Saturday, 27 August 2011

दिल्‍ली में लहलहाती लेखिकाओं की फसल

 
The Sunday Indian
रविवार, अगस्त 28, 2011
दिल्‍ली में लहलहाती लेखिकाओं की फसल
Issue Dated: सितंबर 20, 2011, नई दिल्‍ली
एक भोजपुरी कहावत है-लइका के पढ़ावऽ, ना त शहर में बसावऽ. जो दिल्ली जैसे शहर में आ गया, वह तो ऐसे ही छा गया. महानगर दिल्ली महिला रचनाकारों को उपयुक्त मिजाज, माहौल, मंच और मौके भी मुहैया कराता है. इसीलिए यहां महिला लेखकों की फसल लहलहा रही है. हिंदी की तमाम शीर्ष लेखिकाएं, कृष्णा सोबती से लेकर अनामिका व मन्नू भंडारी से लेकर मृणाल पांडेय व मृदुला गर्ग तक, इसी महानगर के आंगन में बैठ चांद को चूमती हैं. दिलवालों और मनचलों की इसी दिल्ली में युवा महिलाओं की पौध भी अपनी प्रतिभा को तराशने उभारने के लिए मन और मंच पा लेती हैं.
महानगर के कोने कोने में महिला कलमकारों की मौजूदगी है. हमने अपने तईं यथासंभव सभी सुधि रचनाकारों को इस मंच पर लाने की कोशिश की, पर निश्चय ही स्नेहमयी चौधरी, मणिका मोहिनी, मंजुल भगत, मधु बी जोशी, प्रत्याशा, शीला झुनझुनवाला, सुनीता बुद्धिराजा, संगीता गुप्ता, अर्चना त्रिपाठी आदि नामों की एक लंबी फेहरिस्त रह गयी. जिनके नामांकन हमें मिले पेश है उनमें से चयनित रचनाकारों का परिचय:
अलका पाठक ; - व्यंग्य विधा में बेजोड़
महिला लेखन में व्यंग्य विधा की साधिकाएं बहुत कम हैं, जिनमें से अलका पाठक शीर्ष पर हैं. मूलत: विज्ञान की विद्यार्थी रहीं अलका का झुकाव साहित्य की तरफ बढ़ा तो उन्होंने छह कहानी संग्रह, इतने ही व्यंग्य संग्रह, दो उपन्यास, एक जीवनी और बाल साहित्य से संबंधित सात पुस्तकें रच डालीं. 1952 में जन्मीं अलका को राष्ट्र भाषा रत्न, साहित्य श्री शिखर सम्मान और आर्य स्मृति साहित्य सम्मान जैसे कई प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा जा चुका है. अलका भारतीय प्रसारण सेवा से संबद्ध हैं और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अपनी कहानियों, व्यंग्य आलेखों, लघु कथाओं एवं बाल रचनाओं के निरंतर प्रकाशन के साथ लोकप्रिय हैं.


 अरुणा कपूर - फोकस फीचर पर
अरुणा  ने साहित्य की नाटक, कविता, साक्षात्कार और फीचर विधाओं में काम किया है. उनके साहित्य में महिला और बच्चे केंद्रीय विषय होते हैं. महिला, परिवार और सामाजिक समस्याओं पर रोशनी डालने वाले उनके 60 से अधिक नाटक प्रकाशित और प्रसारित हो चुके हैं. 'दावत', 'आखिरी बादल', 'हारा सूरज', 'मर्डर किस्तों में', 'लाखों हार गई', ' मेहनत का फल', 'कैदी नंबर 10: आजाद', 'चिन्हित' और 'जिंदगी' ने उन्हें साहित्य जगत में खास मुकाम दिलाया.

गीतांजलि श्री - इतिहास का अध्ययन, साहित्य का मनन


जानी-मानी कथाकार गीतांजलि श्री का जन्म 1957 में मैनपुरी में हुआ था. इतिहास की विद्यार्थी रहीं गीतांजलिश्री को कहानियां कब रास आने लगीं, पता ही नहीं लगा. पहली कहानी 'बेलपत्र' 1987 में प्रकाशित हुई. 'माई', 'हमारा शहर उस बरस', 'तिरोहित' (उपन्यास), 'अनुगूंज' और 'वैराग्य' (कथा संग्रह) उनकी प्रमुख कृतियां हैं. गीतांजलिश्री को हिंदी अकादमी दिल्ली के साहित्यकार सम्मान और यूके कथा सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुके हैं.

अलका सिन्हा ; - काव्य गोष्ठियों में है जिनकी धूम


तेरी रोशनाई होना चाहती हूं, जैसे चर्चित कविता संग्रह की कवयित्री की कविताओं के अनुवाद उर्दू, मराठी, पंजाबी, नेपाली जैसी तमाम देसी-विदेशी पत्र-पत्रिकाओं में अनूदित होते रहते हैं. बीबीसी, दूरदर्शन और आकाशवाणी से अलका जी की कविताएं प्रसारित होती रहती हैं. भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के सौजन्य से अलका ब्रिटेन के कई शहरों में भी काव्यपाठ कर चुकी हैं. 1964 में भागलपुर(बिहार) में जन्मीं अलका को उनकी कहानियों के लिए भी कई पुरस्कार मिल चुके हैं.

गीताश्री - मीडिया में मान, स्त्रीत्व का गुमान

बहुआयामी प्रतिभा की प्रतिमूर्ति गीताश्री पेशे से पत्रकार हैं. गीताश्री ने टीवी, प्रिंट, वेब और रेडियो-पत्रकारिता की सभी विधाओं में काम किया है. गीता सामाजिक मुद्दों, स्त्री विमर्श, फिल्म, जीवनशैली और साहित्य पर नियमित तौर पर लेखन करती रहती हैं. कला और फिल्म रिपोर्टिंग के लिए गीता को कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. 'नागपाश में स्त्री', 'स्त्री आकांक्षा के मानचित्र' और '23 लेखिकाएं और राजेंद्र यादव' गीताश्री की प्रमुख कृतियां हैं. गीता जी के कविता संग्रह 'कविता जितना हक' को हिंदी अवार्ड के लिए चुना गया है. गीता की दो किताबें-सेक्स वर्कर और तस्करी कर छत्तीसगढ़ और झारखंड से लाई जानी वाली महिलाओं से संबंधित हैं, शीघ्र प्रकाशित होने वाली हैं.

इंदिरा मोहन - कवि सम्मेलनों की जान
 नारी, अध्यात्म और सामाजिक मूल्यों से जुड़े विषयों पर निरंतर रचनाशील  कवयित्री इंदिरा मोहन का जन्म 1946 में बदायूं (उत्तर प्रदेश) में हुआ था. पिछले चार दशक से लेखन में सक्रिय हिंदी की समर्पित कार्यकर्ता इंदिरा मोहन के गीत, वार्ता, मुक्तक, निबंध एवं लेख आदि न सिर्फ देश की लब्ध प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं, बल्कि आकाशवाणी और दूरदर्शन से उनकी रचनाओं का प्रसारण भी होता रहता है. इंदिरा मोहन कवि सम्मेलनों की जान हैं. दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन की महामंत्री होने के साथ-साथ इंदिरा विभिन्न सांस्कृतिक संस्थाओं से भी जुड़ी हुई हैं. 'पेड़ छनी परछाइयां', 'स्तब्ध है समय', 'कहां है कैलाश', 'गीतों का सार्थवाह',  'युगबोध' और 'शब्दपदी' इंदिरा की प्रतिनिधि रचनाएं हैं.

जयंती रंगनाथन- प्रखर पत्रकार, मुखर साहित्यकार

जयंती रंगनाथन की कलम जितनी धार के साथ पत्रकारिता में चलती है, उतनी ही साहित्य में भी. जानी-मानी हिंदी पत्रिका 'धर्मयुग' से करियर की शुरुआत करने वाली जयंती ने अपने तीन उपन्यासों से ही साहित्य के क्षेत्र में जगह बना ली. जयंती के उपन्यास आस-पास से गुजरते हुए, औरतें रोती नहीं, और खानाबदोश ख्वाहिशें साहित्य प्रेमियों के बीच खासी चर्चित रहीं. तत्कालीन गृहमंत्री चिंदबरम के आर्थिक विषयों पर लिखे गए लेखों का संकलन 'भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक नजर : कुछ हटकर' का जयंती द्वारा किया गया अनुवाद पेंग्विन ने प्रकाशित किया. उपन्यासों के अलावा जयंती ने कई संकलनों और कहानी संग्रहों में अपने आलेखों और कहानियों के जरिए जगह बनाई. देश की अग्रणी पत्र-पत्रिकाओं में स्तंभ तथा फीचर एवं अन्य लेखों के रूप में सहस्त्राधिक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं. मूलत: दक्षिण भारतीय जयंती रंगनाथन लौह शहर भिलाई में पली-बढ़ी हैं और महिला पत्रिका 'वनिता' की संपादक रह चुकी हैं.

कानन झींगन ; - साहित्य के प्रांगण में 'कानन' की छांह

वरिष्ठ लेखिका कानन झींगन का जन्म  1938 में कराची (पाकिस्तान) में हुआ था. कानन की प्रारंभिक शिक्षा पाकिस्तान और उच्च शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय में हुई. बचपन से ही साहित्य में रुचि रखने वाली कानन जी दिल्ली में प्राध्यापन से जुड़ी रहीं. कानन जी की प्रमुख कृ तियां हैं, 'निर्गुण काव्य में शांत रस' (शोध प्रबंध), 'दरीचों से' (कहानी संग्रह), 'मास्टर मल्लाराम से मैडम तक',  'देर न हो जाए' (लघु निबंध संग्रह) और 'फरिश्तों की दस्तक'. 'दमामा' और 'सही बटे का सवाल है जिंदगी' कानन की प्रकाशनाधीन कृतियां हैं. उन्होंने 'खलील जिब्रान' और 'द ग्लास पैलेस' जैसी चर्चित कृतियों का अनुवाद भी किया है. कानन क ी रचनाएं 'वामा', 'विश्वभारती', 'वैचारिका', 'भाषा', 'प्रारंभ' और 'कादंबिनी' जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. कानन ने देश के कई प्रमुख समाचार पत्रों में स्तंभ लेखन भी किया है.

कमला सिंघवी - सांस्कृतिक मर्यादा की अग्रदूत

भागलपुर (बिहार) में जन्मीं और कोलकाता से शिक्षा ग्रहण करने वाली कमला सिंघवी हिंदी की अग्रणी लेखिका एवं कवयित्री हैं. क मला पिछले पांच दशक से हिंदी साहित्य की साधना में लगी हुई हैं. कमला के लेखन में भारतीय संस्कृति और मर्यादाओं का समकालीन स्वर मुखरित है. कमला साहित्यसेवी के अलावा लब्ध प्रतिष्ठ समाज सेवी भी हैं. मन का मौसम, (कविता संग्रह) गृहकला-सूझ-सुझाव, नारी भीतर और बाहर (निबंध संग्रह), दैनिक प्रयोग के उपयोगी नुस्खों तथा दूसरे अनुभवों का अनूठा संकलन, स्त्री का आकाश और एक टुकड़ा (कहानी संग्रह) एवं आधुनिक परिवार में स्त्री कमला की प्रमुख रचनाएं हैं. कमला लेखिका संघ-महिला मंगल, कल्पतरु और रिचा जैसी कई संस्थाओं से जुड़ी हुई हैं. कमला के लेखन की पहचान उनकी सहज संवेदन, सूक्ष्म अनुभूति  एवं सटीक अभिव्यक्ति है. भारतीयता उनके साहित्य का मूल स्वर है.

डॉ. स्मिता मिश्रा - मीडिया विषयों पर कलम चलाती लेखिका


हिंदी और पत्रकारिता के प्राध्यापन से जुड़ीं डॉ. स्मिता मिश्रा ने दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में पीएचडी की. फिल्म एप्रीसिएशन और फिल्म स्क्रिप्ट राइटिंग का कोर्स कर चुकीं स्मिता आठ शोध पत्र प्रस्तुत कर चुकी हैं. करीब डेढ़ दर्जन राष्ट्रीय सेमिनारों में हिस्सा ले चुकी स्मिता के  आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं. स्मिता की प्रमुख कृतिया हैं, 'इलेक्ट्रॉनिक मीडिया: बदलते आयाम', 'हिंदी साहित्य और मीडिया', 'भारतीय मीडिया: अंतरंग पहचान', 'भारत में संचार माध्यम', 'वैज्ञानिक दृष्टिकोण और संचार माध्यम'. स्मिता को भारत सरकार के भारतेंदु हरिश्चंद्र  पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. स्मिता को खेल उद्घोषक के रूप में जाना जाता है.

मधु का 'कोई विकल्प नहीं' - डॉ.मधु बरुआ


कविताओं, कहानियों के जरिए साहित्यिक बिरादरी में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुकी मधु बरुआ का जन्म 1953 में हुआ था. नई दिल्ली में रहकर साहित्य साधना कर रहीं मधु की रचनाएं देश की सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. हिंदी साहित्य में एमए, पीएच.डी मधु की प्रमुख कृतियां हैं, 'मैं एक पवित्र नदी' (काव्य संग्रह), 'कोई विकल्प नहीं' (काव्य संग्रह), 'मेरी तरह जलो' (गजल संग्रह का संपादन), 'अभी भी अनिर्णीत' (कहानी संग्रह) और 'मानस की धुंध' (कहानी संग्रह संपादन). कंप्यूटर में विशेष दक्षता रखने वाली मधु भारतीय संस्कृति संस्थान और महिला भारतीय भाषा एवं साक्षरता संस्थान जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं से भी जुड़ी रही हैं. कई विश्व हिंदी सम्मेलनों में हिस्सा ले चुकी मधु को देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों-सम्मानों से विभूषित किया जा चुका है.

मनीषा - मन लागा मेरा यार, मीडिया में


देश  के एक प्रमुख समाचार पत्र से जुड़ी वरिष्ठ पत्रकार मनीषा महिला मुद्दों पर लगातार लेखन करती रही हैं. व्यवसायी परिवार में जन्मीं मनीषा के पूरे परिवार की रुझान बिजनेस की तरफ थी, पर उनका मन रचनाधर्मिता में बसता था. मनीषा मीडिया में अपना करियर बनाना चाहती थीं, और उसमे वह कामयाब भी रहीं. बकौल मनीषा, 'मेरे लिए यह चुनाव काफी मुश्किल था, क्योंकि समाज की सोच बन चुकी है कि पत्रकार सिर्फ पुरुष ही हो सकते हैं. मेरा परिवार भी इसी तरह सोचता था. परिवारवाले चाहते थे कि पीएचडी करूं या फैशन डिजाइनर बनूं, लेकिन आखिरकार मैंने उन्हें मना लिया.' मनीषा इस बात से इत्तेफाक नहीं रखतीं कि मीडिया में महिला होने का फायदा मिलता है. वह मानती हैं कि महिलाएं आज भी अधिकारों से वंचित हैं.

मृदुला हालन - हर पहलू पर पैनी नजर

दिल्ली की स्वतंत्र पत्रकार और वरिष्ठ लेखिका मृदुला हालन का मन बाल्यकाल से ही साहित्य में लगता था. मृदुला की रचनाएं देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रही हैं. समाज के विभिन्न मुद्दों एवं पहलुओं पर लेख लिखकर, वह खासी चर्चित हो चुकी हैं. मृदुला के दो उपन्यास और चार कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. इनमें से 'अंधेरी गुफाएं' का प्रकाशन पेंग्विन प्रकाशन ने किया, जबकि 'विद्रोह के स्वर' दिल्ली प्रेस में छपी. 'आसमान और भी हैं', 'छोटी आंखों का बड़ा सपना', 'द ड्रीमिंग किड' और 'शाम के साए' भी खासी चर्चा बटोर चुके हैं. मृदुला राजधानी की अनेक साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय रही हैं. वुमन राइटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (लेखिका संघ) की पूर्व अध्यक्ष रह चुकी हैं. संप्रति मृदुला इंडो-रशियन वुमन क्लब की वाइस प्रेसिडेंट और भारतीय ग्रामीण महिला संघ की कार्यकारिणी सदस्य तो हैं ही साहित्य लेखन की उनकी प्रक्रिया भी निरंतर जारी है. 


नताशा अरोड़ा - साहित्यानुराग विरासत में

वरिष्ठ लेखिका नताशा अरोड़ा को साहित्यानुराग विरासत में मिला. 1944 में लखनऊ में जन्मीं नताशी के पिता पत्रकार, लेखक और लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रवक्ता थे. मां लेखिका होने के साथ ही प्राध्यापन के पेशे से भी जुड़ी हुई थीं.नताशा की रचनाएं देश की सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. कहानी संग्रह और उपन्यास सहित कुल छह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. नताशा का एक उपन्यास प्रकाशनाधीन है. 

पैमिला मानसी
कथा-कहानी की कोहिनूर


जीवन के 65 वसंत पार कर चुकीं पैमिला मानसी का जन्म सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. अंग्रेजी साहित्य और दर्शन शास्त्र की अध्येता रहीं पैमिला ने साहित्य साधना के लिए हिंदी का वरण किया. 'आग', 'साए' और 'मैं बदल जाती हूं- पैमिला के तीन प्रमुख क हानी संग्रह हैं. पैमिला ने कृष्णा सोबती के उपन्यास 'सूरजमुखी अंधेरे के ' का 'सन फ्लावर्स ऑफ द डार्क' शीर्षक से अंग्रेजी में अनुवाद भी किया है. पैमिला को कई प्रतिष्ठित सम्मान भी मिल चुके हैं. 

प्रेम सिंह
वैयक्तिक चेतना की पैरोकार


कविताओं, कहानियों के जरिए हिंदी साहित्य को समृद्ध करने वाली प्रेम सिंह का जन्म 1949 में हुआ था. दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी और आगरा विश्वविद्यालय से डी.लिट प्रेम प्राध्यापन के पेशे से जुड़ी हुई हैं. 'नई कहानी में वैयक्तिक चेतना',  'साठोत्तर कहानी और परिवर्तित मूल्य' उनके शोध ग्रंथ हैं. 'मैं गवाह हूं' और 'आह्लïाद' प्रेम के कहानी संग्रह हैं. 'बर्फ के टुकड़े', 'आलाप', 'मैं अपने साथ', 'उजास', 'तराना' (कविता संग्रह) हैं जबकि ,'अंत: सलिला' और 'मुकुर' विचार संग्रह हैं.  

प्रभा शर्मा
संवेदना की प्रभा से आलोकित


मानवीय संवेदना की प्रभा से आलोकित प्रभा शर्मा को साहित्यानुराग विरासत में मिला. जीवन यात्रा के मध्य जब नियति के क्रूर हाथों ने एक बड़ा सपना छीन लिया तो प्रभा ने लेखनी का सहारा लेकर अपने और औरों की जिंदगी को सार्थक बनाने की कोशिश में मन की गहराइयों में झांकना शुरू किया. प्रभा की रचनाएं देश क ी कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. पहली काव्यकृति 'मन का सागर' थी. तलाश जिंदगी की प्रभा की नवीनतम कृति है.
 
 
 

21वीं सदी की 111 श्रेष्‍ठ हिंदी लेखिकाएं



लेखन के क्षेत्र में महिलाएं तेजी से आगे आई हैं, और आ रही हैं. लिख रही हैं. कलम तोड़कर लिख रही हैं. वर्जनाएं तोड़कर लिख रही हैं. लाज आउटडेटेड शब्द हो गया है, लजा नहीं लजवा रही हैं. लिख क्या ललकार रही हैं. लहका रही हैं. धू धू कर जल रही हैं, रूढि़वादी सोच. जल रहे हैं जंगली मानसिकता वाले घास. जल रही हैं स्त्रियों को घूरने वाली गंदी आंखें. जी हां, भारतीय महिलाओं की तेज लेखनी की धार से सब्जियों की तरह कटते जा रहे हैं, तमाम पारिवारिक, सामाजिक और मानसिक बंधन. स्त्री मुक्त हो गई है, दिल से, दिमाग से, और देह से भी. स्त्री मुक्ति के बोल समूचे दिग दिगंत में सुनाई पड़ रहे हैं. फिर भी हम इन आवाजों को ठीक से नहीं जानते.

Lets understand - What is Jan Lokpal bill?

Citizens' Ombudsman Bill or Jan Lokpal Vidheyak (in Hindi) is a proposed anti-corruption law designed to effectively nail out corruption, redress complaints and protect whistleblowers. According to designed bill made by some members of 'India Against Corruption (IAC)', a movement against corruption in the government's bodies, "Jan Lokpal Bill" would work as an independent powerful institution like Election Commission of India and Supreme Court that would prevent corruption in government machinery, redress corruption grievances within a year and penalise the guilty no matter what he/she/they is/are without the interfering of the government.


According to the proposed Jan Lokpal Bill, the Jan Lokpal (Citizens' Ombudsman) would be an anti-corruption institution on Central level that would control the corruption in the central government machineries and redress the complaints of central government's offices, departments and institutions. Similar anti-corruption institutions "Lokayukta" would be set up in the states.The Lokpal and Lokayukta would investigate corruption cases and complete the process within a year while the trial would complete in the next one year, means the whole process would complete in maximum two years in order to deterring the corruption on mass scale.


The first Jan Lokpal bill was introduced in the parliament in 1969, 42 years ago in the 4th Lok Sabha, which was passed but it failed in the Rajya Sabha, the upper house of the Parliament. Since then the bill were introduced in the Parliament nine times - 1971, 1977, 1985, 1989, 1996, 1998, 2001, 2005 and 2008, but every times it was failed to pass out.The version of proposed Jan Lokpal Bill drafted by IAC is version 2.2 while the government's drafted Lokpal bill 2010's version is 2.3, according to government's website.The Lokpal Bill version 2.2 was drafted by Justice Santosh Hegde (former Supreme Court Judge and present Lokayukta of Karnataka), Shanti Bhushan, Former Minister of Law and Justice, Prashant Bhushan (Supreme Court Lawyer) and Arvind Kejriwal (RTI activist). Social Activist Anna Hazare and former IPS officer Kiran Bedi are also the members of IAC.








There are several differences in both versions claimed by IAC movement members.
Here are the Salient features of Jan Lokpal bill version 2.2:
1. An institution called LOKPAL at the centre and LOKAYUKTA in each state will be set up.


2. A complete independent powerful institutions like Supreme Court and Election Commission; No minister or bureaucrat will be able to influence their investigations.


3. Members will be appointed by judges, Indian Administrative Service officers with a clean record, private citizens and constitutional authorities through a transparent and participatory process.


4. A selection committee will invite short listed candidates for interviews, video recordings of which will thereafter be made public.

5. Lokpal and Lokayukta will publish a list of cases dealt with, brief details of each, their outcome and any action taken or proposed on their website every months. Moreover, the lists of all cases received, dealt and pending during the previous month will also be published.
 

6. Investigations of each case must be completed in one year. The trials for that case would be concluded in the following year so that the corrupt politician, officer or judge is sent to jail within two years.

7. Losses caused to the government by a corrupt individual will be recovered at the time of conviction.

8. Lokpal will have the authority to penalise the concerned person responsible for delay in work, carelessness and other reasons that hurt any citizen's work. The institution (Lokpal and Lokayukta) will slap financial penalties that will be given as compensation to the complainant.

9. Complaints against any officer of Lokpal will be investigated and completed within a month and, if found to be substantive, will result in the officer being dismissed within two months.

10. The existing anti-corruption agencies (CVC, departmental vigilance and the anti-corruption branch of the CBI) will be merged into Lokpal. Lokpal will have complete powers and machinery to independently investigate and prosecute any officer, judge or politician.

11. Whistleblowers who alert the agency to potential corruption cases will also be provided with protection by it.



{ If you have any question regarding it than please ask in the comment box }. 
Hope we are going to see the impact of it on us very soon .
Jai Hind jai bharat 

IROM SHARMILA CHANU:The Iron Lady Of Manipur


Irom Sharmila Chanu (born March 14, 1972), also known as the "Iron Lady of Manipur" or "Menghaobi" ("the fair one") is a civil rights activist, political activist, and poet from the Indian state of Manipur. Since 2 November 2000, she has been on hunger strike to demand that the Indian government repeal the Armed Forces (Special Powers) Act,1958 (AFSPA), which she blames for violence in Manipur and other parts of India's northeast. Having refused food and water for more than ten years, she has been called "the world's longest hunger striker"

She was brought to the jail ward of Jawaharlal Nehru Hospital at the age of 27. Now ten years have passed in solitary confinement.

In the year 2000, she had pledged a fast-unto-death against the imposition of AFSPA in Manipur. She was arrested and since then kept in custody - force fed with a tube.

Irom Sharmila Chanu has not eaten anything, or drunk a single drop of water since November, 2000. She has been forcibly kept alive by nasogastric tubation. She has not combed her hair, nor looked at the mirror and uses a dry cotton to clean her teeth. Her body is wasted inside, her menstrual cycles have stopped. She removes the nasogastric tube at the slightest opportunity available. BBC (Tuesday, 19 September 2006, 09:46 GMT) had carried a report on this marathon fast wherein it had mentioned the deteriorating condition of her health : “Doctors say her fasting is now having a direct impact on her body’s normal functioning – her bones have become brittle and she has developed other medical problems too. “ “It is not a punishment, but my bounden duty,” says Sharmila (Tehelka, 2006). Bounded duty towards the people of Manipur, the people of North-East, the people who are not considered to belong to the ‘mainland’ India.

Sharmila does not seem to be edging anywhere close to her demand, but she surely has lost much in the interim. Keeping aside the health issues, it has been reported that her brother lost a government job because he chose to remain on her side, the family had to go bankrupt. Sharmila was nominated for the 2005 Nobel Peace Prize by a Guwahati-based woman’s organization and Science and Rationalists’ Association of India and Humanist Association demanded that Irom Sharmila Chanu again be nominated for 2010 Nobel Peace Prize. When she was awarded the Gwangju prize for Human Rights, 2007, she said “My struggle is not for the sake of fame or award.” (Wiki). Her resolution has also grabbed Amnesty’s attention and they have requested the Indian Government to repeal AFSPA.

a report in Tehelka, 2006 states – ‘Menghaobi, the people of Manipur call her, The Fair One. Youngest daughter of an illiterate Grade 1V worker in a veterinary hospital in Imphal, Irom was always a solitary child, the backbencher, the listener. Eight siblings had come before her. By the time she was born, her mother Irom Shakhi, 44, was dry.’ Her mother could not breast-feed her. Her brother would take her to “other mothers”, any mother he could find to suckle her. “Maybe this her service to all her mothers”, says Singhajit.

Friday, 26 August 2011

Wednesday, 24 August 2011

WELCOME TO THE COURSE WEB JOURNALISM

वेब जर्नलिज्म - आधुनिक मीडिया का आकर्षक क्षेत्र




आज युवाओं के पास कॅरियर के नए विकल्पों की कोई कमी नहीं हैं और कई नए क्षेत्र उनका स्वागत करने को तैयार खडे हैं। इंटरनेट के आगमन के बाद अखबारों के रुतबे और टीवी चैनलों की चकाचौंध के मध्य पत्रकारिता की एक नई विधा, वेब जर्नलिज्म ने जन्म लिया है, जो काफी प्रभावकारी तरीके से आगे बढ रही है। वेब जर्नलिज्म की सबसे बडी खासियत, हर पल मिलने वाली नई जानकारी है, इस कारण से ही इसकी लोकप्रियता दिनोंदिन बढती जा रही है।

फ्यूचर का है कॅरियर
अपने देश में पत्रकारिता का प्रशिक्षण देने वाले संस्थानों की कोई कमी नहीं है। इनसे प्रशिक्षण लेकर निकलने वाले युवाओं की संख्या भी बहुत अधिक है। इन सभी प्रशिक्षित युवाओं के लिए चुनिंदा समाचार पत्रों या टीवी चैनलों में रोजगार हासिल करना संभव नहीं है। ऐसे में जरूरी है कि ये खुद को डिजिटल होती दुनिया की जरूरतों के मुताबिक ढालने का प्रयास करें। इधर एक दशक में इंटरनेट का काफी विस्तार हुआ है। छोटे-छोटे कस्बे भी आज इसकी हद में आ चुके हैं। इंटरनेट का उपयोग अब अधिकतर क्षेत्रों में हो रहा है। मीडिया में भी इसकी उपयोगिता बढती जा रही है। लोग इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। इस क्षेत्र के प्रति लोगों का यह आकर्षण ही वेब जर्नलिज्म की फील्ड और वेब जर्नलिस्ट की मांग में निरंतर इजाफा कर रहा है।

वेब जर्नलिज्म क्या है
इंटरनेट के माध्यम से की गई पत्रकारिता को वेब जर्नलिज्म कहते हैं। इस तरह की पत्रकारिता बहुत हद तक इलेक्ट्रानिक पत्रकारिता से मेल खाती है, लेकिन इसकी व्यापकता और पुराने अंकों को काफी समय बाद भी देख सकने की सुविधा इसे एक अलग रूप देने का काम कर रही है। वेब जर्नलिज्म में स्पीड जरूरी है और यह इसे अन्य मीडिया माध्यमों से अलग करती है।

कोर्स और शैक्षिक योग्यता
आज मॉस कम्युनिकेशन का प्रशिक्षण देने वाले संस्थानों की कोई कमी नहीं है। इन संस्थानों से कोर्स करने के बाद तकनीकी योग्यता हासिल कर वेब जर्नलिज्म की फील्ड में प्रवेश कर सकते हैं। मॉस कम्युनिकेशन में कई तरह के कोर्स उपलब्ध हैं। आप चाहें तो डिग्री या फिर डिप्लोमा और या फिर सर्टिफिकेट कोर्स कर सकते हैं। कोर्सो के हिसाब से शैक्षिक योग्यता भी अलग-अलग निर्धारित है लेकिन अधिकतर संस्थान न्यूनतम शैक्षिक योग्यता स्नातक ही मांगते हैं। यहां इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि अध्ययन के लिए उस संस्थान का चयन करें, जहां आधुनिक तरीके से प्रशिक्षण दिया जाता है। यह प्रशिक्षण ही इस क्षेत्र में सफलता का मार्ग तय करता है। कुछ संस्थान ऑन लाइन जर्नलिज्म के कोर्स अलग से भी कराते हैं।

कार्य विभाजन
वेब जर्नलिज्म में कई तरह के कार्य किए जा सकते हैं। काम के आधार पर इस फील्ड को कई भागों में विभाजित किया गया है। जर्नलिस्ट एवं डिजाइनर के लिहाज से यहां अवसर अधिक हैं। े जर्नलिस्ट : एक जर्नलिस्ट डेस्क और फील्ड दोनों क्षेत्रों में काम कर सकता है। डेस्क वर्क में कापी राइटिंग एवं एडिटिंग का काम किया जाता है। वेब साइट में उपलब्ध कराए गए कंटेन्ट को भाषाई रूप से सशक्त करने का काम इन लोगों के ही कंधों पर होता है। यह काम वही कर सकते हैं जो भाषा ज्ञान के साथ-साथ देश-विदेश में हो रही हर हलचल पर नजर रखते हैं। फील्ड वर्क उन लोगों के लिए सही है, जो खबरों के अंदर छिपे सच को सामने लाने की काबिलियत रखते हैं। इस काम में ऐसे व्यक्ति ज्यादा सफल होते हैं जिनके संपर्क सूत्र बहुत अधिक होते हैं।

डिजाइनर : वेबसाइट को आकर्षक रूप देने की जिम्मेदारी इनके पास होती है। वेबसाइट का लुक अच्छा होना जरूरी है, क्योंकि फ्रंट पेज ही आमतौर पर पाठकों को आकर्षित करने का काम करता है। डिजाइनिंग के काम के लिए वे लोग उपयुक्त हैं जिन्हें नए ट्रेंड के अनुसार वेब साइट को डिजाइन करना एवं उसमें कंटेन्ट को प्रस्तुत करना आता है। रचनात्मकता इस क्षेत्र में सफलता की पहली सीढी है।

स्पीड और एक्यूरेसी का खेल
वेब जर्नलिज्म को आज पत्रकारिता की सबसे फास्ट फील्ड कहा जाता है। इसमें क्वालिटी और एक्यूरेसी के साथ स्पीड का भी अहम किरदार होता है। वेब जर्नलिज्म में स्पीड नहीं, तो कुछ भी नहीं है। जो लोग वेब जर्नलिज्म का काम कर रहे हैं उनके मध्य स्पीड को लेकर ही प्रतिद्वंद्विता है। कम से कम समय में बेहतरीन काम करने की काबिलियत जिनमें है, वे इस क्षेत्र में उतना ही आगे बढ जाते हैं।

अच्छा वेतन
वेब जर्नलिज्म का क्षेत्र वेतन के लिहाज से काफी अच्छा माना जाता है। प्रारंभिक चरण में अमूमन 10 हजार रुपए वेतन के रूप में मिलते हैं जो तीन-चार साल का अनुभव और अच्छा काम होने पर कई गुना तक बढ जाता है।

प्रमुख संस्थान
श्री ग ते ब खालसा कॉलेज , दिल्ली विश्वविद्यालय,
दिल्लीइंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मॉस कम्युनिकेशन, नई दिल्ली
जेआईएमएमसी, नोएडा और कानपुर
जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली

Bhrashtachar.

Na gila kerenge, Na shikwa kerenge,
Bhrashtachar mitane ke liye shantipurn andolan kerenge.
Mera pyara desh tu salamat rahe,
Anna ji ke sath milker yahi prayas kerange.

Thursday, 18 August 2011

Sports -The healthy way

          

Sports - The Healthy Way
Building India’s Positive Image
30 August 2011: Silver Oak, India Habitat Centre, New Delhi

Suggested Programme

0900 hrs – 1000 hrs                  Registration


1000 hrs – 1100 hrs                  Inaugural Session


Welcome Remarks                    Mr Chandrajit Banerjee
                                                    Director General
                                                    Confederation of Indian Industry

Theme Address                         Mr Deepak Premnarayan
            Co-Chairman, CII National Committee on Sports and
                                                    Executive Chairman – ICS Group  

Special Address                         Mr Abhijit Sarkar
                                                Head- Corporate Communications, Sahara

Special Address                       Mr Kapil Dev
                                                    Eminent Cricketer

Address by                              Mr Ajay Maken
Chief Guest                              Minister of State for Youth Affairs & Sports
                                                Government of India

Closing Remarks                     Confederation of Indian Industry
     

1100 hrs - 1115 hrs                   Networking Tea/ Coffee                                   


1115 hrs - 1215 hrs                   Session I: Winning Medals with Honour


What is the most important part of sports, winning medals, creating individual champions or making people fit for life?  Sports have to be played the sporty way, which is by healthy competition. Laurels do motivate, but the spirit of playing is of utmost importance. The session will deliberate on upholding the value of sports – winning with honour as well as developing the right sporting culture in the country.  

Session Moderator                    Mr Boria Mazumdar, Eminent Journalist
                                   
Special Address                      Justice Mukul Mudgal, Eminent Sports Writer                

Panelists                                    Dr Alka Beotra, Scientific Director, National Dope Testing Lab
                                                    Ms Ashwani Nachiappa, Athlete and Arjuna awardee
                                                   Mr V N Gaur, CEO, Food Safety and Standards Authority of India (FSSAI)

Question & Answer Session




1215 hrs – 1315 hrs                  Session II: Developing Sporting Culture in India 


India is a developing country and a lot has been spent on building the sports infrastructure. Will changed mindset or giving marks inculcate the sporting culture in the youth?  India should also work towards spending money on building the pool for sportspersons who can win laurels for the country. Corporates also need to redefine their role in the sports arena and help in developing sporting culture.     

Session Moderator                   Ms Sonali Chander, Sports Commentator, NDTV

Panelists                                  Capt. Amitabh, Head – Sports, Tata Steel
                                                Mr Deepak Jolly, VP – Public Affairs & Communication, Coca Cola India
                                                     Dr Shyama Chona, Principal, Tamanna Special School
                                          Mr B V P Rao, Convener, Clean Sports movement
                                                   Mr Ajay Jadeja, Eminent Cricketer                                                                                    
                                                   
Question & Answer Session

1315 hrs – 1400 hrs                  Lunch



1400 hrs – 1500 hrs                  Session III: Coach the Coaches and Information to athletes


The sports persons are dependent on their coaches for information on food supplements which makes it imperative for the coaches to know what is acceptable and permitted. With the ever changing medicine scenario, it’s complex for the sports persons to keep tab and information on banned drugs. Easy availability of supplements and lack of labeling detailing leads to misuse.

Session Moderator                   Mr Novy Kapadia, Sports Commentator & Writer

Panelist                                        Mr Abhijit Sarkar, Head- Corporate Communications, Sahara
                                                     Mr Gopalkrishnan, Secretary, Sports Authority of India
                                                     Mr Vece Paes, Head, BCCI


                                      
Concluding Remarks               Ms Sindhushree Khullar
                                                Secretary
                                                Ministry of Youth Affairs & Sports

Question & Answer Session

1500 hrs                                   Networking Tea/ Coffee                                   



 

Registration Form

Sports - The Healthy way
Building India’s Positive Image

30 August 2011: Silver Oak, India Habitat Centre, New Delhi

Kavita R Nath
Confederation of Indian Industry
Core 4A, 4th Floor
India Habitat Centre
New Delhi -110003
Tel:      011- 41220036 (D) / 24682230-35
Fax:     011- 24682226
Email:  kavita.Rnath@cii.in

             
                       
Delegate Fee
(inclusive of 10.33% Service Tax)  

Rs 500/-

                                                                                                                     

Nominations:

S.No
Name
Designation
Company
E-mail
Mobile
1






2






3






4








The Cheque / Demand Draft No           for Rs. _______  drawn in favour of             Confederation of Indian Industry, payable at New Delhi is enclosed.

(Delegate Fee is non-refundable; however, changes in nomination are acceptable)