अपना भारत
चलो फिर इक अलख जलाये।
भारत को फिर एक नया भारत बनाये
सोने की चिड़ियाँ था भारत
ग्ज्ञान बिज्ञान सिधांत का जनक था भारत ।
फिर सोने के पंख लगाये ।
चलो फिर एक अलख जलायें
ख़त्म हो गया वो जोश ख़त्म हो गया उत्साह ।
अकर्मण्यता अलास्यता दुराचार का हो गया प्रबाह ।
इन सबसे अब जीत जाएँ फिर इन्द्रजीत कहलायें ।
चलो फिर एक अलख जलायें।
उर्जा से उर्जन्वित हो हम।
गौरव से गोर्वंबित हो हम।
अपने अन्दर के सिकंदर को फिर जगाएँ।
भ्रस्टाचार कदाचार दुराचार को मार भगाये।
सृजन करे उन्नत भारत का।
मंथन करे फिर मृत विचारों का।
अनेकता में एकता का पाठ पढाये।
चलो फिर एक अलख जलाये।
निर्माण करे ऐसे भारत का जन्हा पाये सभी पूरा हक ।
प्रवाह करे एक ऐसे ज्ञान का मिट जाये अज्ञानता का कुचक्र
पुनर्जन्म हो अशोक का बापू जवाहर फिर से आये ।
बालाओं में फिर राधा युवाओं में कृष्णा की छवि फिर से पायें ।
चलो फिर एक अलख जलायें ।
भारत को फिर एक नया भारत बनायें।
चलो फिर इक अलख जलाये।
भारत को फिर एक नया भारत बनाये
सोने की चिड़ियाँ था भारत
ग्ज्ञान बिज्ञान सिधांत का जनक था भारत ।
फिर सोने के पंख लगाये ।
चलो फिर एक अलख जलायें
ख़त्म हो गया वो जोश ख़त्म हो गया उत्साह ।
अकर्मण्यता अलास्यता दुराचार का हो गया प्रबाह ।
इन सबसे अब जीत जाएँ फिर इन्द्रजीत कहलायें ।
चलो फिर एक अलख जलायें।
उर्जा से उर्जन्वित हो हम।
गौरव से गोर्वंबित हो हम।
अपने अन्दर के सिकंदर को फिर जगाएँ।
भ्रस्टाचार कदाचार दुराचार को मार भगाये।
सृजन करे उन्नत भारत का।
मंथन करे फिर मृत विचारों का।
अनेकता में एकता का पाठ पढाये।
चलो फिर एक अलख जलाये।
निर्माण करे ऐसे भारत का जन्हा पाये सभी पूरा हक ।
प्रवाह करे एक ऐसे ज्ञान का मिट जाये अज्ञानता का कुचक्र
पुनर्जन्म हो अशोक का बापू जवाहर फिर से आये ।
बालाओं में फिर राधा युवाओं में कृष्णा की छवि फिर से पायें ।
चलो फिर एक अलख जलायें ।
भारत को फिर एक नया भारत बनायें।
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