Saturday, 27 August 2011

दिल्‍ली में लहलहाती लेखिकाओं की फसल

 
The Sunday Indian
रविवार, अगस्त 28, 2011
दिल्‍ली में लहलहाती लेखिकाओं की फसल
Issue Dated: सितंबर 20, 2011, नई दिल्‍ली
एक भोजपुरी कहावत है-लइका के पढ़ावऽ, ना त शहर में बसावऽ. जो दिल्ली जैसे शहर में आ गया, वह तो ऐसे ही छा गया. महानगर दिल्ली महिला रचनाकारों को उपयुक्त मिजाज, माहौल, मंच और मौके भी मुहैया कराता है. इसीलिए यहां महिला लेखकों की फसल लहलहा रही है. हिंदी की तमाम शीर्ष लेखिकाएं, कृष्णा सोबती से लेकर अनामिका व मन्नू भंडारी से लेकर मृणाल पांडेय व मृदुला गर्ग तक, इसी महानगर के आंगन में बैठ चांद को चूमती हैं. दिलवालों और मनचलों की इसी दिल्ली में युवा महिलाओं की पौध भी अपनी प्रतिभा को तराशने उभारने के लिए मन और मंच पा लेती हैं.
महानगर के कोने कोने में महिला कलमकारों की मौजूदगी है. हमने अपने तईं यथासंभव सभी सुधि रचनाकारों को इस मंच पर लाने की कोशिश की, पर निश्चय ही स्नेहमयी चौधरी, मणिका मोहिनी, मंजुल भगत, मधु बी जोशी, प्रत्याशा, शीला झुनझुनवाला, सुनीता बुद्धिराजा, संगीता गुप्ता, अर्चना त्रिपाठी आदि नामों की एक लंबी फेहरिस्त रह गयी. जिनके नामांकन हमें मिले पेश है उनमें से चयनित रचनाकारों का परिचय:
अलका पाठक ; - व्यंग्य विधा में बेजोड़
महिला लेखन में व्यंग्य विधा की साधिकाएं बहुत कम हैं, जिनमें से अलका पाठक शीर्ष पर हैं. मूलत: विज्ञान की विद्यार्थी रहीं अलका का झुकाव साहित्य की तरफ बढ़ा तो उन्होंने छह कहानी संग्रह, इतने ही व्यंग्य संग्रह, दो उपन्यास, एक जीवनी और बाल साहित्य से संबंधित सात पुस्तकें रच डालीं. 1952 में जन्मीं अलका को राष्ट्र भाषा रत्न, साहित्य श्री शिखर सम्मान और आर्य स्मृति साहित्य सम्मान जैसे कई प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा जा चुका है. अलका भारतीय प्रसारण सेवा से संबद्ध हैं और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अपनी कहानियों, व्यंग्य आलेखों, लघु कथाओं एवं बाल रचनाओं के निरंतर प्रकाशन के साथ लोकप्रिय हैं.


 अरुणा कपूर - फोकस फीचर पर
अरुणा  ने साहित्य की नाटक, कविता, साक्षात्कार और फीचर विधाओं में काम किया है. उनके साहित्य में महिला और बच्चे केंद्रीय विषय होते हैं. महिला, परिवार और सामाजिक समस्याओं पर रोशनी डालने वाले उनके 60 से अधिक नाटक प्रकाशित और प्रसारित हो चुके हैं. 'दावत', 'आखिरी बादल', 'हारा सूरज', 'मर्डर किस्तों में', 'लाखों हार गई', ' मेहनत का फल', 'कैदी नंबर 10: आजाद', 'चिन्हित' और 'जिंदगी' ने उन्हें साहित्य जगत में खास मुकाम दिलाया.

गीतांजलि श्री - इतिहास का अध्ययन, साहित्य का मनन


जानी-मानी कथाकार गीतांजलि श्री का जन्म 1957 में मैनपुरी में हुआ था. इतिहास की विद्यार्थी रहीं गीतांजलिश्री को कहानियां कब रास आने लगीं, पता ही नहीं लगा. पहली कहानी 'बेलपत्र' 1987 में प्रकाशित हुई. 'माई', 'हमारा शहर उस बरस', 'तिरोहित' (उपन्यास), 'अनुगूंज' और 'वैराग्य' (कथा संग्रह) उनकी प्रमुख कृतियां हैं. गीतांजलिश्री को हिंदी अकादमी दिल्ली के साहित्यकार सम्मान और यूके कथा सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुके हैं.

अलका सिन्हा ; - काव्य गोष्ठियों में है जिनकी धूम


तेरी रोशनाई होना चाहती हूं, जैसे चर्चित कविता संग्रह की कवयित्री की कविताओं के अनुवाद उर्दू, मराठी, पंजाबी, नेपाली जैसी तमाम देसी-विदेशी पत्र-पत्रिकाओं में अनूदित होते रहते हैं. बीबीसी, दूरदर्शन और आकाशवाणी से अलका जी की कविताएं प्रसारित होती रहती हैं. भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के सौजन्य से अलका ब्रिटेन के कई शहरों में भी काव्यपाठ कर चुकी हैं. 1964 में भागलपुर(बिहार) में जन्मीं अलका को उनकी कहानियों के लिए भी कई पुरस्कार मिल चुके हैं.

गीताश्री - मीडिया में मान, स्त्रीत्व का गुमान

बहुआयामी प्रतिभा की प्रतिमूर्ति गीताश्री पेशे से पत्रकार हैं. गीताश्री ने टीवी, प्रिंट, वेब और रेडियो-पत्रकारिता की सभी विधाओं में काम किया है. गीता सामाजिक मुद्दों, स्त्री विमर्श, फिल्म, जीवनशैली और साहित्य पर नियमित तौर पर लेखन करती रहती हैं. कला और फिल्म रिपोर्टिंग के लिए गीता को कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. 'नागपाश में स्त्री', 'स्त्री आकांक्षा के मानचित्र' और '23 लेखिकाएं और राजेंद्र यादव' गीताश्री की प्रमुख कृतियां हैं. गीता जी के कविता संग्रह 'कविता जितना हक' को हिंदी अवार्ड के लिए चुना गया है. गीता की दो किताबें-सेक्स वर्कर और तस्करी कर छत्तीसगढ़ और झारखंड से लाई जानी वाली महिलाओं से संबंधित हैं, शीघ्र प्रकाशित होने वाली हैं.

इंदिरा मोहन - कवि सम्मेलनों की जान
 नारी, अध्यात्म और सामाजिक मूल्यों से जुड़े विषयों पर निरंतर रचनाशील  कवयित्री इंदिरा मोहन का जन्म 1946 में बदायूं (उत्तर प्रदेश) में हुआ था. पिछले चार दशक से लेखन में सक्रिय हिंदी की समर्पित कार्यकर्ता इंदिरा मोहन के गीत, वार्ता, मुक्तक, निबंध एवं लेख आदि न सिर्फ देश की लब्ध प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं, बल्कि आकाशवाणी और दूरदर्शन से उनकी रचनाओं का प्रसारण भी होता रहता है. इंदिरा मोहन कवि सम्मेलनों की जान हैं. दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन की महामंत्री होने के साथ-साथ इंदिरा विभिन्न सांस्कृतिक संस्थाओं से भी जुड़ी हुई हैं. 'पेड़ छनी परछाइयां', 'स्तब्ध है समय', 'कहां है कैलाश', 'गीतों का सार्थवाह',  'युगबोध' और 'शब्दपदी' इंदिरा की प्रतिनिधि रचनाएं हैं.

जयंती रंगनाथन- प्रखर पत्रकार, मुखर साहित्यकार

जयंती रंगनाथन की कलम जितनी धार के साथ पत्रकारिता में चलती है, उतनी ही साहित्य में भी. जानी-मानी हिंदी पत्रिका 'धर्मयुग' से करियर की शुरुआत करने वाली जयंती ने अपने तीन उपन्यासों से ही साहित्य के क्षेत्र में जगह बना ली. जयंती के उपन्यास आस-पास से गुजरते हुए, औरतें रोती नहीं, और खानाबदोश ख्वाहिशें साहित्य प्रेमियों के बीच खासी चर्चित रहीं. तत्कालीन गृहमंत्री चिंदबरम के आर्थिक विषयों पर लिखे गए लेखों का संकलन 'भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक नजर : कुछ हटकर' का जयंती द्वारा किया गया अनुवाद पेंग्विन ने प्रकाशित किया. उपन्यासों के अलावा जयंती ने कई संकलनों और कहानी संग्रहों में अपने आलेखों और कहानियों के जरिए जगह बनाई. देश की अग्रणी पत्र-पत्रिकाओं में स्तंभ तथा फीचर एवं अन्य लेखों के रूप में सहस्त्राधिक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं. मूलत: दक्षिण भारतीय जयंती रंगनाथन लौह शहर भिलाई में पली-बढ़ी हैं और महिला पत्रिका 'वनिता' की संपादक रह चुकी हैं.

कानन झींगन ; - साहित्य के प्रांगण में 'कानन' की छांह

वरिष्ठ लेखिका कानन झींगन का जन्म  1938 में कराची (पाकिस्तान) में हुआ था. कानन की प्रारंभिक शिक्षा पाकिस्तान और उच्च शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय में हुई. बचपन से ही साहित्य में रुचि रखने वाली कानन जी दिल्ली में प्राध्यापन से जुड़ी रहीं. कानन जी की प्रमुख कृ तियां हैं, 'निर्गुण काव्य में शांत रस' (शोध प्रबंध), 'दरीचों से' (कहानी संग्रह), 'मास्टर मल्लाराम से मैडम तक',  'देर न हो जाए' (लघु निबंध संग्रह) और 'फरिश्तों की दस्तक'. 'दमामा' और 'सही बटे का सवाल है जिंदगी' कानन की प्रकाशनाधीन कृतियां हैं. उन्होंने 'खलील जिब्रान' और 'द ग्लास पैलेस' जैसी चर्चित कृतियों का अनुवाद भी किया है. कानन क ी रचनाएं 'वामा', 'विश्वभारती', 'वैचारिका', 'भाषा', 'प्रारंभ' और 'कादंबिनी' जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. कानन ने देश के कई प्रमुख समाचार पत्रों में स्तंभ लेखन भी किया है.

कमला सिंघवी - सांस्कृतिक मर्यादा की अग्रदूत

भागलपुर (बिहार) में जन्मीं और कोलकाता से शिक्षा ग्रहण करने वाली कमला सिंघवी हिंदी की अग्रणी लेखिका एवं कवयित्री हैं. क मला पिछले पांच दशक से हिंदी साहित्य की साधना में लगी हुई हैं. कमला के लेखन में भारतीय संस्कृति और मर्यादाओं का समकालीन स्वर मुखरित है. कमला साहित्यसेवी के अलावा लब्ध प्रतिष्ठ समाज सेवी भी हैं. मन का मौसम, (कविता संग्रह) गृहकला-सूझ-सुझाव, नारी भीतर और बाहर (निबंध संग्रह), दैनिक प्रयोग के उपयोगी नुस्खों तथा दूसरे अनुभवों का अनूठा संकलन, स्त्री का आकाश और एक टुकड़ा (कहानी संग्रह) एवं आधुनिक परिवार में स्त्री कमला की प्रमुख रचनाएं हैं. कमला लेखिका संघ-महिला मंगल, कल्पतरु और रिचा जैसी कई संस्थाओं से जुड़ी हुई हैं. कमला के लेखन की पहचान उनकी सहज संवेदन, सूक्ष्म अनुभूति  एवं सटीक अभिव्यक्ति है. भारतीयता उनके साहित्य का मूल स्वर है.

डॉ. स्मिता मिश्रा - मीडिया विषयों पर कलम चलाती लेखिका


हिंदी और पत्रकारिता के प्राध्यापन से जुड़ीं डॉ. स्मिता मिश्रा ने दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में पीएचडी की. फिल्म एप्रीसिएशन और फिल्म स्क्रिप्ट राइटिंग का कोर्स कर चुकीं स्मिता आठ शोध पत्र प्रस्तुत कर चुकी हैं. करीब डेढ़ दर्जन राष्ट्रीय सेमिनारों में हिस्सा ले चुकी स्मिता के  आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं. स्मिता की प्रमुख कृतिया हैं, 'इलेक्ट्रॉनिक मीडिया: बदलते आयाम', 'हिंदी साहित्य और मीडिया', 'भारतीय मीडिया: अंतरंग पहचान', 'भारत में संचार माध्यम', 'वैज्ञानिक दृष्टिकोण और संचार माध्यम'. स्मिता को भारत सरकार के भारतेंदु हरिश्चंद्र  पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. स्मिता को खेल उद्घोषक के रूप में जाना जाता है.

मधु का 'कोई विकल्प नहीं' - डॉ.मधु बरुआ


कविताओं, कहानियों के जरिए साहित्यिक बिरादरी में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुकी मधु बरुआ का जन्म 1953 में हुआ था. नई दिल्ली में रहकर साहित्य साधना कर रहीं मधु की रचनाएं देश की सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. हिंदी साहित्य में एमए, पीएच.डी मधु की प्रमुख कृतियां हैं, 'मैं एक पवित्र नदी' (काव्य संग्रह), 'कोई विकल्प नहीं' (काव्य संग्रह), 'मेरी तरह जलो' (गजल संग्रह का संपादन), 'अभी भी अनिर्णीत' (कहानी संग्रह) और 'मानस की धुंध' (कहानी संग्रह संपादन). कंप्यूटर में विशेष दक्षता रखने वाली मधु भारतीय संस्कृति संस्थान और महिला भारतीय भाषा एवं साक्षरता संस्थान जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं से भी जुड़ी रही हैं. कई विश्व हिंदी सम्मेलनों में हिस्सा ले चुकी मधु को देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों-सम्मानों से विभूषित किया जा चुका है.

मनीषा - मन लागा मेरा यार, मीडिया में


देश  के एक प्रमुख समाचार पत्र से जुड़ी वरिष्ठ पत्रकार मनीषा महिला मुद्दों पर लगातार लेखन करती रही हैं. व्यवसायी परिवार में जन्मीं मनीषा के पूरे परिवार की रुझान बिजनेस की तरफ थी, पर उनका मन रचनाधर्मिता में बसता था. मनीषा मीडिया में अपना करियर बनाना चाहती थीं, और उसमे वह कामयाब भी रहीं. बकौल मनीषा, 'मेरे लिए यह चुनाव काफी मुश्किल था, क्योंकि समाज की सोच बन चुकी है कि पत्रकार सिर्फ पुरुष ही हो सकते हैं. मेरा परिवार भी इसी तरह सोचता था. परिवारवाले चाहते थे कि पीएचडी करूं या फैशन डिजाइनर बनूं, लेकिन आखिरकार मैंने उन्हें मना लिया.' मनीषा इस बात से इत्तेफाक नहीं रखतीं कि मीडिया में महिला होने का फायदा मिलता है. वह मानती हैं कि महिलाएं आज भी अधिकारों से वंचित हैं.

मृदुला हालन - हर पहलू पर पैनी नजर

दिल्ली की स्वतंत्र पत्रकार और वरिष्ठ लेखिका मृदुला हालन का मन बाल्यकाल से ही साहित्य में लगता था. मृदुला की रचनाएं देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रही हैं. समाज के विभिन्न मुद्दों एवं पहलुओं पर लेख लिखकर, वह खासी चर्चित हो चुकी हैं. मृदुला के दो उपन्यास और चार कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. इनमें से 'अंधेरी गुफाएं' का प्रकाशन पेंग्विन प्रकाशन ने किया, जबकि 'विद्रोह के स्वर' दिल्ली प्रेस में छपी. 'आसमान और भी हैं', 'छोटी आंखों का बड़ा सपना', 'द ड्रीमिंग किड' और 'शाम के साए' भी खासी चर्चा बटोर चुके हैं. मृदुला राजधानी की अनेक साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय रही हैं. वुमन राइटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (लेखिका संघ) की पूर्व अध्यक्ष रह चुकी हैं. संप्रति मृदुला इंडो-रशियन वुमन क्लब की वाइस प्रेसिडेंट और भारतीय ग्रामीण महिला संघ की कार्यकारिणी सदस्य तो हैं ही साहित्य लेखन की उनकी प्रक्रिया भी निरंतर जारी है. 


नताशा अरोड़ा - साहित्यानुराग विरासत में

वरिष्ठ लेखिका नताशा अरोड़ा को साहित्यानुराग विरासत में मिला. 1944 में लखनऊ में जन्मीं नताशी के पिता पत्रकार, लेखक और लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवक्ता थे. मां लेखिका होने के साथ ही प्राध्यापन के पेशे से भी जुड़ी हुई थीं.नताशा की रचनाएं देश की सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. कहानी संग्रह और उपन्यास सहित कुल छह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. नताशा का एक उपन्यास प्रकाशनाधीन है. 

पैमिला मानसी
कथा-कहानी की कोहिनूर


जीवन के 65 वसंत पार कर चुकीं पैमिला मानसी का जन्म सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. अंग्रेजी साहित्य और दर्शन शास्त्र की अध्येता रहीं पैमिला ने साहित्य साधना के लिए हिंदी का वरण किया. 'आग', 'साए' और 'मैं बदल जाती हूं- पैमिला के तीन प्रमुख क हानी संग्रह हैं. पैमिला ने कृष्णा सोबती के उपन्यास 'सूरजमुखी अंधेरे के ' का 'सन फ्लावर्स ऑफ द डार्क' शीर्षक से अंग्रेजी में अनुवाद भी किया है. पैमिला को कई प्रतिष्ठित सम्मान भी मिल चुके हैं. 

प्रेम सिंह
वैयक्तिक चेतना की पैरोकार


कविताओं, कहानियों के जरिए हिंदी साहित्य को समृद्ध करने वाली प्रेम सिंह का जन्म 1949 में हुआ था. दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी और आगरा विश्वविद्यालय से डी.लिट प्रेम प्राध्यापन के पेशे से जुड़ी हुई हैं. 'नई कहानी में वैयक्तिक चेतना',  'साठोत्तर कहानी और परिवर्तित मूल्य' उनके शोध ग्रंथ हैं. 'मैं गवाह हूं' और 'आह्लïाद' प्रेम के कहानी संग्रह हैं. 'बर्फ के टुकड़े', 'आलाप', 'मैं अपने साथ', 'उजास', 'तराना' (कविता संग्रह) हैं जबकि ,'अंत: सलिला' और 'मुकुर' विचार संग्रह हैं.  

प्रभा शर्मा
संवेदना की प्रभा से आलोकित


मानवीय संवेदना की प्रभा से आलोकित प्रभा शर्मा को साहित्यानुराग विरासत में मिला. जीवन यात्रा के मध्य जब नियति के क्रूर हाथों ने एक बड़ा सपना छीन लिया तो प्रभा ने लेखनी का सहारा लेकर अपने और औरों की जिंदगी को सार्थक बनाने की कोशिश में मन की गहराइयों में झांकना शुरू किया. प्रभा की रचनाएं देश क ी कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. पहली काव्यकृति 'मन का सागर' थी. तलाश जिंदगी की प्रभा की नवीनतम कृति है.
 
 
 

1 comment:

  1. Proud to be a student of such great लेखिका and human being.:-)

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