Sunday, 18 December 2016

8.11.16 बनाम 6.6.66 और 1.7.91

यदि प्रधानमंत्री वाकई में  डिमॉनेटाइजेशन के जरिए देश की आर्थिक हालात को सुधार लेते है तो वो आधुनिक युग के पहले प्रधानमंत्री होंगे जो सुधार की बुनियाद को ही बदल डालेंगे। अगर प्रत्यक्ष की बात करें तो विश्व में ऐसे कुछ उदहारण हैं जिन्होंने देश कि आर्थिक, विकास  मानचित्र को ही बदल डाला था ।  श्याओपिंग 1978-84 के  सुधारों के बाद चीन में रोनाल्ड रीगन 1981-89 के जरिए अमेरिका में, मार्गरेंट थैचर 1979-90 के जरिए ब्रिटेन में और 1991से 1995 के  सुधारों के बाद भारत में नज़र आई। भले ही दौर बदल गया हो परंतु स्थिति सामान जैसी ही है। देश में आज काला धन के कारण देश की हर तीसरे घर को रोटी के लिए सोचना पड़ रहा है। मोदी जी की पहल कहीं न कहीं सही है क्योंकि देश को आर्थिक स्थिति में सुधार व्  विश्व व्यापार श्रेणी हो या सकल घरेलू उत्पाद की आय या निम्न आय को सुधारने के लिए  कालाबाज़ारी पर अंकुश लगाना अनिवार्य था । हम अगर पिछले 60 साल की लेखा जोखा की समीक्षा करें तो देश की आर्थिक स्थिति बीजेपी की सरकार में ही  संभली है ये तो हक़ीक़त है। चाहे वो अटल जी का दौर हो या वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी जी का इन दोनों की दौर में सकल घरेलू उत्पाद की दर 7. के पर गई जो अन्य की दौर में 6 से नीचे ही रहती थी। हम मान लेते है कि बीजेपी की शासन प्रणाली उम्दा है । लेकिन सरकार के सामने अभी प्रतिस्पर्धा कम नहीं है। ये वही देश है जहां डिमॉनेटाइजेशन जैसी विधवत प्रक्रिया पूर्व असफल हो चुकी है..हाँ!  गनीमत रहा कि 1जुलाई 1991 को जब प्रधानमंत्री नरसिंह राव जी जब रुपए को अवमूल्यन किए तो उन्हें सफलता मिली वैसे चुनौती कम नहीं थी उनको भी। दरअसल, 6.6.66 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रुपए का 35.5 फीसदी अवमूल्यन किया । लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद प्रधानमंत्री बने और इन्हें प्रधानमंत्री बने कुछ ही समय हुए थे , देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था । इंदिरा गांधी को लगा की इससे विदेशी पूंजी आएगी जो हुआ नहीं और ये बड़ी भूल साबित हुई । लेकिन वर्तमान प्रधानमंत्री  के द्वारा किए गए फ़ैसले कितने सही या गलत होंगे ये तो वक़्त ही बताएगा फ़िलहाल संघर्ष की पटरी पे देश चल रही हैं। आशा करता हूं कि  डिमॉनेटाइजेशन सफल साबित होगी।

रूपेश रंजन मिश्र "बिहारी".


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