ट्वीटर पर जबसे अरविंद केजरीवाल ने किरन बेदी को चुनावी मौसम में बहस के लिए ललकारा और बेदी ने यह कह कर पल्ल छाड़ लिया कि वह विधान सभा में बहस करेंगी तबसे केजरीवाल के ट्वीट से उठे हंगामे से जहां सोशल मीडिया पर चुनावी चक्कलस करने वाले मजा लेने लगे हैं,वही राजनीति में दखल रखने वालों के बीच चर्चा तेज हो गई की क्या वाकई बहस होनी चाहिए। अगर दलों के आपसी आरोपों-प्रत्यारोपों और एक-दूसरे पर राजनैतिक आक्षेप लगाने से इतर देखा जाये तो सवाल यह उठता है कि आखिर बहस क्यों न हो।
सबसे बड़ी बात यह है कि यह बहस की बात देश की राजधानी के विधान सभा के दौरान उठी है। तो अब सवाल यह आता है कि दिल्ली एक साक्षर राज्य है साथ ही देश की राजधानी होने के नाते दिल्ली में प्रधानमंत्री से लेकर सभी विभागों के दफतर हैं जहां पर निचले स्तर से लेकर कैबिनेट सचिव तक सभी बाबू बैठते हैं। अगर बहस होगी तो हम इस राजनीति को नए सिरे से देख सकेंगे। नेतृत्व की तार्कित और बौद्धिक क्षमता को परख सकेंगे।
यह लोकतंत्र के लिए एक नये अध्याय के लिखे जाने का मौका होगा। अगर अब बहस नहीं हो सकती तो कब होगी और कहां। इतनी उम्मीद व मांग तो जनता की बनती ही है। अरविंद केजरीवाल और किरन बेदी दोनों एक अलग गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आते हैं। दोनों आज की राजनीतिक प्रणाली के आलोचक रहे हैं। यह सही है कि दांव अरविंद का है तो किरण स्वीकार करने में हिचकेंगी, लेकिन राजनीति में यह कोई बड़ी बात नहीं है। किरण बेदी भी स्वीकार कर केजरीवाल को मात दे सकती हैं। जब विधानसभा में आमने-सामने हो सकती हैं तो विधान सभा में जाने से पहले क्यों नहीं और यह कोई आवश्यक तो नही ं की चुनावी मौसम में जहां किरन बेदी को जो मौका भाजपा ने दिया है वो मौका दिल्ली की जनता भी उन्हें देगी ही । फिर भी किरण बेदी का यह कहना कि बहस सिर्फ विधानसभा के भीतर होती है, सही नहीं है। लोकतंत्र में असली बहस जनता के बीच होती है। जनता के आमने-सामने होती है, एक दूसरे की तरफ पीठ करके चुनौती देने से ही लोकतंत्र महान नहीं हो जाता। आमने-सामने आकर उसका और विस्तार होता है।
कांग्रेस के अजय माकन इस मांग को एक मौका देखते हुए बहस में शामिल होने को तैयार दिखे। माकन ने कहा कि ऐसी बहस से विभिन्न दलों के नेताओं को कठिन सवालों के जवाब देकर अपना पक्ष जनता के सामने रखने का मौका मिलेगा। इससे पहले उन्होंने ट्वीट कर कहा कि बहस से दिल्ली की जनता को तुलनात्मक आकलन करने का मौका भी मिलेगा।
जहां किरन बेदी अब बहस से बच रही है वही बेदी बहस के पक्ष में थी । इस की बानगी कुमार विश्वास ने किरण बेदी का एक पुराना ट्वीट निकाल कर ट्वीट पर दी है। किरण बेदी ने ओबामा और रूमनी की बहस देखते हुए ट्वीट किया था और कहा था कि बहस देखने से मत चूकिये।
केजरीवाल ने भी किसी रणनीति के तहत ही चुनौती दी होगी। इसी बहाने आज टीवी और सोशल मीडिया का स्पेस उनके नाम हो सकता है। पर यह सच है कि हमारे देश में चुनाव टीवी और ट्वीटर में ढलता जा रहा है। सब कुछ टीवी के लिए हो रहा है। टीवी के लिए ही दिखने वाला चेहरा लाया जाता है, नहीं दिखने लायक चेहरा राजनीति में पचास साल लगाकर भी रातों रात गायब कर दिया जाता है। इस
सबसे बड़ी बात यह है कि यह बहस की बात देश की राजधानी के विधान सभा के दौरान उठी है। तो अब सवाल यह आता है कि दिल्ली एक साक्षर राज्य है साथ ही देश की राजधानी होने के नाते दिल्ली में प्रधानमंत्री से लेकर सभी विभागों के दफतर हैं जहां पर निचले स्तर से लेकर कैबिनेट सचिव तक सभी बाबू बैठते हैं। अगर बहस होगी तो हम इस राजनीति को नए सिरे से देख सकेंगे। नेतृत्व की तार्कित और बौद्धिक क्षमता को परख सकेंगे।
यह लोकतंत्र के लिए एक नये अध्याय के लिखे जाने का मौका होगा। अगर अब बहस नहीं हो सकती तो कब होगी और कहां। इतनी उम्मीद व मांग तो जनता की बनती ही है। अरविंद केजरीवाल और किरन बेदी दोनों एक अलग गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आते हैं। दोनों आज की राजनीतिक प्रणाली के आलोचक रहे हैं। यह सही है कि दांव अरविंद का है तो किरण स्वीकार करने में हिचकेंगी, लेकिन राजनीति में यह कोई बड़ी बात नहीं है। किरण बेदी भी स्वीकार कर केजरीवाल को मात दे सकती हैं। जब विधानसभा में आमने-सामने हो सकती हैं तो विधान सभा में जाने से पहले क्यों नहीं और यह कोई आवश्यक तो नही ं की चुनावी मौसम में जहां किरन बेदी को जो मौका भाजपा ने दिया है वो मौका दिल्ली की जनता भी उन्हें देगी ही । फिर भी किरण बेदी का यह कहना कि बहस सिर्फ विधानसभा के भीतर होती है, सही नहीं है। लोकतंत्र में असली बहस जनता के बीच होती है। जनता के आमने-सामने होती है, एक दूसरे की तरफ पीठ करके चुनौती देने से ही लोकतंत्र महान नहीं हो जाता। आमने-सामने आकर उसका और विस्तार होता है।
कांग्रेस के अजय माकन इस मांग को एक मौका देखते हुए बहस में शामिल होने को तैयार दिखे। माकन ने कहा कि ऐसी बहस से विभिन्न दलों के नेताओं को कठिन सवालों के जवाब देकर अपना पक्ष जनता के सामने रखने का मौका मिलेगा। इससे पहले उन्होंने ट्वीट कर कहा कि बहस से दिल्ली की जनता को तुलनात्मक आकलन करने का मौका भी मिलेगा।
जहां किरन बेदी अब बहस से बच रही है वही बेदी बहस के पक्ष में थी । इस की बानगी कुमार विश्वास ने किरण बेदी का एक पुराना ट्वीट निकाल कर ट्वीट पर दी है। किरण बेदी ने ओबामा और रूमनी की बहस देखते हुए ट्वीट किया था और कहा था कि बहस देखने से मत चूकिये।
केजरीवाल ने भी किसी रणनीति के तहत ही चुनौती दी होगी। इसी बहाने आज टीवी और सोशल मीडिया का स्पेस उनके नाम हो सकता है। पर यह सच है कि हमारे देश में चुनाव टीवी और ट्वीटर में ढलता जा रहा है। सब कुछ टीवी के लिए हो रहा है। टीवी के लिए ही दिखने वाला चेहरा लाया जाता है, नहीं दिखने लायक चेहरा राजनीति में पचास साल लगाकर भी रातों रात गायब कर दिया जाता है। इस
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