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इंटरनेट में बड़ा बदलाव - इंटरनेट के पते अब दूसरी भाषाओं में भी --राजीव रंजन सिन्हा
इंटरनेट की नियामक संस्था आईसीएएनएन ने इस प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है कि इंटरनेट के डोमेन नेम यानी पते अब अंग्रेज़ी के अलावा दूसरी भाषाओं में भी हों.
इसका मतलब है कि आने वाले दिनों में आप अपनी वेबसाइट का पता ग़ैर लेटिन भाषा में यानी हिंदी, चीनी या अरबी आदि भाषा में भी रख सकेंगे.
इस समय दुनिया भर में इंटरनेट का उपयोग करने वाले 1.6 अरब लोगों में से आधे से अधिक लोग ऐसी भाषा बोलते हैं जिसकी लिपि लेटिन नहीं है.
40 साल के इंटरनेट के इतिहास में इसे सबसे बड़ा बदलाव माना जा रहा है. शुरुआती दिनों में लैटिन भाषा ने कोई दिक़्कत पैदा नहीं की क्योंकि उन दिनों इंटरनेट का प्रयोग करने वाले लोग या तो अंग्रेज़ी भाषी थे या फिर उन भाषाओं के थे जो लैटिन लिपि में ही काम करते थे.
इसके तहत इंटरनेट के डोमेन नाम अनुदित हो जाएंगे और दूसरी भाषा में एक आईपी एड्रेस बन जाएगा लेकिन यह बदलाव कंप्यूटर के नंबरों के ज़रिए होगा.
यह प्रस्ताव 2008 में स्वीकार किया गया था जिसके तहत डोमेन नाम इत्यादि एशियाई, अरबी और अन्य लिपियों में भी रखे जा सकेंगे. और पिछले दो साल से अधिक समय से इसका परीक्षण किया जा रहा था.
इंटरनेट को आपरेशन फॉर एसाइन्ड नेम्स एंड नंबर्स (आईसीएएनएन) के अनुसार गैर लैटिन लिपि में आवेदन स्वीकार करने का कार्य 16 नवंबर को शुरु होगा और 2010 के मध्य में इसका प्रयोग शुरु हो जाने की संभावना है.
संभावना है कि सबसे पहले जिन ग़ैर लैटिन भाषा के पते शुरु किए जाएँगे उनमें चीनी और अरबी हैं और इसके बाद रूसी का नंबर आएगा.
थाईलैंड और चीन में इस तकनीक का इस्तेमाल कर उनकी भाषा में आईपी एड्रेस तैयार होते हैं लेकिन इन्हें अभी तक अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त नहीं है इसलिए ये सभी कंप्यूटरों पर काम नहीं करते.
आईसीएनएन का गठन अमरीका ने 1998 में किया था जिससे कि इंटरनेट में चल रही गतिविधियों पर नज़र रखी जा सके.
अमरीकी नियंत्रण के लिए कई सालों की आलोचना के बाद पिछले महीने ही अमरीका ने लाभ अर्जित करने के दायरे से बाहर रहने वाली इस संस्था को नियंत्रण मुक्त करने की घोषणा की थी.
अमरीका ने पहली अक्तूबर से इसे नियंत्रण मुक़्त करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.
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