Sunday, 13 November 2016

फटेहाल में आमआदमी

आज देश स्वाधीन है।  शासक बदल गए है पर शासन नही बदला है।   शोषक बदल गए है पर आम आदमी का शौषण नहीं।  शौषण  का ढंग बदल गया है। प्रधान मंत्री नरेंदर मोदी जी का ५०० और १००० रूपए की नोटबंदी के फैसले की आफत भी आम आदमी पर आ पड़ी।  वह आम आदमी जिसके सर पर मुसीबत आ पड़ी है  ,  वह आज  जानना  चाहता है कि   सरकार को हमारी आमदनी पर टैक्स क्यू चाहिए?  जबकि हर वस्तु खरी दने पर टैक्स देना पड़ता है ।  कहना खाने जाओ तो  सर्विस टैक्स ,  सिनेमा देखने जाओ तो  एंटर्टेन्मन्ट टैक्स।  गाडी खरीदें तो रोड टैक्स,   और फिर  रोड पर चलें तो टोल टैक्स।  क्या इन सब चीज़ों का टैक्स देना  काफी नहीं।  आम आदमी की ज़िन्दगी पिस  गयी है।  वह घंटो कतारों में अपने नोट बदलने के लिये खड़ा रहता व्है।  वही दूसरी और अमीर  आदमी अपना काला धन सामने लाने की बजाय यूँ ही बर्बाद ककर रहा है।  कभी तो कूड़ेदान में ५०० और १००० के ढेर सारे   नोट पाय जाते है  तो कभी उन्हें जला दिया जाता है।  क्यू १० फीसदी कला धन रखने वाले अम्मीरों की वजह से ९० फीसदी लोगों को सजा दी जा रही है ? 

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