवश्यक रूप से समावेशित हैं, जिसकी वजह से हमारा जीवन प्रभावित होता है- वह है, आहार, निद्रा, भय और मैथुन। इसके अलावा जीवन का सार तत्व कुछ है क्या? आहार यानी जिह्वा पर नियंत्रण, इस नियंत्रण का संचालक है मन। सभी दुखों का कारण भय ही है, जब हमारी आकांक्षा, महत्वाकांक्षा में बदलती है तो भय बढने लगता है। तृप्ति और संतुष्टि के बिना भय से मुक्ति संभव नहीं है, जीवन में जो सबसे बड़ा भय है, वह है मृत्यु। जब योग क्रिया में ध्यान लगाते हैं तब मन एकीकृत होकर शांत हो जाता है, शुद्ध विचारों का आगमन आरंभ हो जाता है, तब भय धीरे-धीरे स्वत: ही पीछे हटता जाता है। मैथुन यानी इन्द्रीय नियंत्रण, योग के माध्यम से जब हम इन सबको नियंत्रित कर लेते हैं , तो जीवन शैली स्वत: परिवर्तित हो कर योगमय हो जाती है। सवाल : मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान में आपके कार्यकाल की उपलब्धि क्या रही है। योग के विकास के लिए और क्या होना चाहिए। बासवरेड्डी - एक राष्ट्रीय संस्थान होने के नाते मुझे खुशी है कि हम केवल यहां पर शैक्षिक पाठ्यक्रम ही नहीं चलाते, बल्कि दूसरे योग संस्थानों को एक आधार भी उपलब्ध करवाते हैं, यह संस्थान अन्य योग संस्थाओं का केन्द्रीय स्थान है। यहां अय्यंगर, श्री श्री रविशंकर, स्वामी रामदेव स्वयं आते हैं और इनके इनके विद्यार्थी भी यहां आकर लाभान्वित होते हैं। हम डिग्री व डिप्लोमा आदि पाठ्यक्रम चलाते हैं। हालांकि हमारे पास उच्च प्रशिक्षण प्राप्त कर्मचारियों की कमी है, जिसके लिए सरकार से बातचीत चल रही है । रोग निदान के लिए हम अस्पतालों मे योग थैरेपी केन्द्र चला रहे हैं, बड़े अस्पतालों में एडवांस योग थैरेपी व रिसर्च केंद्र संचालित है। सेना के लिए सियाचीन जैसे क्षेत्रों में भी योग का प्रबंध किया है। मधुमेह जैसे रोगों के लिए योग की संरचना तैयार की है। विम्हान्स (विद्यासागर इंस्टीट्यूट ऑफ मेन्टल हेल्थ न्यूरो एंड अलायड साइंस) मेंटल हेल्थ के लिए योग का प्रबंध किया। संस्थान में मौलिक पाठ्यक्रम सबके लिए समान है। पैरा मिलिट्री के लिए पाठ्यक्रम चलाया । सवाल : योग को जिस तरह से विश्वस्तर पर मान्यता मिली है, इसके भविष्य के बारे में बताएं। बासवरेड्डी - सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) एवं अन्य कार्यक्षेत्रों की तरह योग भी स्वास्थ्य से संबंधित एक कार्यक्षेत्र है। आने वाले समय में इसकी मांग बढेगी। कृषि क्षेत्र में उपयोग होने वाला रसायनिक उर्वरक, बढ़ता प्रदूषण इससे मुक्ति या निदान व निधान के लिए हमें योग की शरण में आना ही होगा। आज हेल्थ सेक्टर महंगा हो गया है। इसलिए योग एक अच्छा व सस्ता साधन है। प्रीवेंशन इज द बेस्ट मेथड (रोकथाम इलाज से बेहतर है)। हमसे बातचीत करने के आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

सुब्रतो कप खिलाड़ियों को देता है अन्तर्राष्ट्रिय मंच

सुब्रतो कप भारत में खेले जाने वाला फुटवॉल का एकमात्र ऐसा टूर्नामेंट है जो देश के प्रतिभावान खिलाड़ियों को स्कूल स्तर पर अपनी खेल प्रतिभा देखने का के लिए न केवल मौका देता है बल्कि अन्तर्राष्ट्रिय मंच भी देता है। सुब्रतो कप फुटवॉल टूर्नामेंट के विभिन्न आयामों पर चीफ कॉर्डिनेटर स्क्वड्रन लीडर एस भट्टाचार्य से गजेन्द्र वीएस चौहान से उनकी बातचीत: इस बार टूर्नामेन्ट में राष्ट्रीय व अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर कितनी टीमें भाग ले रही है? इस बार सुब्रतो कप टूर्नामेन्ट में राष्ट्रीय व अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर 104 टीमें भाग ले रही हैं जिसमें 32 हजार स्कूल के 6 लाख 40 हजार छात्र प्रतिभागी होगें। जिनमें लगभग 2 हज़ार बच्चे सुब्रतो कप के फाइनल फेज़ में खेलने के लिए दिल्ली में आएंगे। इस बार का सुब्रतो कप इस मायने में भी अहम् होगा कि हम 2017 के अंडर -17 विश्व कप की तैयारी के रूप में देख रहे हैं। हम कोशिश कर रहें हैं कि इस टूर्नामेंट में उत्र्कष्ट खेल दिखाने वाले खिलाड़ी भारत की फुटवॉल टीम में जगह बना सके और देश के लिए खेल सकें,इसके लिए हमने आल इण्डिया फुटवॉल फेडरेशन से बात की है कि वह इस टूर्नामेन्ट में आये और प्रतिभावान खिलाड़ियों की प्रतिभा को आंके ताकि भारतीय फुटवॉल टीम के संभावित खिलाड़ियों में स्थान पा सकें। हर बार कि तरह से इस बार भी विदेशों से भी टीमें टूर्नामेंट में भाग ले रही हैं, पिछली बार 25 टीमें आई थी, इस बार इस से ज्यादा टीमें आने की उम्मीद है। इस बार टूर्नामेंट में हमने क्लब टीमों को भी आमंत्रित किया है। जो अंडर -17 कैटेगरी में क्लब टीमों के साथ ही खेलेंगी। इस में 5-5 टीमें को मध्य मैच होगा, जिसमें से केवल 2 टीमें ही क्वार्टर फाइनल में जायेगी। हम इस बार कोशिश कर रहे हैं कि टूर्नामेंट में खेलने वाले खिलाड़ियों की प्रतिभा को आंक ने के लिए हमने इग्लिश प्रीमियर,लीवर पूल, बुका जूनियर आदि जैसे अन्तर्राष्ट्रिय क्लब और मोहन बागन,सालगोआकर व बंगलौर एफसी जैसे घरेलू क्लबो को भी आमंत्रित किया है जहां वह टूर्नामेन्ट में खेल रहे प्रतिभावान खिलाड़ी का आंकलन करे और अपने क्लब के लिए चुन सके जिस से एक बड़ा मंच इन खिलाड़ियों के लिए उपलब्ध हो सके जहां वह अपनी प्रतिभा को और निखार सके। इस बार चयन के लिए क्या प्रक्रिया होगी? चयन प्रक्रिया मेंं कोई बदलाव नहीं किया गया है । चयन का आधार वही है जो सुब्रतो कप में रहता है खिलाड़ी पहले ज़ोनल, सब ड़िविजन, डिस्ट्रिक और अन्त में स्टेट खेल कर आते है जिसमें स्टेट में पहले स्थान पर आई टीम को टूर्नामेंट में खेलना का अवसर दिया जाता है। इस बार हमने टूर्नामेंट के लिए मैडिकल प्रोसीज़र( चिकित्सा प्रक्रिया) को सख्त बनाया है। अगर किसी भी टीम के चार खिलाड़ी मैडिकल अनफिट (चिकित्सीकय आयोग्य) पाये जायेगे तो पूरी टीम को ही टूर्नामेंन्ट से बाहर कर दिया जायेगा। 2017 के अंडर -17 फुटवॉल विश्व के लिए सुब्रतो कप क्या तैयारी कर रहा है। वैसे तो यह ऑल इण्डिया फुटवॉल फेडरेशन का काम है और इस के लिए इकबाल कप होता है। सुब्रतो कप स्कूल स्तर पर एक बड़ा टूर्नामेंट है जिसमें स्कूल की टीमें जोनल, सब डिविजन,डिस्ट्रिक और अन्त में स्टेट के चार लेवल पर टीमों को हरा कर सुब्रतो कप के लिए क्वालिफाई करती है यहां भी पहले फेज़ में नॉक आउट होता है उसके बाद फाइनल फेज़ होता है जिसमें प्रत्येक टीम अपने-अपने स्तर पर श्रेष्ठ टीम से भिड़ती है। सुब्रतो कप की इस प्रक्रिया से समझा जा सकता है कि टूर्नामेंट में एक सशक्त टीम ही पहुंचती है जिसमें हुनरमंद खिलाड़ी होते है। 2014 सुब्रतो कप फाइनल में भिड़ने वाली ब्राजिल की टीम ने इन्टर कॉन्टिनेन्टल चैम्पियनशिप पहले से ही जीत रखा था जिसे उसने मिलान, बार्सिलोना और लिवरपूल को हरा कर जीता था। वहीं ब्राजिल से भिड़ने वाली देशी टीम केरला ने भी पूरे टूर्नामेंट में अच्छा खेल दिखाते हुऐ फाइनल में आई थी। इस टूर्नामेंट में केरल टीम के खिलाड़ी एम एस सुजित पर विदेशी क्लब की नज़र रही। हम चाहते है कि हमारे बच्चों को भी अन्तर्राष्ट्रिय ख्याति मिले और वह भी विदेशी क्लबों की तरफ से खेलें। इतना प्रयास करने के बाद भी हमारे खिलाड़ी अन्तर्राष्ट्रिय स्तर पर प्रतिस्पर्धा नही कर पाते क्या कारण देखते है? यह हमारे लिए दुर्भाग्य की बात है कि जब एक खिलाड़ी ख्याति प्राप्त कर लेता है तो उस पर पैसा लगाने के लिए सरकार, फेडरेशन और प्रायोजक आगे आ जाते हैं। हमरी सरकार और फेडरेशन जमीनी स्तर पर मिली प्रतिभा को संजो कर नही रख पाती है। वैसे यह हमारा अधिकार क्षेत्र नही है पर समस्या यह है कि हमारा खेल मंत्रालय और ऑल इण्डिया फुटवॉल फेडरेशन का ध्यान (ग्रास रूट लेवल) जमीनी स्तर की प्रतिभा को ढूढ़ने और उन प्रतिभा को निखारने की और नहीं है। वहीं सुब्रतो कप का का पूर ध्यान टूर्नामेंट के माध्यम से जमीनी स्तर से प्रतिभाओं को न केवल ढूढ़ना है बल्कि उन्हें और निखारना और राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रिय स्तर पर पहचान दिलाना है। आप को क्या लगता है कि देश में शुरू हुए इण्यिन सुपर लीग से फुटवॉल को फायदा होगा? इण्यिन सुपन लीग (आईसीएल)एक प्राईवेट बॉड़ी है जिसका पहला काम खेल से पैसा बनाना है। फुटवॉल को बढ़ावा देना इनका उद्देश नही हैं। अगर सच में फुटवॉल का भला करना है तो हमें (ग्रास रूट लेवल) जमीनी स्तर की प्रतिभाओं को निखारना होगा। हमें बच्चों के लिए बच्चों को टूर्नामेंट करवाने चाहिए जैसा कि हम जर्मनी या ब्राजिल के देशों में देखते हैं इनका पूर ध्यान इस (ग्रास रूट लेवल) जमीनी स्तर की प्रतिभाओं को निखारना होता है जिसके लिए यह देश निचले स्तर पर टूर्नामेंट करवाते हैं। इण्डियन सुपर लीग का ध्यान तो पैसा बनाने में है जिसके लिए यह लोग बाहर से कार्लोस या रोलान्डीनो जैसे ख्याति प्राप्त खिलाड़ियों को,दर्शकों की भीड़ जुटाने के लिए बुलाते हैं। जिससे स्टेडियम खचाखच हो और इनको ज्यादा से ज्यादा आर्थिक लाभ मिल सके। इस टूर्नामेंट ने बच्चों के लिए कुछ खास नहीं किया है। आप को लगता है कि सुब्रतो कप एक ऐसा फॉर्मेट है जो भारत में फुटवॉल का स्वर्ण युग को लौटा पायेगा? अगर आज हम आंकडों को देखे तो आज फुटवॉल को प्रायोजित करने वालों की संख्या बड़ी है। बीते दिनों में इण्डियन प्रीमियर लीग (आईपीएल)की जगह इण्डियन सुपर लीग में प्रायोजकों की उम्मीद ज्यादा है। देखिए क्रिकेट में जितने भी प्रयोग होने थे हो चुके, क्रिकेट अपने चरम पर है। इस से ज्यादा नहीं हो सकता आने वाले दिनो में फुटवॉल का भविष्य सुनहरा होगा। क्या कारण है कि सुब्रतो कप में महिलाओं की एक की श्रेणी है? सुब्रतो कप में महिलाओं एक ही श्रेणी अंडर-14 है। इसका कारण यह है कि इस श्रेणी में और इस श्रेणी के अलावा अभी तक कोई विशेष प्रदर्शन देखने को नही मिला है, जोकि निराशा भरा है। इसके अलावा पहली समस्या यह है कि टीम भी 10 सा 12 ही आती है,जिनके लिए टूर्नामेंट शुरू करना आसान नहीं है। अभी तक हमें उस प्रकार का उत्र्कष्ट प्रदर्शन नही मिला,जिसके आधार पर हम किसी टूर्नामेंट के विषय में सोचें। सुब्रतो कप मे खेलने वाले खिलाडियों को अन्तर्राष्ट्रिय स्तर पर खेलना का अवसर मिलता है। हम लोग क्लबों को प्रतिभा आंकलन के लिए बुलाते हैं। जो प्रतिभावान खिलाडियों का चयन करते हैं। पिछली बार ब्राजिल की टीम ने बंगाल के एक खिलाड़ी को अपने क्लब की ओर से खेलने के लिए चयनित किया था। जबकि बंगाल की टीम मुकाबले में 9 गोल से हार गई थी। इस बार भी हमने ऑल इण्डिया फुटवॉल फेडरेशन के अलावा देशी-विदेशी क्लबों को भी बुलाया है। ताकि वे प्रतिभावान खिलाड़ियों को देखें और संभव हो तो उन्हें अपने क्लब से खेलना का मौका दें। राजनीतिक कारणों के अलावा फुटवॉल में हमारे पिछडने का क्या कारण देखते हैं। अगर देश में वाकय ही फुटवॉल को उसकी जगह दिलाना है तो हमें (ग्रास रूट लेवल) जमीनी स्तर पर प्रतिभाओं को तलाशना होगा और उन्हें निखारना होगा साथ ही हर स्तर पर चाहे वो जोनल हो या राज्य स्तर पर बुनियादी सुविधायों को लाना होगा। इसके अलावा हमारी जिम्मेदार फेडरेशनों के देखना चाहिए कि कैसे हर राज्य के आखरी गांव में पहुंचा जा सके ताकि एक भी प्रतिभावान खिलाड़ी न छूटे हो सकता है देश को विश्व विजेता बनाने वाला खिलाड़ी वहीं कहीं छिपा हो। हम सुब्रतो कप के माध्यम से 30 बच्चों को प्रशिक्षण देने के अलावा पढ़ाने-लिखाने और रहने का खर्च हम उठाते हैं। हमारे पास भी खर्च करने के लिए सीमित आर्थिक साधन है फिर भी जितना फंड होता है वो हम इन बच्चों पर खर्च कर देते हैं। हम टूर्नामेंट पैसा बनाने के लिए नहीं करवाते हैं। हमारा लक्ष्य है ज्यादा से ज्यादा प्रतिभाओं को राष्ट्रीया और अन्तर्राष्ट्रिय स्तर पर पहुंचाना जहां यह बच्चें अपना और अपने देश का नाम ऊंचा कर सकें।

Friday, 3 July 2015

नया इंडिया (०३ जुलाई २०१५): बलात्कार को पुरस्कार डॉ.वेदप्रताप वैदिक

नया इंडिया 
(०३ जुलाई २०१५):
बलात्कार को पुरस्कार

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
 
सर्वोच्च न्यायालय ने बलात्कार के मामले में एक एतिहासिक निर्णय दिया है। उसने मध्यप्रदेश और तमिलनाडु में हुए दो बलात्कारों की निंदा जिन शब्दों में की है,वे भारत के ही नहीं,संसार के सभी बलात्कारियों पर लागू होते हैं। उक्त दोनों प्रदेशों के उच्च न्यायालयों ने अपने फैसलों में बलात्कारियों को काफी छूट देने की कोशिश की थी। उन्होंने पीड़िता और बलात्कारी में समझौते के रास्ते को प्रोत्साहित किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने इन फैसलों को रद्द किया है और कहा कि किसी बलात्कारी के साथ पीड़िता को शादी करने के लिए कहना स्त्रीत्व का अपमान है।

हो सकता है कि उच्च न्यायालयों के जजों ने यह सोचा हो कि पीड़िता का जीवन तो यों भी नष्ट होना ही है और बलात्कार से पैदा हुई संतान का भी भविष्य धूमिल हो जाता है। ऐसे में यदि बलात्कारी के साथ पीड़िता की शादी हो जाए तो सारी बात आई-गई हो जाती है। लोग अपनी जुबान चलाना भी बंद कर देते हैं और कलंकित युग्म सदगृहस्थ की तरह रहने लगता है। इसके अलावा संतान को भी बदनामी नहीं सहनी पड़ती और पितृहीन भी नहीं रहना पड़ता। इस तर्क के पीछे मानवीय व्यावहारिकता दिखाई पड़ती है।

लेकिन यह व्यावहारिकता  बलात्कार को पुरस्कार में बदल देती है। वह हर संभावित बलात्कारी को प्रोत्साहित करेगी। वह कानून से डरने की बजाय पुरस्कृत होने की आशा करेगा। उसे जेल के सीखंचों की बजाय एक पत्नी और एक संतान पुरस्कारस्वरुप मिलेगी। क्या इसे हम कानून कहेंगे? यह कानून नहीं, कानून का मज़ाक है। यह विचार कानून की धज्जियाँ उड़ा देगा। यह न्याय को अन्याय में बदल देगा। यह बलात्कार को रोजमर्रा की घटना बना देगा।

यदि हम चाहते हैं कि नारी-सम्मान की रक्षा हो तो बलात्कारी की सजा ऐसी होनी चाहिए कि किसी भी बलात्कारी के दिमाग में ज्यों ही बलात्कार का विचार उठे, उसकी हड्डियाँ कांपने लगे। सजा की कल्पना सामने आते ही उसके पसीने छूटने लगे। सर्वोच्च न्यायालय और हमारी संसद को ऐसी व्यवस्था अविलंब करनी चाहिए, जिसके अंतर्गत बलात्कारियों को जेल की सजा के साथ मौत की सजा भी हो। वह सजा जेल की बंद दीवारों में नहीं, चांदनी चौक जैसी खुली जगह पर हो, और टी वी चैनलों पर उसका जीवंत प्रसारण हो। 
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Tuesday, 23 June 2015

Jobs are available for students at AFI

Jobs are available for  students at AFI


Please find the address:
WZ-72, 1st Floor, BR Complex, Todapur Main Road.

Get down at Todapur Main Road Bus Stop and walk towards the market complex--there is Cosmic store and Yaduvanshi Properties which are on the same floor of BR Complex--AFI Office is on the first floor.

Salary for a stenographer, who must know shorthand to take dictation from Lalit Bhanot also is just Rs. 20,000
For officer attendant the salary is rs. 25,000. But this job involves a lot of outdoor activity also, like liaison with SAI, Sports ministry, liaison with sponsors,

The address of AFI is given above. Manish Kumar  contact no is 9968411224..
Please pass this on to your students soon. see you in college during admissions
Regards,
Novy

Saturday, 23 May 2015

                       GROUP PHOTO MEDIA PERSONS                                  WITH TEACHERS  
               




YOUTH ADVENTURE AND NATION BUILDING


21  मई 2015  को गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज में हुए YOUTH  ADVENTURE AND NATION BUILDING  सेमीनार  का  भविये  प्रदर्शन हुआ। जिसमे डॉ  स्मिता मिश्र ने इसको आयोजित कर एक नई  दिशा दी।  इस आयोजन से एक पैगाम छात्रों  से लेकर लोगो तक गया की हिम्मत हो  और विशवास हो तो हर एक कठनाईओ का सामना किया जा सकता है।  2 9 मई 1965 को गय जाबाज़ लोग जिन्होंने  हिमालय पर्वत जोकि आज भी भारत का रक्षा कवच है उसकी शिकर को छुआ और भारत का ध्वज लहराया । इस कामियाबी को दिशा दी टीम के लीडर एम एस खोली
ने और उनका मार्गदर्शन किया और उनकी टीम के मजबूत सहपाठी एच पी एस अहुलवालिया ,एच सी एस रावत ,पी एच यु  देओरी आदि जीनोने 29 ,028  फिट  की ऊचाईयों  को छुआ और देश का गौरव बढ़ाया । इस आयोजन की शुरुआत दीपक प्रज्वलित करके हुई,और इस आयोजन में अलग अलग आये सम्मानित कुछ लोगो ने अपने विचार रखे ,इन विचारो में जज्बा और हिम्मत की झलक दिखी । इसी बीच खालसा कॉलेज के माननीय प्रधानाचार्य  डॉ जसविंदर सिंह जी ने सबको संबोदित करते हुए कुछ बातो पर प्रकाश डाला उन्होंने कहा की"ज़िन्दगी में खेल जरुरी है मनोरंजन जरुरी है लेकिन आज भी कुछ ऐसे बच्चे भी है जोकि उनमे  हुनर तो है


लेकिन खेल नही पाते और इस दिल्ली में 2010 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में बने स्टेडियम में आम लोगो कि पाबंदी है ,जो पैसा लगा वो जनता पर उपयोग तो हो ,सरकार भी कोई कदम नही उठा रही है , लेकिन यूनिवर्सिटी में खालसा कॉलेज आम जनता के लिए और बच्चो के लिए खेल  के लिए शाम को खुला रहता है यहाँ पर बच्चे अपने हुनर को उड़ान दते है "आदि कहते हुए एक संदेश आज की पीढ़ी को तक पहुंचाया । इसी के साथ खालसा कॉलेज में आये सम्मानित लोगो को पुरुस्कार देकर सम्मानित किया और इस आयोजन का समापन हुआ ।







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Wednesday, 20 May 2015

Thursday, 19 March 2015

Sunday, 8 March 2015

last call for all students submission these forms,

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SEM/WJ Blog Attendance 2014

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