Monday, 8 March 2010

तड़पता बचपन


आज जिस देश में तरक्की व विकास के नाम पर जो सरकार वाह-वाही लूटने की कोशिश कर रही है। क्या उस तरक्की व विकास के पीछे दबे उन लोगों के बारे में भी पल भर सोचने का समय हमारी इस सरकार के पास है। जो सड़कों पर भूखे-प्यासे भोजन की तलाश में पूरा दिन गुजार देते है। आज में ऐसी ही एक मासूम सी बच्ची से मिला, जिसके न माँ थी और न बाप। जो मेरे सामने थोड़े से भोजन की आस में खड़ी हो गयी। पहले तो मुझे एसा लगा कि जैसे कोई ये परम्परागत भिखारी है लेकिन जब उसने बताया कि वो एक मंदिर पर बूड़ी माँ के पास रहती है और वो ही उसे खाना बना कर खिलाती है, और इस बात का विश्वास दिलाने के लिए वह मुझे अपने साथ ले जान के लिए तैयार भी हो गयी,तो मुझे लगा कि वह वास्तव में एक मजबूर लड़की है । मेरा उद्देश्य किसी की मजबूरी का मजाक उडाना भर नहीं है। इस विषय को ध्यान में रखते हुए में इस देश की सरकार से एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि कभी इन मजबूर बच्चों को ध्यान में रखते हुए भी इस देश का बजट पेश किया जाय। क्या आम आदमी के नाम पर बनायी गयी इस सरकार ने एक बार भी सोचा कि जिस अर्थव्यवस्था कि रफ्तार बढाने और घाटा पूरा करने के नाम जो बोझ आम जनता पर डाल देती है उससे उस आम आदमी का कैसे भला होगा। जब कि इस देश के आम आदमी की मेहनत की कमाई स्वित्जरलेंद में १५०० अरब डालर के रूप में पड़ी है, कभी इस तरफ भी इस आम आदमी कि सरकार ने आँख उठा कर देखने की हिम्मत जुताई। नहीं देखेगी क्यों कि उसमें वो खुद अपने आप को नंगा पायेगी। जो राहुल गांधी चुनाव से पहले जिन गरीबों की झोंपड़ी में रात बिताकर तथा खाना खा कर दिन रात अपने आप को उनका मशीहा साबित करने कि कोशिश कर रहे थे, क्या वो आज उनके घरों में दुबारा जाकर देखने कि हिम्मत जुटायेंगे जिससे कि उन्हें पता चल सके कि आज से एक वर्ष पूर्व जिन लोगों के यहाँ उन्होंने जो खाना खाया था वो भी आज उन्हें मिल रहा है कि नहीं। नहीं क्यों कि उन्हें नहीं मालूम एक दिन भूखा केसे सोया जाता है। इसलिए मेरी इस देश की आम आदमी की इस आम सरकार से मेरा विनम्र निवेदन है कि कभी इन बेसहारा बच्चों को ध्यान में रखकर भी देश की तरक्की की सोचो शायद इस देश का कुछ भला हो जाय.

3 comments:

  1. very good story.But do mention the sources..

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  2. good points ,keep it up brother, yes mention the sources from where u create this real story.
    we need this kind of thought
    well done
    gautam

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