Friday, 27 September 2013

अक्षम को सक्षम बनाने की ओर कदम


Nicholas James "Nick" Vujicic and Stephen William Hawking


अक्षम शब्द सुनते ही हमारे जहन एक तस्वीर उभरती जिसमें कोई व्यक्ति हाथ में बैसाखी पकड़े या कोई ऐसा व्यक्ति जो आम लोगों से थोड़ा अलग दिखता है। हम देखने के बाद हम केवल यह सोचते है कि वह क्या नहीं कर सकता लेकिन हमारा ध्यान इस ओर नहीं जाता कि वह क्या कर सकता है।

वह क्या कर सकता है यही हमें जानने का मौका मिला वी केयर फिल्म फेस्ट के दौरान जिसका आयोजन एपीजे इंस्टीट्यूट ऑफ मॉस कॉमयुनिकेशन ने किया था। इस फिल्म फेस्ट में अक्षम लोगों के ऊपर कई डॉक्यूमेंट्री और फीचर फिल्म दिखाई गई जिसने हमें सोचने और अपनी सोच बदलने पर मजबूर किया।

फेस्ट के दौरान मालगाड़ी, द ऐटिट्यूट, हिंगबागी लांबी, ए टाइम किलर, कैंडल्स, टिनी स्टेप, लैग्वेज ऑफ ह्यूमैनिटी जो एपीजे के छात्रों ने बनाई थी, बैटर हॉफ, किनारा और द बटरफ्लाई सर्कस के साथ ही कई अन्य फिल्में दिखाई गई। इन सभी फिल्मों के द्वारा आम जनता के बीच अक्षम लोगों के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिश की गई। फेस्ट के दौरान यह सवाल भी उठाया गया कि क्या हम सच में केयर करते हैं? 

वर्ल्ड हेल्थ ऑरगेनाइजेशन और वर्ल्ड बैंक की संयुक्त जारी रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में करीब एक अरब (एक बिलियन) लोग अक्षम हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इन लोगों की स्वस्थ्य, शिक्षा और आर्थिक हालात आम लोग की तुलना में अच्छी नहीं है। इसका मुख्य कारण है इनके लिए कोई अच्छी सेवा उपलब्ध नहीं है और रोजाना की जिंदगी उनको मिलनेवाली कठिनाइयां। वी केयर फिल्म फेस्ट में दिखाई गई सभी फिल्मों के माध्यम से लोगों को बताने की कोशिश की गई है कि वह हमसे अलग नहीं और उन्हें मौका मिले तो वह भी बहुत कुछ सकते हैं।

ऐसा कई उदाहरण है जो यह बताने के लिए काफी है कि वह लोग कुछ भी कर सकते हैं। अलबर्ट आइंसटाइन के बाद बीसवीं सदी का सबसे महान वैज्ञानिक जिसे माना जाता है वह है स्टीफन हॉकिंग। हॉकिंग पूरी तरह से पॉरालीइज्ड हैं और कम्प्यूटर के माध्यम से पढ़ाते हैं। अलबर्ट आइंसटाइन जिनके नक्शे कदम पर आज भी दुनिया चल रही है उन्हें भी बचपन में बोलने और लिखने में काफी कठिनाई होती थी। इनके अलावा एलेकजैंडर ग्राहम बेल, थॉमस एडिसन, जॉर्ज वाशिंगटन, वॉल्ट डिज्नी ये ऐसे लोग थे जिन्हें पढ़ने और लिखने में दिक्कत थी। भारतीय अभिनेत्री सुधा चन्द्रन जिनको 1981 में 17 साल उम्र में अपना एक पैर खोना पड़ा था लेकिन उसके बावजूद वह रूकी नहीं और उसके दो साल ही उन्होंने डांस दोबारा शुरू किया। 1984 में उन्होंने एक तेलगु फिल्म मयूरी में काम किया। 1986 में उसी फिल्म का हिंदी रिमेक बना और चन्द्रन मयूरी गर्ल के नाम से जानी जाने लगी।  

फेस्ट में दिखाई गई द बटरफ्लाई सर्कस में मुख्य पात्र निकोलस जेम्स जिनके न तो हाथ हैं और न ही पैर लेकिन उसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और आज वह दुनिया भर में प्रेरक वक्तव्य देते हैं। 2010 में उनकी किताब लाइफ विदआउट लिंब्स भी आई।

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