Friday, 3 July 2015

नया इंडिया (०३ जुलाई २०१५): बलात्कार को पुरस्कार डॉ.वेदप्रताप वैदिक

नया इंडिया 
(०३ जुलाई २०१५):
बलात्कार को पुरस्कार

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
 
सर्वोच्च न्यायालय ने बलात्कार के मामले में एक एतिहासिक निर्णय दिया है। उसने मध्यप्रदेश और तमिलनाडु में हुए दो बलात्कारों की निंदा जिन शब्दों में की है,वे भारत के ही नहीं,संसार के सभी बलात्कारियों पर लागू होते हैं। उक्त दोनों प्रदेशों के उच्च न्यायालयों ने अपने फैसलों में बलात्कारियों को काफी छूट देने की कोशिश की थी। उन्होंने पीड़िता और बलात्कारी में समझौते के रास्ते को प्रोत्साहित किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने इन फैसलों को रद्द किया है और कहा कि किसी बलात्कारी के साथ पीड़िता को शादी करने के लिए कहना स्त्रीत्व का अपमान है।

हो सकता है कि उच्च न्यायालयों के जजों ने यह सोचा हो कि पीड़िता का जीवन तो यों भी नष्ट होना ही है और बलात्कार से पैदा हुई संतान का भी भविष्य धूमिल हो जाता है। ऐसे में यदि बलात्कारी के साथ पीड़िता की शादी हो जाए तो सारी बात आई-गई हो जाती है। लोग अपनी जुबान चलाना भी बंद कर देते हैं और कलंकित युग्म सदगृहस्थ की तरह रहने लगता है। इसके अलावा संतान को भी बदनामी नहीं सहनी पड़ती और पितृहीन भी नहीं रहना पड़ता। इस तर्क के पीछे मानवीय व्यावहारिकता दिखाई पड़ती है।

लेकिन यह व्यावहारिकता  बलात्कार को पुरस्कार में बदल देती है। वह हर संभावित बलात्कारी को प्रोत्साहित करेगी। वह कानून से डरने की बजाय पुरस्कृत होने की आशा करेगा। उसे जेल के सीखंचों की बजाय एक पत्नी और एक संतान पुरस्कारस्वरुप मिलेगी। क्या इसे हम कानून कहेंगे? यह कानून नहीं, कानून का मज़ाक है। यह विचार कानून की धज्जियाँ उड़ा देगा। यह न्याय को अन्याय में बदल देगा। यह बलात्कार को रोजमर्रा की घटना बना देगा।

यदि हम चाहते हैं कि नारी-सम्मान की रक्षा हो तो बलात्कारी की सजा ऐसी होनी चाहिए कि किसी भी बलात्कारी के दिमाग में ज्यों ही बलात्कार का विचार उठे, उसकी हड्डियाँ कांपने लगे। सजा की कल्पना सामने आते ही उसके पसीने छूटने लगे। सर्वोच्च न्यायालय और हमारी संसद को ऐसी व्यवस्था अविलंब करनी चाहिए, जिसके अंतर्गत बलात्कारियों को जेल की सजा के साथ मौत की सजा भी हो। वह सजा जेल की बंद दीवारों में नहीं, चांदनी चौक जैसी खुली जगह पर हो, और टी वी चैनलों पर उसका जीवंत प्रसारण हो। 
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