Wednesday, 27 August 2014

Information for all Ex students

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 Dr Smita 

गृहमंत्री हिन्दी में बोले तो इकॉनामिक्स टाईम्स को हजम नहीं हुआ

गृहमंत्री हिन्दी में बोले तो इकॉनामिक्स टाईम्स को हजम नहीं हुआ

गृहमंत्री हिन्दी में बोले तो इकॉनामिक्स टाईम्स को हजम नहीं हुआकरीब एक महीने पहले ही जनसंख्या दिवस पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र संघ के एक कार्यक्रम में देश के गृहमंत्री राजनाथ सिहं ने हिंदी में भाषण देकर न केवल हिंदी के प्रति अपनी और सरकार की दृढ़ता को दर्शाया बल्कि हिंदी का मान भी बढ़ाया, लेकिन राजनाथ सिंह का यह साहस एक अंग्रेजी अखबार इकोनॉमिक टाइम्स को रास नहीं आया। क्या आप बिना अंग्रेजी जाने विदेश सेवा की नौकरी करने के बारे में सपना भी देख सकते हैं। अगर नहीं तो फिर भारत में विदेशी नाजनयिकों या फिर किसी रूप में काम करने वाले विदेशी लोगों से हिंदी जानने की अपेक्षा क्यों नहीं की जानी चाहिए। अगर उन्हें हिंदी नहीं आती है तो यह उनकी विशेषता नहीं कमजोरी है, जिसके लिए हमारी सरकार या हिंदी बोलने वाले नेता या मंत्री कैसे जिम्मेदार हो सकते हैं?

ईटी ने अगले दिन राजनाथ की एक तरह से खिल्ली उड़ाते हुए अपने फ्रंट पेज पर ‘क्या आप यह भाषा समझ पा रहे हैं?’ हेडिंग के साथ प्रकाशित किया। अखबार ने इस तरह से न केवल एक राजनेता के मान पर आघात किया बल्कि एक राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को भी अपमानित करने का काम किया।

लेकिन 'नया इंडिया'  अखबार के संपादक (समाचार) अजित द्विवेदी ने दूसरे दिन अपनी लेखनी के माध्यम से न केवल राजनाथ और उनकी हिंदी की प्रशंसा की बल्कि उनकी हिंदी नहीं समझने वाले अखबार इकोनॉमिक टाइम्स को भी समझाने का पूरा प्रयास किया। अपने जिस तर्क के साथ इकोनॉमिक टाइम्स ने राजनाथ सिंह और हिंदी की आलोचना की है वह उसका तर्क नहीं कुतर्क ही कहा जाएगा।

इसी मसले पर नया इंडिया के संपादक (समाचार) अजित द्विवेदी ने कुछ इस प्रकार हिंदीभाषियों, पत्रकारों और मीडिया समूहों से हिंदी के प्रति दुराग्रह रखनेवालों को करारा जवाब देने का आग्रह किया है। उनका इस मसले पर प्रकाशित आलेख हम आपके समझ ज्यों का त्यों पेश कर रहे हैं...

भारत के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को हम हिंदीभाषियों का गौरव बढ़ाया। वे न झिझके, न हिचके और मातृभाषा हिंदी के प्रति अपना लौह निश्चय प्रमाणित किया। वे संयुक्त राष्ट्र संघ की एक एजेंसी के कार्यक्रम में हिंदी में बोले। यह बात अंग्रजीदाओं को अखरी। अंग्रेजी अखबरा इकोनॉमिक टाइम्स ने पहले पेज पर प्रमुखता से हिंदी और राजनाथ सिंह का मजाक उड़ाने के अंदाज में आलोचना की। हम हिंदीभाषी पत्रकारों,   अखबारों का कर्तव्य है कि हम राजनाथ सिंह की इच्छाशक्ति और दृढ़ता का अबिनंदन करें। इसलिए सभी से आग्रह है कि राजनाथ सिंह और मोदी सरकार के हिंदी के प्रति नजरिए को ले कर अभिनंदन करें। हम हिंदीभाषियों का दायितव् है कि अंग्रेजी अखबारों उलट प्रचार के खिलाफ मुहिम चलाएं और सरकारमें हिंदी उपयोग के लिए मोदी सरकार के मनोबल को बढ़ाने में जी जान से जुटें।
राजनाथ सिंह ने मिसाल कायम की। उन्होंने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ के एक कार्यक्रम में धाराप्रवाह हिंदी में भाषण दिया। इस बात का झूठा लिहाज नहीं बरता कि यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड की भारत प्रतिनिधि फ्रेडरिका मिजर और उनके डिप्टी डेविड मैकलॉलिन मंच पर बैठे हैं और उनको हिंदी समझ में नहीं आएगी या यूनेस्को के प्रतिनिधि और दूसरे विदेशी मेहमान बैठे हैं, भला उनके सामने हिंदी में क्या भाषण देना!

वे चाहते तो अंग्रेजी में भाषण दे सकते थे। दिल्ली में सरकार बनने से पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते वे अमेरिका गए थे, तब उन्होंने अंग्रेजी में वहां की मीडिया को संबोधित किया था। लेकिन चूंकि उनकी सरकार ने तय किया है कि हिंदी को बढ़ावा देना है और खुद उनके मंत्रालय ने हिंदी में कामकाज और सोशल मीडिया में हिंदी को बढ़ावा देने का निर्देश जारी किया था, इसलिए उन्होंने बताया कि वे दिल्ली में झूठे लिहाजों में नहीं उलझेंगे और मातृभाषा में ही बोलेंगे। भारत का गृह मंत्री अपनी भाषा में बोलेगा वह दूसरों की चिंता करते हुए उनकी चिंता में नहीं बोलेगा। राजनाथसिंह ने वही किया जो चीन, रूस और स्पेन, जर्मनी आदि के मंत्री और नेता करते हैं।

यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड के भारत चैप्टर और भारत के महापंजीयक की ओर से जनसंख्या दिवस के मौके पर आयोजित इस कार्यक्रम में राजनाथ सिंह ने प्रतीकात्मक हिंदी प्रेम नहीं दिखाया, बल्कि स्वाभाविक प्रतिबद्धता दिखाई। भारत के कई प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा की बैठकों में हिंदी में भाषण देते रहे हैं। लेकिन वह एक प्रतीकात्मक भंगिमा होती है। हिंदी में एक भाषण देने के बाद सारे कामकाज अंग्रेजी में ही होते रहते हैं।

नरेंद्र मोदी की सरकार को यह प्रतीकात्मकता तोड़नी है। हिंदी को बोलचाल की भाषा से निकाल कर राजकाज की भाषा बनानी है और यह तभी होगा जब राजनाथ सिंह जैसी प्रतिबद्धता होगी, विश्व मंच पर हिंदी में भाषण करने का हौसला होगा और सहज स्वाभाविक प्रवृत्ति होगी। उनका भाषण स्वतःस्फूर्त था, इसलिए पहले से उसकी अंग्रेजी प्रति बना कर श्रोताओं को नहीं दी जा सकती थी। वे चाहते तो उसी तरह अपने भाषण का अंग्रेजी अनुवाद करा सकते थे, जैसे भारत के महापंजीयक सी चंद्रमौली ने अपने हिंदी भाषण का खुद अंग्रेजी अनुवाद किया। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

उन्होंने बिल्कुल सहज अंदाज में हिंदी में भाषण दिया। संयुक्त राष्ट्र संघ के पदाधिकारी और दूसरे विदेशी मेहमान उनके अंदाज से हैरान हुए होंगे। क्योंकि उनको इसकी आदत नहीं है। इससे पहले भारत के हुक्मरान अपनी भाषा से ज्यादा उन विदेशी मेहमानों की भाषा का लिहाज किया करते थे और वही भाषा बोलते थे, जो उन्हें समझ में आती थी।

दरअसल जब आप भाषा के मामले में विदेशी का लिहाज करेंगे तो उस भाषा में कही गई बातें भी उनके मनमाफिक होंगी। ऐसा लिहाज दुनिया के किसी भी देश के नेता नहीं करते हैं। मैंडेरिन नहीं समझने वाले विदेशी मेहमानों के लिए कोई भी चीनी नेता अंग्रेजी में भाषण नहीं देने लगता है। हालांकि चीन का नया नेतृत्व अच्छी अंग्रेजी बोलने और समझने वालों का है, लेकिन वह अपनी बात अपनी जुबान में कहता है और जिसको जरूरत होती है, वह उसे समझता है।

राजनाथ सिंह के इस भाषण के बाद यह एक नजीर बन जाएगी। विदेशी मेहमान उनकी अगली सभाओं में हिंदी समझने की तैयारी करके आएंगे। लेकिन राजनाथ सिंह की यह प्रतिबद्धता दूसरे सभी नेताओं, मंत्रियों और अधिकारियों में दिखनी चाहिए। उनके राज्यमंत्री किरण रिजीजू ने उसी मंच से अंग्रेजी में भाषण दिया जबकि हिंदी में कामकाज का निर्देश जारी होने के बाद आगे बढ़ कर उन्होंने इसका बचाव किया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दुनिया भर के नेताओं से हिंदी में बात कर रहे हैं। लेकिन पीएसएलवी के लांच के मौके पर वे श्रीहरिकोटा गए तो वहां उन्होंने वैज्ञानिकों से पहले अंग्रेजी में बात की। ब्रिक्स के मंच पर भी उन्होंने शुरुआती संबोधन अंग्रेजी में किया। लेकिन अगर मोदी की सरकार यह सोच कर आई है कि जिस हिंदी को हथियार बना कर आजादी की लड़ाई लड़ी गई थी और जिसे एक साजिश के तहत दोयम दर्जे की भाषा बना दिया गया और साजिश के तहत ही जिसे लगातार कमजोर करते जाने की कोशिश हो रही है, उसे उसका सम्मान दिलाना है तो रत्ती भर भी हिचक या लिहाज की जरूरत नहीं है।
(साभार : नया इंडिया व http://samachar4media.com/ से )

Monday, 25 August 2014

National Sports Day celebration FICCI

National Sports Day Celebrations
28th August, 2014
Dear Sir/ Ma’am,
 
To promote sports culture and to create awareness about the essence of this important day, FICCI will be celebrating National Sports Day with the support of Ministry of Youth Affairs and Sports, All India Council of Physical Education (AICPE) and Association of Indian Universities (AIU). The objective of these celebrations is to promote sports culture and to create awareness about the National Sports Day pan India.
 
It will be an honor for us if you could block your diary and join us on the National Sports Day Celebrations at FICCI, Federation House, Tansen Marg on 28th Aug, 2014 at 2:30 p:m., as a precursor to the National Sports Day.
 
We have invited the Sports fraternity, India Inc., Academia, Civil society to celebrate this day. This would be followed by programme at Major Dhyanchand National Stadium, New Delhi.
We would be honoured if you could kindly accede to our request.
 
It may also be mentioned that on 29th Aug, 2014 FICCI is organizing multiple sports activities across the country with the support of All India Council of Physical Education and Association of Indian Universities and some stand-alone schools. Click on the hyperlink to download NSD Final InvitationNSD Oath and NSD Concept Note.
 
We look forward to your kind confirmation and support on 28th August, 2014.
 
With best regards,
 
Yours sincerely,
 
Rajpal Singh
Director and Head
Youth Affairs & Sports, Skills Devolopment (International) & Postal Reforms & Labour and Employement
FICCI
Industry’s Voice for Policy Change
Bridging the knowledge gaps in Sports
Federation House, Tansen Marg, New Delhi- 110001
T: 011-23487400, 23765083
F: 011-23320714, 23721504
Corporate Identity Number (CIN) -  U99999DL1956NPL002635