Sunday, 22 January 2017

प्रकृति का हनन

प्रकृति और मनुष्य का ऐसा शाश्वत संबंध है जिसे कभी भी अलग-अलग करके नही देखा जा सकता फिर भी मनुष्य प्रकृति के चक्र को निरंतर ध्वस्त करता चला जा रहा है । जाने-अनजाने प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते रहने के कारण मनुष्य एक ऐसे मोड़ पर आ खड़ा हुआ है जहाँ वह प्रकृति के असंतुलन के लिए चिंतित तो होता दिखाई देता है लेकिन उसके समाधान के लिए अग्रसर होता दिखाई नही देता । पिछले कुछ वर्षो मे जैसे जैसे दुनिया की जनसंख्या बढी है वैसे ही प्रकृति पर भी प्रभाव पड़ा है । पर्यावरण को गर्म करने वाली विभिन्न प्रकार की गैसों का उत्सर्जन अपेक्षा से अघिक बढ गया है । विकास के नाम पर पूरे विश्व मे एक होड़ सी लग गई है जिसके लिए प्रकृति को नजरअंदाज करके मनुष्य दिनोंदिन सुख सुविघाओ के साधनो को जुटाने मे लगा रहता है । भूमि की उपज मे जो कमी आई है उसके लिए भी पर्यावरण का असंतुलन ही कही ना कही जिम्मेदार है । इसका जलवायु पर भी इतना गहरा प्रभाव पड़ा है कि आज हिमालय ग्लेशियर तेजी से पिघलते जा रहा है ओर समुद्र का जलस्तर बढता ही जा रहा है इसके अलावा दूसरी ओर नदियो का जलस्तर, गर्मी बढ़ने के कारण घटता ही जा रहा है । इन सभी समस्याओ से उबरने के लिए आवश्यक है कि विश्व का हरेक व्यक्ति इस बात के प्रति सचेत व सजग रहे कि प्रकृति यदि हमारे विकास के लिए वरदान है तो वास्तविक महत्व को समझते हुए उसके द्वारा दी गई प्राकृतिक संपदाओ कि हम रक्षा करे । साथ ही विकसित देशो को भी सोचना होगा कि वे प्रदुषण संबंधी सभी कारणो से अवगत होकर विकास के क्षेत्र मे महत्वपूर्ण कदम उठाए । विश्व के सभी देशो को मिलकर प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने मे एक साथ मिलकर कदम उठाना होगा ।

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