Thursday, 20 January 2011

यूपी में प्रतिदिन गर्भ में मारी जा रहीं 547 बेटियां


यह विडंबना है कि जिस देश में मातृसत्ता की पूजा होती हो, वहां हर दिन सैकड़ों मांएं बेटे की लालसा में कोख में पल रही बेटियों को मार रही हैं। उ.प्र. में औसत प्रतिदिन 547 बेटियों के गर्भ में मारे जाने का रिकार्ड है। यह हाल तब है, जब भ्रूण हत्या रोकने के लिए सरकार की ओर से जागरूकता के नाम पर हर साल करोड़ों फूंके जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश महिला आयोग ने चिकित्सा विभाग को हिदायत दी है कि भ्रूण हत्या पर अंकुश लगाया जाए, लेकिन यह फरमान बेअसर है। सूबे में 5000 से अधिक अल्ट्रासाउंड केंद्र लिंग जांच करने में सक्रिय हैं। 

  • 1000 / 972 (प्रति एक हजार (१०००) पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या)- जनगणना, १९०१
  • 1000 / 933 (प्रति एक हजार (१०००) पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या)- जनगणना, २००१
      • कानून-गर्भ धारण एवं पूर्व जन्म निदान (लिंग जांच निषेध) अधिनियम 1996 का अनुपालन कराने में सरकारी मशीनरी फेल साबित हो रही है। सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे (एसआरएस) के आंकड़ों के मुताबिक देश में सर्वाधिक भ्रूण हत्या उत्तर प्रदेश में हो रही है। यूपी में सालाना दो लाख कन्या भ्रूण हत्या का रिकार्ड है। गर्भ में बेटियों को मारने का इतना बड़ा रिकार्ड किसी राज्य में नहीं है। भ्रूण हत्या के खिलाफ मुखर स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. नीलम सिंह कहती हैं कि मेडिकल काउंसिल, महिला आयोग और सरकारी तंत्र अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाह हैं। अगर जिलास्तर पर लोग जागरूक रहें, तो इस पर अंकुश लग सकता है। दरअसल लिंग जांच परीक्षण में डाक्टर को डेढ़ से 5 हजार रुपये तक की कमाई होती है, जबकि सामान्य अल्ट्रासाउंड फीस में 3 से 4 सौ मिलते हैं। एक स्वयंसेवी संगठन की डॉ. साधना सिंह चिंता प्रकट करतीं हैं कि सूबे में एक हजार पुरुष पर 952 महिलाओं का औसत इसी कुरीति की वजह से है। वह दिन दूर नहीं जब ब्याह के लिए लड़कियों का टोटा होगा। अधिवक्ता कृष्ण बिहारी दुबे के मुताबिक कानून के तहत इस तरह के मामलों के दोषी लोगों को एक लाख जुर्माना और पांच साल कैद हो सकती है, पर इस कानून का कोई खौफ नहीं है।

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